भारत में लिव-इन रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले

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लिव-इन संबंधों को संबोधित करने वाला कोई कानून नहीं है। इसीलिए लिव-इन संबंधों में कई बार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग तरह के विरोधाभासी फैसले आते रहते हैं। क्योंकि यह उस केस के फैक्ट और मानव अधिकारों पर आधारित होते हैं। लिव-इन (live-in) संबंधों की वैधानिकता लिव-इन रिलेशनशिप की वैधता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जन्मी है। “जीवन का अधिकार किसी व्यक्ति को हर तरह से जीवन जीने की स्वतंत्रता पर जोर देता है। इसी के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपनी रुचि के व्यक्ति के साथ शादी के साथ या उसके बिना रहने का अधिकार है।

क्या ‘सेक्स’के लिए सहमति की उम्र 18 से कम होना चाहिए?

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मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने मई 2023 में केंद्र सरकार से महिलाओं सेक्स की सहमति की उम्र 18 साल से घटाकर 16 करने का अनुरोध किया था। दरअसल मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष 2020 में एक नाबालिग़ लड़की के साथ बारबार हुए बलात्कार और उसे गर्भवती करने का मामला सामने आया था। इस मामले में शिकायतकर्ता नाबालिग़ थी और वो याचिकाकर्ता से कोचिंग ले रही थी. बलात्कार के आरोप में एक कोचिंग देने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ दायर की गई एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.

पारसी विधि में तलाक के आधार

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पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 के अनुसार तलाक के निम्न आधार हैं : धारा 30 के अनुसार यदि प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण विवाह संपन्न करना असंभव हो जाता है। धारा 31 के अनुसार यदि पति या पत्नी में से किसी ने पिछले सात वर्षों से किसी अन्य पति या पत्नी के बारे में नहीं सुना है, तो विवाह को खत्म किया जा सकता है। धारा 32 में तलाक के आधार दिए गए हैं: जब पति या पत्नी में से कोई एक शादी के एक साल के भीतर शादी से पूरी तरह इनकार कर देता है। जब किसी पति या पत्नी को सात साल से अधिक की कैद हो जाए और एक साल की कैद बीत चुकी हो, तो पति या पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं। जब पति या पत्नी में से कोई भी 2 साल से अधिक समय से अलग हो गया हो या उसने अपना धर्म बदल लिया हो। यदि विवाह के समय पति या पत्नी से यह रहस्य रखा जाता है कि दूसरा पक्ष मानसिक रुप से अस्वस्थ है। दूसरा पति या पत्नी शादी की तारीख से तीन साल की अवधि के भीतर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है। अगर शादी के समय महिला गर्भवती थी। लेकिन इसे शादी के दो साल की अवधि के भीतर लागू किया जाना चाहिए और साथ ही, जोड़े का वैवाहिक संबंध नहीं होना चाहिए। यदि विवाह के दो साल के भीतर पति या पत्नी में से किसी के साथ क्रूरता का व्यवहार किया जाता है और दोनों मे से कोई भी यौन रोग से पीड़ित है। धारा 32B के अनुसार जबरदस्ती और धोखाधड़ी से आपसी सहमति नहीं ली जा सकती है। पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 की धारा 19 और 20 में कहा गया है कि पारसी केवल पारसी के अधिकारियों की अध्यक्षता वाली विशेष अदालतों में तलाक की कार्यवाही शुरू कर सकता है और एक पंजीकृत (रजिस्टर्ड) कार्यालय में पंजीकरण करना भी आवश्यक है।

ईसाइयों के लिए तलाक के आधार क्या हैं ?

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भारतीय तलाक अधिनियम की धारा 10A के अनुसार, ईसाई दो तरह से तलाक ले सकते हैं आपसी तलाक: पति-पत्नी दोनों अगर पिछले दो साल से एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं तो वे जिला अदालत में तलाक के लिए अर्जी दे सकते हैं। विवादित तलाक: इसे निम्नलिखित आधारों पर दायर किया जा सकता है- पिछले 2 साल से मानसिक रूप से अस्वस्थ है व्यभिचार धर्मांतरण पिछले दो साल से त्याग दिया है क्रूरता किसी भी पति या पत्नी के सात साल या उससे अधिक समय तक जीवित रहने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 में तलाक

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मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के अनुसार तलाक के आधार : मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 की धारा 2 के तहत महिला विवाह के विघटन के लिए एक डिक्री प्राप्त करने की हकदार तभी होती है, यदि- सायरा बानो विरुद्ध भारत संघ व अन्य, 2017 इस मामले में अनुच्छेद 13 (1) के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 14 के तहत तलाक-उल-बिअद्दत या तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया गया था। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि 1937 का अधिनियम उस सीमा तक शून्य है जहां तक ​​वह तीन तलाक को मान्यता देता है और लागू करता है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, सरकार को तीन तलाक को अवैध और अपराधी बनाने के लिए एक कानून बनाना होगा।

हिन्दू धर्म में तलाक कैसे होता है ?

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हिन्दू धर्म में तलाक की अवधारणा प्राचीन हिन्दू धर्म में विवाह सात जन्मों का बंधन माना गया था। इसलिए मूल रूप से हिंदू धर्म में तलाक का कोई कंसेप्ट नहीं है। हालांकि इस मान्यता के बावजूद भी कुछ मामलों में पति एवं पत्नी विवाह के बंधनों से मुक्त हो सकते थे। लेकिन फिर भी यह बहुत अधिक प्रचलन में नहीं था, और विवाह को समाप्त करना लगभग असंभव माना जाता था।

मुसलमान महिलाओं को अपने पति को तलाक़ देने का अधिकार 

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<div class="bbc-19j92fr ebmt73l0" dir="ltr"> <div class="bbc-19j92fr ebmt73l0" dir="ltr"> <p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr"> मुसलमानों में तलाक़ ए बिद्दत यानी इंस्टेंट तलाक़ को ग़ैर क़ानूनी बनाने वाला मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) क़ानून 2019 बनाया गया है. </p> </div> <div class="bbc-19j92fr ebmt73l0" dir="ltr"> <p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr"> इक़रा इंटरनेशनल वीमेन अलांयस नाम की संस्था में एक्टिविस्ट और मुसलमान महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही उज़्मा नाहिद का कहना है कि तलाक़ देने का हक़ पुरुष का होता है और ख़ुला लेने का अधिकार महिला का होता है। <span style="color: var(--dark-color); font-family: var(--primary-font); font-weight: var(--font-weight);"> मुसलमान महिलाओं को ख़ुला के तहत तलाक़ नहीं मिल रहा है या तलाक़ का ग़लत इस्तेमाल हो रहा है। </span><span style="color: var(--dark-color); font-family: var(--primary-font); font-weight: var(--font-weight);">केरल हाई कोर्ट में जो मामला आया है वो शरीयत के ख़िलाफ़ नहीं है और ये इस्लामिक शरिया को चुनौती नहीं देता है.

महिलाओं को अबॉर्शन का हक देने का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

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गर्भपात का अधिकार महिलाओं को गर्भपात का अधिकार प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायलय का ऐतिहासिक फैसला तारीख 29 सितंबर, साल 2022, को आया है। इस फैसले की अंतर्गत उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के एक बहुत मौलिक अधिकार को कानूनी स्वीकृतिप्रदान कर दी है। इसके अंतर्गत अब अनमैरिड प्रेग्नेंट वुमन यानी बगैर शादी के प्रेग्नेंट हुई महिलाओं को भी अबॉर्शन का अधिकार है। आइए इस ऐतिहासिक फैसले के विभिन्न कानूनीपहलुओं को आसान भाषा में समझते हैं।

सिर्फ ‘हाँ’ का मतलब ही ‘हाँ’ है – ओनली यस मीन्स यस

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‘ओनली यस मीन्स यस’ क्या है ? दुनिया भर में लोग सोशल मीडिया और अख़बारों में कैम्पेन चला रहे हैं ‘ओनली यस मीन्स यस’। यह कैम्पेन किसी सैक्सुअल एक्ट में औरतों की सहमति के सम्बंध में जागरूकता के लिए चलाई जा रही है। यह एक आंदोलन बन गया है। इसमें लोग अपने अपने देश की सरकारों, न्यायालयों और कानून बनाने वालों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी अपराध में पीड़िता की खामोशी को उसकी सहमति न माना जाए। क्यूंकि ऐसा करने से अपराधियों को उचित सजा नहीं मिलेगी और यह गंभीर अपराध में पीड़िता के साथ अन्याय होगा।