मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के अनुसार तलाक के आधार :

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 की धारा 2 के तहत महिला विवाह के विघटन के लिए एक डिक्री प्राप्त करने की हकदार तभी होती है, यदि-

  1. जहां पति के बारे में पत्नी को सात साल से अधिक समय से कोई  सूचना ही नहीं है।
  2. पति दो साल से अधिक समय से भरण पोषण देने में विफल रहा है।
  3. पति को सात साल या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा सुनाई गई है।
  4. पति सात साल से अधिक की अवधि के लिए अपने वैवाहिक दायित्वों को निभाने में विफल रहा है।
  5. विवाह के समय पति नपुंसक था।
  6. पति दो साल से अधिक समय से मानसिक रूप से अस्वस्थ है।
  7. पति एक असाध्य रोग से पीड़ित था।
  8. उसका पति उसके साथ क्रूरता से पेश आता है।

सायरा बानो विरुद्ध भारत संघ व अन्य, 2017

इस मामले में अनुच्छेद 13 (1) के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 14 के तहत तलाक-उल-बिअद्दत या तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया गया था। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि 1937 का अधिनियम उस सीमा तक शून्य है जहां तक ​​वह तीन तलाक को मान्यता देता है और लागू करता है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, सरकार को तीन तलाक को अवैध और अपराधी बनाने के लिए एक कानून बनाना होगा।

2019 में मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम को, विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके पति द्वारा तलाक शब्द बोल कर तलाक पर रोक लगाने के लिए अधिनियमित किया गया था।

धारा 3 के अनुसार मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को तलाक की घोषणा, मौखिक या लिखित या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी अन्य तरीके से, अमान्य और अवैध है।

धारा 4 के अनुसार, यदि कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, तो उसे 3 साल की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।