मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने मई 2023 में केंद्र सरकार से महिलाओं सेक्स की सहमति की उम्र 18 साल से घटाकर 16 करने का अनुरोध किया था।

दरअसल मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष 2020 में एक नाबालिग़ लड़की के साथ बारबार हुए बलात्कार और उसे गर्भवती करने का मामला सामने आया था। इस मामले में शिकायतकर्ता नाबालिग़ थी और वो याचिकाकर्ता से कोचिंग ले रही थी. बलात्कार के आरोप में एक कोचिंग देने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ दायर की गई एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.

इस मामले में न्यायधीश का कहना था, ”आजकल के समय में 14 साल का हर लड़का या लड़की सोशल मीडिया को लेकर जागरुक है. उन्हें इंटरनेट की सुविधा भी आसानी से उपलब्ध है और वहीं बच्चे कम उम्र में प्यूबर्टी को हासिल कर रहे हैं। ”

न्यायालय का मानना था कि आमतौर पर किशोर लड़के और लड़कियों में दोस्ती होती है और उसके बाद उनमें आकर्षण होता है और उनमें शरीरिक संबंध बनते हैं। प्यूबर्टी की वजह से लड़के और लड़की एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते हैं जिसका नतीजा ये होता है कि वे सहमति से शारीरिक संबंध बना लेते हैं। लेकिन लड़की की उम्र 18 वर्ष से काम होने के कारण लड़के पर बलात्कार का आरोप लग जाता है और उसका सारा जीवन बर्बाद हो जाता है।

न्यायालय का कहना था, ”कोर्ट इस समूह के किशोरों के शारीरिक और मानसिक विकास को देखे तो तार्किक तौर पर ये समझेगा कि ऐसा व्यक्ति अपनी चेतना से अपने भलाई का फ़ैसला ले सकता है.”

इस मामले की सुनवाई के उपरान्त जस्टिस अग्रवाल ने कहा, ”मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि महिला शिकायतकर्ता की उम्र 18 से घटा कर 16 कर दी जाए ताकि किसी के साथ अन्याय न हो.”

क्या 18 साल से कम उम्र के लड़के लड़कियों को संबंध बनाने की सहमति देने का अधिकार मिलना चाहिए ?

दक्षिण भारत में 18 साल के व्यक्ति को ही व्यस्त माना जाता है और उससे कम उम्र के व्यक्ति को किसी भी तरह की सहमति देने का अधिकार नहीं है, चाहे वह विवाह हो, सेक्स हो या संपत्ति से जुड़ा अधिकार हो।

भारत में वयस्कता से जुड़े कानून

भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 (Indian Majority Act, 1875) के अनुसार 18 साल के युवा की मालिक यानी व्यस्त माने जाते हैं और तभी उन्हें कई तरह के अधिकार प्राप्त होते हैं।

2012 में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पॉक्सो एक्ट लागू किया गया था। इस कानून में 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को ‘बालक’ के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके तहत १८ साल से काम उम्र के बालक की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं होती। अगर 18 साल से कम उम्र के साथ सहमति से भी संबंध बनाए जाते हैं तो वो भी अपराध की श्रेणी में आता है।

भारतीय संविधान में भी 61 वा संविधान संशोधन करके 18 साल के व्यक्ति को चुनाव में वोट डालने और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का अधिकार दिया गया था।

बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अनुसार भारत में विवाह की उम्र लड़के के लिए 21 वर्ष एवं लड़की के लिए 18 वर्ष बताई गई है। 18 वर्ष से कम उम्र में विवाह करने पर वह विवाह अवैध माना जाता है। ऐसा विवाह करने एवं करवाने वाले व्यक्तियों को सजा का प्रावधान है।

हालांकि केंद्र सरकार लड़कियों की विवाह की उम्र को बढाए जाने पर विचार कर रही है और इसको 18 से बढ़ा कर 21 वर्ष करने पर भारत की जनता व सिविल सोसाइटियों से सुझाव भी मांगे गए हैं।

कर्नाटक और मध्यप्रदेश के उच्च न्यायलय इस विषय पर अपना अपना पक्ष पहले ही रख चुके हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा था कि विधि आयोग को सहमति से बनाए गए संबंधों में उम्र के मानदंडों पर दोबारा विचार करना चाहिए।

उच्च न्यायालय की डिवीज़न बेंच का कहना था कि कोर्ट के सामने ऐसे कई आपराधिक मामले आ रहे हैं जहां नाबालिग़ लड़कियों को लड़कों से प्यार हुआ है । इन मामलों में लड़के नाबालिग़ थे या कुछ समय पहले ही बालिग़ हुए और उन्होंने इन लड़कियों के साथ संबंध बनाए थे ।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उसके समक्ष आये मामले में विधि आयोग से संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र पर दोबारा विचार करने को भी कहा था।

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ भी सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में लाने को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं। एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था, ”आप जानते हैं कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्रकार के यौन कृत्य अपराध हैं। भले ही नाबालिग़ों के बीच सहमति हो। क़ानून की धारणा ये है कि 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच क़ानूनी अर्थ में कोई सहमति नहीं होती है। जज के रूप में मैंने देखा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्रश्न खड़े करते हैं। इस मुद्दे पर चिंता बढ़ रही है। किशोरों पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किए गए शोध को देखते हुए विधायिका को इस मामले पर विचार करना चाहिए। ”

भारत के विधि आयोग ने भी ‘सहमति की उम्र’ पर महिला और बाल विकास मंत्रालय से अपने विचार स्पष्ट करने का निवेदन किया है।

‘सहमति की उम्र’ कम करने के नुकसान

सहमति का अर्थ सेक्स के समय सिर्फ ‘हां’ कह देना नहीं है, बल्कि उसके परिणाम क्या होंगे यह भी देखना होगा।

बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए ही पॉक्सो क़ानून लाया गया था, वह अर्थहीन हो जाएगा।

लगभग हर मामले में कम उम्र की लड़की को और उसके घर वालों को डरा धमका कर सेक्स के समय सहमति साबित करके अपराधी सजा से बच सकते हैं।

भारत में सेक्स एजुकेशन नहीं दी जाती है, पर्याप्त जानकारी के अभाव में बच्चों को शारीरिक संबंध बनाने के परिणामों के बारे में पता ही नहीं होगा।

अगर इस दौरान लड़की गर्भवती हो जाती है तो इससे लड़के के साथ-साथ लड़की पर प्रभाव पड़ेगा,

यदि लड़की गर्भपात कराती है तो उस पर होने वाले शारीरिक और मानसिक असर को दरकिनार नहीं किया जा सकता। और यदि ऐसे संबंध से बच्चे का जन्म होता है तो इस स्थिति में समाज का दृष्टिकोण लड़की और उसके बच्चे के प्रति कैसा होगा यह भी देखना होगा।