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गर्भपात का अधिकार

महिलाओं को गर्भपात का अधिकार प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायलय का ऐतिहासिक फैसला तारीख 29 सितंबर, साल 2022, को आया है।

25 साल की एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 जुलाई 2022  को महिला की याचिका खारिज कर दी थी। महिला ने हाईकोर्ट को बताया था कि वह सहमति से फिजिकल रिलेशन के चलते प्रेग्नेंट हुई, लेकिन बच्चे को जन्म नहीं दे सकती। वह अनमैरिड है और उसके पार्टनर ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 3 अगस्त 2022 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 29 सितंबर, साल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं भी प्रेग्नेंट होती हैं और उन्हें भी कानून के तहत गर्भपात कराने का पूरा हक है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ अनमैरिड वुमन के अबॉर्शन के अधिकार तक सीमित नहीं रहा। इसमें महिलाओं का उनके शरीर पर हक, अबॉर्शन करवाने जाने वाली लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव, अनसेफ अबॉर्शन, सेक्स एजुकेशन की कमी, शादी के बाद जबर्दस्ती प्रेग्नेंसी को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने कमेंट किया।

इस फैसले की अंतर्गत उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के एक बहुत मौलिक अधिकार को कानूनी स्वीकृतिप्रदान कर दी है। इसके अंतर्गत अब अनमैरिड प्रेग्नेंट वुमन यानी बगैर शादी के प्रेग्नेंट हुई महिलाओं को भी अबॉर्शन का अधिकार है।

आइए इस ऐतिहासिक फैसले के विभिन्न कानूनीपहलुओं को आसान भाषा में समझते हैं।

कोई भी महिला शादीशुदा हो या न हो, वो अपनी इच्छा से प्रेग्नेंट हो सकती है। महिला अपनी इच्छा से प्रेग्नेंट हुई है, तो माता-पिता दोनों पर बच्चे की बराबर जिम्मेदारी है। अगर प्रेग्नेंसी महिला की इच्छा से नहीं है, तो ये उसके लिए बोझ बन जाता है, जिससे उसकी मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर असर पड़ता है।

एक महिला के शरीर पर सिर्फ और सिर्फ उसका अधिकार है। ये फैसला सिर्फ महिला ही कर सकती है कि वह अबॉर्शन करवाना चाहती है या नहीं। आर्टिकल 21 एक महिला को अबॉर्शन की अनुमति तब देता है, जब प्रेग्नेंसी की वजह से महिला के मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर असर पड़े।

MTP Act क्या है ?

1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानी MTP एक्ट बनाया गया था। 2021 में इसमें कुछ संशोधन किया गया। जिसके अनुसार, अबॉर्शन करवाने की टाइम लिमिट कुछ स्पेशल सिचुएशन में 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है।

MTP का पुराना कानून क्या कहता था और 2021 के संशोधन के बाद कानून में क्या संशोधन हुआ है?

 पुराना एक्ट:

अगर किसी महिला की प्रेग्नेंसी 12 हफ्ते की है, तो वो 1 डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन करवा सकती है। 12-20 हफ्ते के बीच अबॉर्शन करवाने के लिए 2 डॉक्टर की सलाह लेनी होगी।

2021 में बदला हुआ कानून-

12-20 हफ्ते के अंदर अबॉर्शन करवाने के लिए 1 डॉक्टर की सलाह लेनी होगी। 20-24 हफ्ते के अंदर (इसमें कुछ कंडीशन हैं) अबॉर्शन करवाने के लिए 2 डॉक्टरों की सलाह लेने के बाद इजाजत मिलेगी।

कानूनी तौर पर 5 परिस्थितियों में गर्भपात कराया जा सकता है –

  1. प्रेगनेंसी की वजह से महिला की जान खतरे में हो
  2. आशंका हो कि बच्चा विकलांग पैदा हो सकता है या किसी बड़ी विकृति के साथ पैदा हो सकता है, जैसे कोई लाइलाज बीमारी
  3. महिला मानसिक या शारीरिक तौर पर सक्षम ना हो या बच्चे का भरण पोषण और परवरिश ना कर सके
  4. महिला बलात्कार के कारण गर्भवती हुई हो या जिन रिश्तो को क़ानूनी या सामाजिक मान्यता न हो उनमे महिला गर्भवती हो जाये।
  5. यदि अवयस्क (माइनर) यानि 18 वर्ष से काम आयु की लड़की गर्भवती हो जाये।

शादीशुदा या कवांरी लड़की गर्भ के कितने हफ्ते के अंदर अबॉर्शन करवा सकती हैं ?

उच्चतम न्यायलय ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट यानी MTP Act के तहत 22 से 24 हफ्ते के अंदर अबॉर्शन का हक सभी महिलाओं को है।

अबॉर्शन का प्रोसिजर क्या है? ये कैसे होता है?

  • अबॉर्शन कभी-कभी नेचुरल भी हो जाता है, जिसे स्पॉन्टेनियस अबॉर्शन कहते हैं।
  • मेडिकल तरीके से जब प्रेग्नेंसी खत्म की जाती है, तो उसे मेडिकल अबॉर्शन कहते हैं।
  • किस तरीके से अबॉर्शन करना है, ये बहुत सी बातों पर डिपेंड करता है। जैसे- कितने महीने की प्रेग्नेंसी है, महिला की फिजिकल सिचुएशन कैसी है, महिला को हार्ट, हाई बीपी या एनेस्थीसिया जैसी कोई दिक्कत है या नहीं।
  • मेडिकल प्रोसीजर में दवाओं के जरिए और सर्जिकल तरीके से अबॉर्शन होता है।
  • सर्जिकल मेथड में यूट्रस को खाली कर दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कौन सी शर्तों का जिक्र किया गया है ?

मेडिकल प्रैक्टिशनर्स या डॉक्टर्स अबॉर्शन कराने आई महिला से कहते हैं कि इसके लिए उन्हें परिवार या पति से अनुमति लेनी होगी या तरह-तरह के डॉक्युमेंट्स मांगे जाते हैं। इन शर्तों का कानूनी आधार नहीं है। न्यालय के फैसले के अनुसार अबॉर्शन करवाने आई महिला पर मेडिकल प्रैक्टिशनर्स जबर्दस्ती की शर्तें न लगाएं, उन्हें केवल ये सुनिश्चित करना होगा कि MTP एक्ट की शर्तें पूरी हो रही हैं या नहीं।

अबॉर्शन के लिए मैरिड और अनमैरिड वुमन को किस स्पेशल अनुमति की जरूरत होती है?

  • मैरिड वुमन के साथ पति ने जबर्दस्ती सेक्स नहीं किया है, तो अबॉर्शन के लिए पति-पत्नी दोनों की सहमति चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के अनुसार पति ने पत्नी के साथ जबर्दस्ती सेक्स किया है और वो प्रेग्नेंट हो गई है, तो महिला को अबॉर्शन के लिए किसी की सहमति नहीं चाहिए।
  • अनमैरिड वुमन भी बिना किसी से अनुमति लिए अबॉर्शन करवा सकती है।
  • नाबालिग लड़की या मानसिक रूप से अक्षम महिला के केस में पेरेंट्स की सहमति जरूरी है।

एमपीटी एक्ट अनमैरिड महिलाओं के ऑपरेशन के अधिकार को कैसे परिभाषित करता है

2021 में संशोधित MPT अधिनियम में गर्भपात के लिए कहीं भी सिर्फ ‘पत्नी’ शब्द का उपयोग नहीं किया गया है।

इस अधिनियम में गर्भवती महिला शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब है कि महिला के सामाजिक हैसियत से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

अधिनियम के धारा 3 के एक्सप्लेनेशन एक में पाटनर शब्द का उपयोग किया गया है इसका मतलब है इसमें लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को भी शामिल किया गया है।

कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड्स क्या हैं, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किया है ?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि – ” हमारे देश में सेक्स एजुकेशन की कमी है। जिसकी वजह से ज्यादातर एडल्ट्स को पता ही नहीं है कि हमारा रिप्रोडक्टिव सिस्टम काम कैसे करता है और कैसे कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड्स की मदद से प्रेग्नेंसी को रोका जा सकता है। ”

सामान्य कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड्स हैं –

  • इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियां  – अनसेफ सेक्स के बाद दी जाती हैं।
  • कंडोम का इस्तेमाल – सम्बन्ध बनाते समय इस्तेमाल किया जाता है।
  • गर्भनिरोधक गोली – नियमित तौर पर दिन में एक बार ली जाती है।

गर्भनिरोधक गोलियों ( कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स ) का इस्तेमाल किसी डॉक्टर की सलाह पर ही किया जाना चाहिए।

क्या कानून के मुताबिक भारत में शादी के बाद पत्नी से जबर्दस्ती सेक्स करना अपराध है ?

इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप यानी शादी के बाद पत्नी के साथ जबर्दस रिलेशन बनाना अपराध नहीं है, लेकिन पत्नी की उम्र 15 साल से कम है, तब इसे रेप माना जाएगा।

न्यायलय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि –

” सिर्फ MTP एक्ट के लिए शादी के बाद पत्नी से जबर्दस्ती संबंध बनाने को रेप माना जाएगा। “

बहुत से लोगों का मानना है कि अगर पति, पत्नी से जबर्दस्ती संबंध बनाए और पत्नी प्रेग्नेंट हो जाए, तो इससे इतना क्या फर्क पड़ेगा कि उसे अबॉर्शन कराने की जरूरत पड़े ?

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि – ” जबर्दस्ती सेक्स से प्रेग्नेंट होने वाली पत्नी को बच्चा पैदा करने का दबाव होता है। ऐसे में महिला की मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर असर पड़ता है। “

गर्भवती पत्नी अबॉर्शन के लिए कैसे साबित करेगी कि उसके साथ पति ने जबरदस्ती की है?

इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि –

 ऐसी परिस्थिति में गर्भवती महिला को गर्भपात कराने के लिए ये जरूरी नहीं है कि महिला कानूनी प्रक्रिया से गुजरे और ये साबित करे कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती की है। “

 

 

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