‘ओनली यस मीन्स यस’ क्या है ?

दुनिया भर में लोग सोशल मीडिया और अख़बारों में कैम्पेन चला रहे हैं ‘ओनली यस मीन्स यस’। यह कैम्पेन किसी सैक्सुअल एक्ट में औरतों की सहमति के सम्बंध में जागरूकता के लिए चलाई जा रही है। यह एक आंदोलन बन गया है। इसमें लोग अपने अपने देश की सरकारों, न्यायालयों और कानून बनाने वालों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी अपराध में पीड़िता की खामोशी को उसकी सहमति न माना जाए। क्यूंकि ऐसा करने से अपराधियों को उचित सजा नहीं मिलेगी और यह गंभीर अपराध में पीड़िता के साथ अन्याय होगा।

‘ओनली यस मीन्स यस’ का अर्थ

‘ओनली यस मीन्स यस’ का हिंदी में अनुवाद होगा ‘केवल “हाँ” का मतलब ही “हाँ” है’, और इसका अर्थ है किसी सैक्सुअल एक्ट में महिला की सहमति तभी मानी जाय जब वह स्पष्ट रूप से “हाँ” कहे। किसी दवाब में, डर से या किसी अन्य वजह से विरोध न कर पाने को उसकी सहमति नहीं माना जा सकता। क्यूंकि ऐसा किसी मज़बूरी में भी हो सकता है।

कैम्पेन की शुरुवात

सन 2016 में स्पेन में पांच लोगों ने 18 साल की एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया और इसका वीडियो भी बनाया। इस वीडियो में लड़की चुपचाप दिख रही है आपत्ति नहीं कर रही। स्पेन के कोर्ट में बचाव पक्ष ने यही वीडियो पेश किया और तर्क दिया कि इसमें लड़की की ” सहमति ” साफ़ पता चल रही है। इस तर्क को मानते हुए कोर्ट ने इसे दुष्कर्म नहीं माना। तर्क दिया गया कि लड़की ने सेक्शुअल एक्ट के वक्त साफ तौर पर आपत्ति नहीं जताई इसलिए यह दुष्कर्म नहीं है। कोर्ट ने पांचों आरोपियों को दुष्कर्म के बजाय सिर्फ ” यौन उत्पीड़न ” का दोषी माना। इस फैसले के खिलाफ पूरे स्पेन में विरोध की लहर फ़ैल गयी, प्रदर्शन हुए और लोगों ने आपत्ति जताई।

स्पेन की जनता के भारी विरोध के बाद 2019 में स्पेन की सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले में अपराधियों के एक्ट को रेप मानते हुए पांचों आरोपियों को 15 साल की जेल की सजा सुनाई।

इस घटना के बाद आई जागरूकता के कारण लगभग 6 साल बाद सन 2022 में स्पेन की संसद के निचले सदन ने एक बिल पास किया है जिसमे दुष्कर्म पीड़िता को दुष्कर्म साबित करने की जरूरत नहीं है। इसके प्रावधानों के अनुसार अगर पीड़िता ने सेक्शुअल एक्ट के लिए स्पष्ट सहमति नहीं दी है, तो वो दुष्कर्म ही माना जाएगा। सिर्फ चुप रहने को या विरोध न करने को पीड़िता की सहमति नहीं माना जाएगा।

स्पेन के इस इस बिल में क्या प्रावधान हैं :

  • महिलाओं के प्राइवेट पार्ट्स को नुकसान पहुंचाना, जबरदस्ती शादी करना, यौन उत्पीड़न, यौन शोषण के लिए तस्करी जैसे मामलों में यौन हिंसा के कानून के तहत कार्रवाई की जाए
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर होने वाली यौन हिंसा पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसमें यौन हिंसा का प्रचार, बिना सहमति के पॉर्न कंटेंट बनाना सेक्शुअल एक्ट में शामिल होने के लिए ऑनलाइन इन्वाइट करना भी अपराध माना जाए
  • रेप और दूसरे यौन उत्पीड़न के मामलों को एक ही दायरे में रखा जाए। इसमें एक-समान कार्रवाई की जाए
  • अगर आरोपी ने सेक्शुअल एक्ट से पहले पीड़ित को बिना बताए कोई नशीला पदार्थ या ड्रग्स दिया तो ये भी अपराध माना जाए
  • बिना सहमति के आपत्तिजनक अथवा निजी तस्वीरें शेयर करना अपराध माना जाये
  • ऐसे विज्ञापन जो जेंडर स्टीरियोटाइप या महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को बढ़ावा देते हों उन्हें गैर-कानूनी माना जाए
  • प्रॉस्टिट्यूशन से जुड़े हर विज्ञापन पर भी बैन
  • इसमें बिना सहमति के शारीरिक संबंध बनाने वाले अपराधी को 15 साल तक की जेल का प्रावधान
  • इसके अलावा यौन हिंसा करने वाले नाबालिग अपराधियों को लैंगिक समानता की ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन दी जाए
  • डिजिटल क्षेत्र पर खास ध्यान देने के साथ पढ़ाई में भी सेक्स एजुकेशन को अनिवार्य किया जाए
  • पीड़ितों के लिए 24 घंटे चलने वाले क्राइसिस सेंटर्स भी बनाए जाएं

इस मामले के मीडिया में चर्चा में आने एवं जनता के आवाज़ उठाने के कारण पीड़िता को न्याय मिल सका। इस मामले से यह अनुमान लगता है कि हर देश में समाज के भीतर अपराधों में महिलाओं की स्थिति लगभग एक जैसी ही है। भारत में भी इसी से मिलता जुलता मामला निर्भया केस का हुआ है। इस प्रकरण में भी जनता के आक्रोश और विरोध के कारण सरकार को भारत में लगभग सभी आपराधिक कानूनों में संशोधन करना पड़ा और सजाओं को गंभीर बनाना पड़ा।

ये दोनों ही प्रकरण हमें कानून की व्याख्या करने में न्यायालयों की सीमाओं का आभास कराते हैं और अहसास दिलाते हैं कि आधुनिक समाज कहलाने के बावजूद हमें अभी महिलाओं की स्थिति पर गंभीर दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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