The Indian judiciary is responsible for interpreting and enforcing the laws of the country, and plays a critical role in protecting the rights of consumers. The Consumer Protection Act, 1986 is the primary legislation in India that provides for the protection of consumer rights. This law establishes consumer protection councils at the central and state levels, and gives consumers the right to file complaints with these councils if they feel that their rights have been violated.
इरडा क्या है – इरडा बीमा नियामक संस्था है। यह भारत में बीमा सम्बन्धी नियम बनाने हेतु सरकार द्वारा अधिकृत है।
बीमा सुगम क्या है बीमा सुगम पोर्टल के लाभ –
आज के जीवन में कंप्यूटर और मोबाइल के आ जाने से सामान और सेवाओं को खरीदने का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है। हाथ में रखी मोबाइल से आप दुनिया में कहीं भी कोई भी चीज या सेवा खरीद सकते हैं। इस ई-कॉमर्स की सुविधा के आ जाने से हम सभी का जीवन पूरी तरह से बदल गया है। अधिकांश चीजें हम ऑनलाइन अपने रोजमर्रा की जिंदगी में खरीद रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही कुछ खतरे भी जुड़ गए हैं, जिन से बचने के लिए हमें अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है। आइए हम समझते हैं, कि यह ई-कॉमर्स क्या है इससे जुड़े खतरे क्या है और इन से कैसे बचा जा सकता है।
होटल का खाना खराब लगे, तो ग्राहक क्या कर सकता है? अगर आपको लगता है कि आपको परोसे गए खाने में मिलावट है या फिर खाना सही नहीं है, तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं।
होटल का खाना खराब लगने पर ग्राहक कहां और कैसे शिकायत कर सकता है? होटल या रेस्टोरेंट का खाना खराब लगे तो ऐसे शिकायत करें –
जिस खाने का सेंपल आप लेकर आए हैं उसका लैब में टेस्ट करवाएं। खाने में खराबी या मिलावट मिलने पर होटल या रेस्टोरेंट के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी
हम सभी सुरक्षित रहना चाहते है लेकिन जीवन अनिश्चितताओं से भरा है, लेकिन किसी अनजानी घटना से चाहे वह आग हो, दुर्घटना हो, बीमारी या मौत से अचानक आर्थिक परेशानी आ सकती हैं। इसी कारण भविष्य में इस प्रकार की किसी भी घटना के जोखिम से बचने के लिए बीमा करवाया जाता है। यह बीमा जीवन का हो सकता है, आग का हो सकता है, दुर्घटना के खिलाफ, बीमारी या कोई और।
सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाकर ग्राहकों / उपभोक्ताओं को बेईमान व्यापारियों या विक्रेताओं से बचाने और ग्राहकों के मूल अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गयी है। इसी अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों को निपटाने के लिए एक तंत्र और विशेष रूप से उपभोक्ता संरक्षण मामलों के लिए उपभोक्ता न्यायालयों/ उपभोक्ता फोरम की स्थापना की गयी है। यह कानून उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रख कर बनाये गए हैं इसीलिए इसमें कोई जटिल कानूनी प्रक्रिया नहीं बनाई गयी है, बल्कि प्रक्रिया को सरल रखने का प्रयास किया गया है।
उपभोक्ता या ग्राहक कौन होता है ? उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ता का अर्थ है ‘ ऐसा कोई व्यक्ति जो किसी उत्पाद या सेवा को स्वयं इस्तेमाल करने के लिए खरीदता है, उपभोक्ता कहलाता है।’ लेकिन अपने व्यवसाय या व्यापार के लिए खरीदी गई सेवा या उत्पाद इस परिभाषा में नहीं आते हैं। यानी यदि उत्पाद या सेवा अपने व्यवसाय या व्यापार के लिए खरीदी गई है, तो वह व्यक्ति उपभोक्ता की परिभाषा में इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित नहीं होगा।