चेक बाउंस के 2 मामलों की सुनवाई पर एक नजर डालते हैं…

केस नंबर 1

चेक बाउंस के केस को लंबा खींचना

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद चेक बाउंस मामले में समझौता करने पर याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। याचिकाकर्ता निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद वह 65 लाख में समझौता करने को तैयार था। लेकिन जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच प्रभावित नहीं हुई और इस अधिनियम को न्याय का अत्याचार कहा क्योंकि याचिकाकर्ता ने मामले को दस साल तक खींचा। डिफॉल्ट राशि और एनआई अधिनियम के 138 के तहत याचिकाकर्ता को 5 लाख जमा करने का निर्देश दिया।

केस नंबर 2

चेक बाउंस केस ट्रांसफर करने की मांग

एक बुजुर्ग महिला के खिलाफ चेक बाउंस का मामला था। महिला केस को ट्रांसफर करवाना चाहती थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस की (धारा 138) शिकायत को आरोपी की सुविधा के अनुसार ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। यह देखने के बाद कि याचिकाकर्ता एक महिला और एक सीनियर सिटीजन है, जज ने कहा कि वह हमेशा व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मांग सकती है।

ये तो सिर्फ हालिया दो मामले हैं। रोजाना हजारों केस इस मामले के आते हैं। कभी न कभी आप भी इसके शिकार हुए ही होंगे।

देश भर में चेक बाउंस के 33 लाख से ज्यादा मामले इस समय लंबित यानी पेंडिंग हैं। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को निपटाने के लिए एक्सपर्ट कमेटी स्पेशल कोर्ट में बनाने की सिफारिश को माना था।

जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एस रवींद्र भट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ कहा था कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एनआई) के तहत स्पेशल कोर्ट महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में बनेगी।

चेक बाउंस क्या है?

जब भी आप किसी बैंक में अकाउंट खुलवाते हैं तो सारी प्रोसेस के साथ आपको चेक बुक की सुविधा दी जाती है। इसी चेक का इस्तेमाल हम लेनदेन में करते हैं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं- मान लें कि मैं एक दुकान का मालिक हूं। मेरी दुकान से वर्माजी ने सामान खरीदा और पेमेंट के लिए चेक दे दिया। मैंने उस चेक को बैंक में ड्रॉप किया ताकि रकम मेरे अकाउंट में डिपोजिट हो जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि वर्माजी के खाते में उतनी रकम थी नहीं जितनी उन्हें मुझे देनी थी। ऐसे में वर्माजी का चेक जो मुझे उन्होंने दिया था वो बाउंस हो गया। बैंक की भाषा में इसे dishonored cheque कहते हैं।

सिर्फ अकाउंट में पैसे नहीं होने की वजह से ही चेक बाउंस होता है?

नहीं, ऐसा सिर्फ नहीं है। बहुत से दूसरे कारण भी हैं, जिसकी वजह से बैंक किसी चेक को dishonored cheque करार कर देती हैं।

  1. लिखी गई राशि अकाउंट में ना होना या उससे कम राशि होने के कारण भुगतान ना होना
  2. चेक देने वाले का अकाउंट बंद हो गया हो
  3. चेक देने वाले का हस्ताक्षर अकाउंट में दर्ज हस्ताक्षर से मिलान नहीं हो रहा हो
  4. चेक पर ओवरराइटिंग हुई हो
  5. चेक की समय सीमा समाप्त हो गई हो
  6. नकली चेक का संदेह हो
  7. कंपनि या फर्म के चैट में उसकी मुहर ना हो
  8. ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार करता हो

चेक रिटर्न मेमो किसे कहते हैं?

 चेक बाउंस का केस जब भी होता है, बैंक लेनदार यानी जिसने चेक जमा किया है पैसे लेने के लिए उसे एक पर्ची देती है। इसे ही चेक रिटर्न मेमो कहते हैं। इसी पर्ची पर चेक बाउंस होने का कारण लिखा होता है।

क्या एक बार मेरा चेक किसी भी कारण से बाउंस हो गया तो मुझ पर केस किया जा सकता है?

नहीं, अगर आपका चेक बाउंस हो गया तो जाहिर सी बात है इसकी सूचना आपको मिल ही जाएगी। इसके बाद आपके सामने 3 महीने का समय होता है जिसमें आप दूसरा चेक लेनदार को दे दें। इस बार भी अगर चेक बाउंस हो जाएगा तब लेनदार आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

चेक बाउंस होने पर शिकायत या केस कर सकते हैं

चेक बाउंस होने पर बैंक से लेनदार को एक रसीद मिलती है जिसमें चेक बाउंस होने के कारण को दर्शाया जाता है इसके बाद वह व्यक्ति 30 दिनों के अंदर चेक जारी करने वाले व्यक्ति को एक नोटिस भेजता है जिसमें एक निश्चित समय सीमा 15 दिन या 1 माह के अंदर चैट में उल्लेखित राशि का भुगतान करने का जिक्र किया जाता है उस अवधि में भुगतान न करने की स्थिति में नोटिस भेजने के 1 माह के अंदर अदालत में केस दर्ज कराया जा सकता है।

क्या चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध है

परक्राम्य अधिनियम 1881 की धारा 138 के अंतर्गत चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है इसके लिए चेक जारी करने वाले व्यक्ति को 2 साल की सजा और चेक में उल्लेखित राशि के दुगुने तक का जुर्माना लगाया जा सकता है

चेक बाउंस का केस सिर्फ उसी कोर्ट की जूरिडिक्शन में डाला जा सकता है जिस कोर्ट की जूरिडिक्शन में चेक धारक का खाता है, उसी थाने में शिकायत दर्ज होगी।

इसके लिए क्या कोई पेनाल्टी लगती है?

 इसके लिए हर बैंक ने अलग-अलग रकम तय की है। इसे आप बैंक से ही पता कर सकते हैं।

बार-बार किसी व्यक्ति का चेक बाउंस हो रहा है तो इसका कोई निगेटिव इम्पैक्ट भी है क्या?

बिलकुल। CIBIL स्कोर खराब हो जाएगा। CIBIL स्काेर वह रिपोर्ट कार्ड है जो तय करती है कि आपको कोई बैंक लोन देगी या नहीं। इसके अलावा बैंक भी आपको कानूनी नोटिस भेज सकती है। आप भविष्य में कभी भी अपना अकाउंट नहीं खोल पाएंगे।

कुछ काम की बातें जो चेक बाउंस के केस में आपको याद रखनी चाहिए

  • नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के 138 सेक्शन में बताया गया है कि चेक अगर बाउंस हो जाता है तो जल्द से जल्द एक लीगल डिमांड नोटिस भेजना होता है। उसके बाद 45 दिन के अंदर शिकायतकर्ता को न्यायालय समक्ष पर्याप्त कोर्ट फीस जमा कर अपनी शिकायत दर्ज कराना होगा।
  • चेक बाउंस होने पर कोर्ट मामला सुनाने से पहले ही अभियुक्त से 20% राशि चेक की जमा करवा लेती है। उसके बाद केस सुना जाता है। जिस व्यक्ति को चेक दिया गया था उसे एक सबूत देना होगा। सबूत न देने पर केस खत्म कर दिया जाएगा।

 

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