चिकित्सीय लापरवाही क्या है?

किसी चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े किसी प्रोफेशनल व्यक्ति जैसे चिकित्सा नर्स टेक्नीशियन डेंटिस्ट हॉस्पिटल या हॉस्पिटल स्टाफ जो की मरीजों की देखभाल एवं इलाज के लिए सेवाएं प्रदान करते हैं, उनके द्वारा कोई लापरवाही अथवा दुर्व्यवहार किया गया है, अथवा ऐसा कोई कार्य किया गया है जो की चिकित्सा क्षेत्र के स्थापित मानकों से अलग है या विपरीत है, चिकित्सीय लापरवाही कहलाता है। रोगी की उचित देखभाल करने में विफल रहना चिकित्सीय लापरवाही होता है।

चिकित्सीय लापरवाही 3 चीज़ों से मिलकर बनता है –

1. प्रतिवादी वादी की देखभाल के कर्तव्य को पूरा नहीं करता।
2. प्रतिवादी देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन करता है।
3. वादी को इस उल्लंघन के कारण किसी प्रकार की क्षति का सामना करना पड़ता है।

 

चिकित्सक की लापरवाही के क्या परिणाम हो सकते हैं ?

इस प्रकार की लापरवाही से मरीज की कोई क्षति, चाहे वह आर्थिक, मानसिक, अथवा शारीरिक हो, हुई हो, या उसकी जान को कोई खतरा उत्पन्न हुआ हो अथवा उसकी जान चली गई हो, यह सब चिकित्सीय लापरवाही के परिणाम में शामिल होता है।

चिकित्सीय लापरवाही के लिए क्या कार्यवाही की जा सकती हैं ?

चिकित्सीय लापरवाही की कार्यवाहियों को तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है:
(i) आपराधिक – सजा अथवा जुरमाना
(ii) आर्थिक – जिसमे मरीज या उसके परिवार को क्षतिपूर्ति दी जाये।
(iii) अनुशासनात्मक कार्रवाई – पद से निलंबन अथवा कोई अन्य विभागीय कार्यवाही

1. आपराधिक कार्यवाही

चिकित्सकीय लापरवाही के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) में अलग से प्रावधान नहीं हैं। लेकिन भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के अनुसार चिकित्सीय लापरवाही हेतु चिकित्सक अथवा अस्पताल प्रबंधन पर आपराधिक दायित्व तय किया जा सकता है।

इसमें से कुछ प्रमुख है –
भारतीय दंड संहिता की धारा 337 चोट पहुंचाना
भारतीय दंड संहिता की धारा 338 (गंभीर चोट पहुंचाना), चिकित्सा लापरवाही के मामलों के संबंध में लागू किए जाते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 304(A) किसी भी जल्दबाजी या लापरवाही से किए गए कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु से संबंधित है। यदि चिकित्सकीय लापरवाही के कारण मरीज की मौत होती है तब इसमें 2 साल तक की कैद हो सकती है।

2. आर्थिक अथवा सिविल कार्यवाही

पीड़ित पक्ष उचित न्यायलय या उपभोक्ता मंचों के समक्ष जा कर क्षतिपूर्ति अथवा मुआवज़ा मांग सकता है। और अस्पताल प्रबंधन अथवा चिकित्सक को पीड़ित पक्ष को उचित मुआवजा दिया जाता है।

3. अनुशासनात्मक कार्यवाही

चिकित्सकों द्वारा व्यावसायिक कदाचार को रेगुलेट करने के लिए इंडियन मेडिकल काउंसिल अधिनियम, 1956 के तहत बनाए गए भारतीय चिकित्सा परिषद (IMC) के द्वारा व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता विनियम, 2002 बनाए गए हैं। भारतीय चिकित्सा परिषद (IMC) और उपयुक्त राज्य चिकित्सा परिषदों को इसके लिए अधिकार दिया गया है की वे चिकित्सकों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करें। इसमें अस्पताल अथवा चिकित्सक को अस्थाई या स्थाई रूप से निलंबित किया जा सकता है एवं उसे चिकित्सीय पेशे से हमेशा के लिए हटाया जा सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत चिकित्सकीय लापरवाही

उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा चिकित्‍सा पेशे को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत लाया गया है और चिकित्‍सा उपचार को ‘सेवाओं’ का नाम दिया गया है।

क्या किसी ऑपरेशन सर्जरी अथवा इलाज के परिणामों से संतुष्ट नहीं होने पर डॉक्टर या अस्पताल के खिलाफ कार्यवाही कर सकते हैं?

सामान्य तौर पर किसी इलाज अथवा ऑपरेशन या सर्जरी की गारंटी नहीं दी जा सकती।यह हर स्थिति में अलग-अलग परिणाम का हो सकता है।
यह निम्न बातों पर निर्भर करता है जैसे –

  1. मरीज की आयु
  2. मरीज की बीमारी की स्थिति
  3. मरीज की प्रतिरोधक क्षमता
  4. ऑपरेशन या सर्जरी में चिकित्सक द्वारा लिए गए त्वरित निर्णय
  5. बीमारी के डायग्नोज की प्रक्रिया

लेकिन यदि चिकित्सक, हॉस्पिटल, अस्पताल स्टाफ के द्वारा ऐसा कोई कार्य किया गया है जो की इंडियन मेडिकल काउंसिल के नियमों अथवा मानकों के खिलाफ है, अथवा नैतिक रूप से सही नहीं है तो शिकायत की जा सकती है,
उदाहरण के लिए

  1. डॉक्टर ने मरीज एवं उसके परिवार वालों को बीमारी अथवा मरीज की अवस्था की सही जानकारी नहीं दी
  2. डॉक्टर अथवा अस्पताल ने इलाज के बारे में सही जानकारी नहीं दी
  3. डॉक्टर अथवा अस्पताल ने अनुचित जांच करवाई
  4. डॉक्टर अथवा अस्पताल ने गलत भुगतान लिया
  5. कोई अधिक महंगा उपकरण बताकर एवं उसका भुगतान लेकर कोई सस्ता अथवा घटिया उपकरण लगा दिया जैसे पेसमेकर या हड्डी जोड़ने वाले रॉड
  6. मृत मरीज को जिंदा बता कर आईसीयू अथवा वेंटिलेटर पर रखना।

क्या इलाज ऑपरेशन अथवा सर्जरी करने के समय मरीज अथवा उसके परिवार वालों की सहमति आवश्यक है ?

गंभीर बीमारियों के इलाज के दौरान तथा सर्जिकल या ऑपरेशन के लिए रोगी की सहमति आवश्यक होती है। यदि रोगी सहमति देने में सक्षम नहीं है, यानी या तो वह बेहोश है या मानसिक रूप से सक्षम नहीं है तो, रोगी के परिवार जनों की स्वीकृति अनिवार्य होती है। ठीक इसी प्रकार बच्चों के इलाज के दौरान उनके माता-पिता अथवा अभिभावक की सहमति अनिवार्य होती है।

लेकिन यदि कोई ऐसी स्थिति हो की सहमति लेने के लिए समय ना हो अथवा ऑपरेशन करना अनिवार्य हो , तो जान बचाने के लिए अथवा रोगी के हित में चिकित्सक को स्वीकृति प्राप्त करने के लिए रोकना नहीं पड़ेगा, बल्कि वह सदभावना पूर्वक निर्णय लेकर इलाज अथवा ऑपरेशन कर सकता है।

चिकित्सी लापरवाही होने पर क्या करें ?

  1. सबसे पहले सम्‍बन्धित अस्‍पताल के चिकित्‍सा अधीक्षक (एम.एस.) को लिखित शिकायत दें।
  2. इस शिकायत की एक प्रति अपने क्षेत्र के मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी (सी.एम.ओ.)/सिविल सर्जन को भी दें।
  3. यदि कोई उत्तर प्राप्‍त नहीं होता है या आप सम्‍बन्धित अधिकारी द्वारा दिए गए उत्तर से सन्‍तुष्‍ट नहीं है तो आप अपनी शिकायत लिखित रूप में अपने क्षेत्र की राज्‍य चिकित्‍सा परिषद (एस.एम.सी.) को भेजें।
  4. यदि आप एस.एम.सी. के उत्तर से भी सन्‍तुष्‍ट नहीं है तो आप अपनी शिकायत भारतीय चिकित्‍सा परिषद (एम.सी.आ.) को भेज सकते हैं।
  5. यदि शिकायत आपराधिक किस्‍म की है तो पीडित उपभोक्‍ता द्वारा स्‍थानीय पुलिस थाने में शिकायत दायर की जा सकती है। पुलिस थाने में किसी प्रकार की शिकायत दर्ज कराने से पूर्व किसी अधिवक्ता की राय लेनी बेहतर होगा।
  6. चिकित्सीय लापरवाही के कारण होने वाले नुकसान के लिए आप किसी उपभोक्‍ता मंच/आयोग, सिविल न्‍यायालय और दांडिक न्‍यायालय, जैसा भी मामला हो, शिकायत दायर कर सकते हैं।
  7. चिकित्सीय लापरवाही के लिए मुझे अपनी शिकायत में क्या-क्या शामिल करना चाहिए?

चिकित्सक के साथ अपनी प्रथम बैठक से लेकर उसके साथ अपने अंतिम सम्पर्क से संबंधित सभी तथ्यों को शामिल

करते हुए आप शिकायत दर्ज करके उपभोक्ता मंच में संपर्क कर सकते हैं। चिकित्सा रिकार्डों के साथ-साथ लापरवाही के दावों का समर्थन करने संबंधी किसी अन्य चिकित्सा विशेषज्ञ की राय दावे को सुदृढ़ करेगी।

उपभोक्‍ता के रूप में रोगी / मरीज के अधिकार

उपभोक्‍ता के रूप में रोगी के निम्‍नलिखित अधिकार हैं:

  1. रोगियों को यह बताया जाना चाहिए कि उन्‍हें कौन सा उपचार/दवाएं दी जा रही हैं।
  2. उन्‍हें जोखिमों और साईड इफेक्‍ट्स, यदि कोई हों, के बारे में बताया जाना चाहिए। उन्‍हें उपचार के बारे में प्रश्‍न करने और स्‍पष्‍टीकरण मांगने का अधिकार है।
  3. रोगी को डॉक्‍टर की योग्यता (क्वालिफिकेशन) और अनुभव के बारे में जानने का अधिकार है।
  4. रोगी को यह अधिकार है कि डॉक्‍टर द्वारा शारीरिक जांच के समय उसके साथ उचित व्‍यवहार किया जाए और उसकी लाज का वांछित ध्‍यान रखा जाए।
  5. रोगी को अपनी बीमारी के प्रति गोपनीयता रखे जाने अधिकार है और डॉक्‍टर, अस्पताल एवं मेडिकल स्टाफ से भी यही आशा की जाती है।
  6. यदि रोगी को सुझाई गई दवाओं अथवा इलाज के बारे में कोई सन्‍देह है तो उसे दूसरे डॉक्‍टर की सलाह लेने का अधिकार है।
  7. रोगी को यह जानने का अधिकार है कि सुझाया गया आप्रेशन/सर्जरी क्‍या है और उसमें सम्‍भावित जोखिम क्‍या है। यदि वह अन्‍य कारणों से अचेत है अथवा निर्णय ले पाने में सक्षम नहीं है तो उसके निकट सम्‍बन्‍धी को सूचित करते हुए सहमति ली जानी आवश्‍यक है।
  8. रोगी को अनुरोध पर, डॉक्‍टर/अस्‍पताल से अपने चिकित्‍सा रिकार्डमले के कागजात लेने का अधिकार है।
  9. यदि रोगी को किसी अन्‍य अस्‍पताल ले जाने की आवश्‍यकता हो तो उसे इसका कारण जानने का अधिकार है और
  10. डॉक्‍टर के परामर्श से अपनी पसन्‍द बताने का अधिकार भी है।
  11. रोगियों को स्‍वयं द्वारा भुगतान किए गए बिलों के ब्‍यौरे जानने का अधिकार है।