हाल के दिनों में ईशनिंदा (Blasphemy) पर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है। धार्मिक कट्टर इसके लिए कठोर से कठोर कानून और मौत की सजा का प्रावधान की मांग कर रहे हैं।
आईये समझते हैं यह क्या है, इसके लिए क्या कानूनी प्रावधान है और इसके क्या दुष्परिणाम है।
दिसंबर 2023 में कश्मीर में ईशनिंदा की घटना
नवंबर और दिसंबर 2023 में कश्मीर के श्रीनगर के NIT में एक घटना सामने आई। NIT कश्मीर के मुस्लिम छात्रों ने एक हिंदू छात्र पर ईश निंदा यानी ब्लेस फेमी का आरोप लगाया। उन्होंने संस्थान में प्रदर्शन करते हुए पढ़ाई-लिखाई बंद करवा दी और हॉस्टल खाली करवा दिया। किसी बड़ी दुर्घटना को होने से रोकने के लिए संस्थान में भारी पुलिस बल और अर्ध सैनिक बल तैनात करने पड़े।
असल मामला क्या है ?
देखने में आया है कि ईशनिंदा के 99% मामलों में आपसी रंजिश और पुराने झगड़ा या लड़ाई मुख्य वजह होते हैं। दुश्मनी या बदला लेने वाले लोग मौके की तलाश में रहते हैं और किसी भी घटना पर इस निंदा का रंग चढ़ा कर बवाल मचाते हैं। मामले में भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।
असल में हिंदू छात्र श्रीनगर NIT में पढ़ाई करता है और उसने एक कश्मीरी लड़की के साथ सोशल मीडिया पर फोटो डाली थी। इस बात से वहां के मुस्लिम छात्र उस हिंदू छात्र से चिढ़ गए और उसे सबक सिखाने के लिए किसी मौके की तलाश में थे। यह मौका उन्हें तब मिल गया जब उसे हिंदू छात्र ने हमास संगठन के संस्थापक के बेटे की एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेर की जिसमें वह चरमपंथ के खिलाफ कुछ बोल रहा है। इस मौके का फायदा उठाकर लोकल छात्रों ने उसे हिंदू छात्र पर इस निंदा का आरोप लगा दिया और संस्थान में हिंसा और प्रदर्शन करने लगे।
ईशनिंदा एक संवेदनशील मामला है, जिसमें तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनते देर नहीं लगती। शहर तो क्या देश के देश बहुत कम समय में आग के हवाले कर दिए जाते हैं। ऐसी घटना की अफवाह भी उड़ जाए तो भीड़ बिना सोचे समझे दंगे करने लगती है। इसलिए ऐसे मामले में भीड़ को शांत करने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 153 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास या भाषा के आधार पर शत्रुता) और धारा 295 (पूजा स्थल को अपवित्र या क्षतिग्रस्त करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। साथ ही एनआईटी ने हिंदू छात्र को सालभर के लिए कॉलेज से हटा दिया है। इस बीच प्रदर्शन करने वालों की मांग है कि हिंदू छात्र को फांसी की सजा दी जाए जैसी की मुस्लिम देशों में दी जाती है।
ईशनिंदा (Blasphemy) क्या है?
ईशनिंदा का अर्थ है ईश्वर की निंदा करना या ईश्वर के बारे में अपशब्द कहना। कहीं-कहीं नास्तिकता यानी ईश्वर को ना मानना को भी इस निंदा ही माना जाता है।
ईशनिंदा किस प्रकार से हो सकती है
- ईश्वर के बारे में कोई अपशब्द बोलकर
- ईश्वर के बारे में अपशब्द लिखकर
- ईश्वर के बारे में कोई अपमानजनक तस्वीर बनाकर
- कोई अपमानजनक वीडियो बनाकर
- कोई अपमानजनक कार्टून बनाकर
- इस प्रकार की अपमानजनक कोई सामग्री प्रकाशित कर के
किन किन देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून है ?
बहुत सारे मुस्लिम देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून है।
- ईशनिंदा पर सबसे पहले ब्रिटेन ने साल 1860 में कानून बनाया, जो 1927 में संशोधित हुआ. बाद में मुस्लिम देश इसे लेकर और कट्टर होते चले गए.
- पाकिस्तान में सन 1986 में ईशनिंदा के दोषी को सजा-ए-मौत या उम्रकैद की सजा का प्रावधान बना। अगर पाकिस्तान की बात करें तो वहां से लगातार ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें ईशनिंदा के आरोप में लोगों को मार दिया गया।
- सऊदी अरब में भी इस्लामी कानून शरिया के तहत ईशनिंदा पर मौत की सजा मिलती है. यहां तक कि नास्तिकता की बात करने वाले भी इसी दायरे में आते हैं
- ईरान में मुस्लिम धर्म का अपमान करने पर मौत की सजा दी जाती है
- अफगानिस्तान भी इस्लामिक देश है, जहां ईशनिंदा पर फांसी या पत्थरों से मारने की सजा दी जाती है
- मिस्र समेत कई देशों में इसपर कुछ सालों से लेकर उम्रकैद तक की सजा है
- कई अफ्रीकी मुस्लिम देश इसपर मौत की सजा देते हैं
- इंडोनेशिया में एक महिला मस्जिद में पालतू कुत्ता लेकर पहुंच गई, इसे धर्म का अपमान मानते हुए उसे मौत की सजा दी गई
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अमेरिका में ईशनिंदा के बजाय अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता को अधिक महत्व दिया गया है। यहां धार्मिक ग्रंथ को जलाना या फाड़ना अत्यंत गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं आता जिसकी सजा मृत्यु दंड जैसी कठोर हो।
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ऑस्ट्रेलिया ने नब्बे के दशक में ईशनिंदा को अपराध मानना बंद कर दिया, हालांकि वहां के कई राज्य अब भी ईशनिंदा के लिए सजा का प्रावधान करते हैं।
भारत में ईशनिंदा के लिए कानून क्या है ?
भारत में ईशनिंदा के लिए अलग से कोई कठोर कानून नहीं है। हमारे यहां अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता को संविधान में स्थान दिया गया है लेकिन साथ ही साथ धार्मिक भावनाओं का भी उचित सम्मान किया जाता है। तो इसका अर्थ क्या हुआ की धार्मिक भावनाओं को ठेस भी नहीं पहुंचाई जा सकती और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी नागरिकों को उपलब्ध है।
भारतीय दंड संहिता 1862 की धारा 295 के तहत अगर कोई धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसे दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
जबकि संविधान के अनुच्छेद 19(A) में हमें फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन मिला हुआ है, जिसके साथ हम आलोचना करने के लिए आजाद हैं, जब तक कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे।
ईशनिंदा कानून के दुष्परिणाम
- बहुत सारे मासूम लोग ऐसे कट्टर कानून की आड़ में षड्यंत्रों का शिकार हो जाते हैं।
- ऐसी घटनाओं में हिंसा बहुत तेजी से भड़कती है जिस में आरोपी एवं उनके रिश्तेदार कानून तक पहुंचने से पहले ही भीड़ के गुस्से के शिकार हो जाते हैं और कई बार मारे भी जाते हैं।
- इस्लामिक देशों पर अक्सर आरोप लगता है कि वे ईशनिंदा की आड़ में माइनोरिटी (अल्पसंख्यको) पर जुल्म करते हैं। पाकिस्तान इसका जीता जगता उदाहरण है।
- इस प्रकार के कानून और उनके पालन में कट्टरता का प्रभाव अधिक रहता है।
- इस प्रकार की घटनाओं में भीड़ की मानसिकता अधिक रूप से हावी होती है, और भीड़ सिर्फ भावनाओं पर आधारित निर्णय लेती है। जैसे आरोपों को तुरंत सजा देना, या आरोपी को सीधा मृत्युदंड दे देना।
- ज्यादातर घटनाओं में की पुरानी रंजिश या झगड़ा असली वजह होता है। खासतौर से दूसरे धर्म के व्यक्ति के विरुद्ध इस प्रकार के आरोप लगाना आसान होता है। और किस प्रकार के कानून की आड़ में अपने झगड़ा या अपने दुश्मनों को खुद सामने आए बिना निपटा दिया जाता है।
- अगर आरोपी को मार डाला जाए या उसके घर को जला दिया जाए तो सजा देना मुश्किल होता है क्योंकि यह अपराध भीड़ ने किए होते हैं, और असली अपराधी भीड़ की आड़ में बच निकलते हैं।
- पुलिस भी सिर्फ त्वरित हिंसक भावनाओं को और भीड़ को शांत करने के लिए आरोपी के खिलाफ जल्दबाजी में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करके जांच चालू कर देती है।
- आरोपी के खिलाफ भीड़ द्वारा हिंसा का जो अपराध किया जाता है उसमें भीड़ को और उसमें शामिल व्यक्ति को कोई सजा नहीं मिलती।
- इस प्रकार की घटनाओं में न्याय एवं मानवता के सिद्धांतों का उचित रूप से पालन नहीं हो पाता।