एक व्यक्ति के द्वारा बीमा यानी इंश्योरेंस कराने के 13 दिन बाद उसकी मौत हो गई। इस पर बीमा कंपनी ने उसके परिजनों को बीमा का क्लेम देने से बचने के लिए प्रीमियम वापस दे दिया, और कहा कि इंश्योरेंस हुआ ही नहीं।

बीमा कंपनी के खिलाफ मृतक की पत्नी ने कोर्ट में शिकायत की।  सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बीमा कंपनी से क्लेम दिलाया। जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश राय की बेंच ने कहा कि कंपनी ने क्लेम देने से बचने के लिए अनएथिकल यानी अनैतिक रास्ता अपनाया है।  इंश्योरेंस कंपनी ने बेक डेट यानी पिछली तारीख का लेटर जारी कर क्लेम देने से मना कर दिया था। जो एक कस्टमर के साथ धोखा और कानूनन गलत था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कस्टमर के हक में फैसला दिया।

इंश्योरेंस क्या है ?

इंश्योरेंस रिस्क मैनेज करने का एक तरीका है। भविष्य में अचानक होने वाले फाइनेंशियल लॉस के लिए इंश्योरेंस कराया जाता है। जब आप इंश्योरेंस खरीदते हैं तो कंपनी को रेगुलर बेसिस पर कुछ पैसा देते हैं जिसे प्रीमियम कहा जाता है। इसके बाद जब भी आप किसी तरह की फाइनेंशियल प्रॉब्लम में होते हैं तो कंपनी आपको पॉलिसी के हिसाब से पैसा देती है।

इंश्योरेंस के प्रकार

मुख्य तौर पर इंश्योरेंस 2 तरह के होते हैं :

लाइफ इंश्योरेंस (Life Insurance) –

लाइफ इंश्योरेंस खरीदने वाले व्यक्ति की असमय मृत्यु होने पर उसके परिवार को इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से मुआवजा (पैसा) मिलता है ताकि परिवार को फाइनेंशियल हेल्प मिल सके।

इसमें भी मुख्य रूप से दो तरह की पॉलिसी होती हैं

i ) Term insurance:

टर्म इंश्योरेंस लेने वाले की अगर अचानक मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को फाइनेंशियल प्रोटेक्शन मिलता है। इसमें आप तय कर सकते हैं कि कितने समय के लिए लाइफ कवर चाहिए।

इंश्योरेंस खरीदते हुए ही मृत्यु के बाद मिलने वाला अमाउंट भी तय कर लिया जाता है। अगर निर्धारित समय के बाद भी इंश्योरेंस लेने वाला जीवित रहता है तो कोई फायदा नहीं मिलता। इसमें कम प्रीमियम पर ज्यादा कवर मिल सकता है। Term insurance का प्रीमियम Endowment policy से सस्ता होता है

ii) Endowment policy:

इस पालिसी में ग्राहक को इंश्योरेंस और इंवेस्टमेंट दोनों के लाभ मिलते है। आप यह ले सकते हैं यदि आपको सिर्फ इंश्योरेंस के साथ इन्वेस्टमेंट भी चाहिए। इसमें एक निर्धारित समय के लिए नियमित रूप से कुछ पैसा दिया जाता है। इसके बाद पॉलिसी मैच्योर होने पर अगर खरीदने वाला जीवित रहता तो उसे सेव किया हुआ पूरा पैसा एकसाथ मिल जाता है। वहीं अगर पॉलिसी खरीदने वाले की मृत्यु पॉलिसी टर्म पूरा होने से पहले हो जाती है, तो उसके पैसे के साथ-साथ एक बोनस अमाउंट भी दिया जाता है। फाइनेंशियल इमर्जेंसी आने पर पॉलिसी में लगा कुछ पैसा निकाल भी सकते हैं। इसके प्रीमियम महंगे होते हैं।

जनरल इंश्योरेंस (General Insurance)

जनरल इंश्योरेंस में गाड़ी, घर, दूकान, जानवर, फसल और हेल्थ का इंश्योरेंस शामिल होता है। मान लीजिए, आपने घर का जनरल इंश्योरेंस ले लिया। अब अगर आपके घर को किसी भी तरह का नुकसान होता है, जैसे चोरी या बाढ़ या भूकंप की वजह से छत टूटना आदि तब उसकी भरपाई का पैसा इंश्योरेंस कंपनी देती है।

इंश्योरेंस पॉलिसी के लाभ

 इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप भविष्य में होने वाली किसी अप्रत्याशित घटना से आर्थिक रूप से सुरक्षित रहते हैं। थोड़े थोड़े और कम प्रीमियम के बदले आपको भविष्य में बड़ा आर्थिक कवर मिल जाता है।

 साथ ही इंश्योरेंस की प्रीमियम पर टैक्स की छूट भी मिलती है।

आपको हुए नुकसान को तो पॉलिसी कवर करती ही है साथ ही साथ किसी अन्य व्यक्तियों को हुए नुकसान को भी बीमा से सुरक्षित किया जा सकता है।

पॉलिसी खरीदने से पहले निम्न बातों का ख्याल रखना चाहिए –

  • अलग-अलग कंपनियों की पॉलिसी देखें और समझें। अलग-अलग कंपनियों की पॉलिसी समझने के लिए इंश्योरेंस ब्रोकर से बात कर सकते हैं।
  • अगर किसी पॉलिसी को ठीक से समझना है तो एजेंट से संपर्क करें। वहीं
  • खुद से कुछ जरूरी सवाल भी करें कि आप पॉलिसी क्यों और किसके लिए खरीदना चाहते हैं। साथ ही अपना बजट देखें और तय कर लें कि कितने समय के लिए कवर चाहते हैं।
  • इंश्योरेंस कंपनी से ये जरूर पूछें कि किन कंडीशन्स में कवर क्लेम नहीं कर सकते हैं। इन्हें एक्सक्लूजन्स कहा जाता है।
  • अगर पहले से कोई पॉलिसी ली है तो उसी कंपनी से दूसरी पॉलिसी लेने पर विचार कर सकते हैं। ऐसे में कंपनियां मल्टी-पॉलिसी डिस्काउंट और लॉयल्टी प्रोग्राम के तहत कई दूसरे बेनिफिट्स दे सकती हैं।
  • इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़ी जरूरतों को हर साल रिव्यू करें।
  • पेमेंट टाले नहीं।अगर पॉलिसी रिन्यू नहीं कराना चाहते तो कंपनी को पहले से ही इन्फॉर्म कर दें।
  • पॉलिसी से जुड़ी दूसरी सर्विसेज के बारे में भी पहले से ही सारी जानकारी हासिल कर लें।

कम उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने के लाभ

कम उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी सस्ती मिल जाती है।

जैसे – 5 लाख रुपए की कवरेज के प्लान के लिए 25 साल की उम्र में 5000 रुपए प्रीमियम, 35 की उम्र में 6000 रुपए का प्रीमियम और 45 की उम्र में 8000 रुपए का प्रीमियम देना होगा।

आजकल ज्यादातर कंपनियां अपने एम्पलॉय को इंश्योरेंस देती है। यह सोचकर यंगस्टर्स अलग से इश्योरेंस नहीं लेते हैं। याद रखें कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी बीमार पड़ने की आशंका बढ़ेगी, जिसके खर्चे एम्पलॉयर इंश्योरेंस से पूरे नहीं हो पाएंगे। इसलिए अलग से मेडिकल इश्योरेंस जरूर लें।

खराब लाइफस्टाइल की वजह से कम उम्र में ही दिल, लंग्स, किडनी से जुड़ी बीमारियां होने लगी हैं। साथ ही हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में रेगुलर हेल्थ चेकअप, काउंसलिंग, स्क्रीनिंग और जरूरी वैक्सीनेशन करा सकते हैं।

इंश्योरेंस कंपनी की शिकायत

अगर किसी कंपनी से इंश्योरेंस खरीदा है और उससे जुड़ी कोई परेशानी आ रही है और कंपनी सुनने को तैयार नहीं है, तो ऐसे उसकी शिकायत इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI में कर सकते हैं।

  • सबसे पहले कंपनी के ग्रीवांस रिड्रेसल ऑफिसर के पास शिकायत लिखित में दर्ज कराएं। इसमें जरूरी डॉक्युमेंट्स अटैच करें।
  • शिकायत करने पर डेट के साथ रिसीविंग भी लें।
  • इंश्योरेंस कंपनी अगर 15 दिनों के अंदर कोई हल नहीं निकालती है तो IRDAI से संपर्क करें।
  • IRDAI के कंज्यूमर मामलों के डिपार्टमेंट में ग्रीवांस रिड्रेसल सेल से संपर्क करें।
  • टोल फ्री नंबर: 155255 या 18004254732 पर कॉल करें।
    मेल करें: [email protected]

इसके अलावा

  • IRDAI की ऑफिशियल वेबसाइट से अपनी शिकायत फॉर्म डाउनलोड कर लें। फॉर्म भरकर और जरूरी डॉक्यूमेंट्स अटैच करके डाक और कोरियर के जरिए इस पते पर भेजें-

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई),

उपभोक्ता मामले विभाग – शिकायत निवारण कक्ष,

सर्वे नं. – 115/1, फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट,नानकरामगुडा,

गच्चिबावली, हैदराबाद- 500032.

अगर पालिसी लेते समय ग्राहक गलत जानकारी दें

जब भी हम किसी इंश्योरेंस कंपनी से पॉलिसी खरीदते हैं तो एक कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें यह बात भी लिखी होती है कि अगर कस्टमर द्वारा दी गई जानकारी गलत निकली तो कंपनी के पास अधिकार होता है कि उसके लिए क्लेम न दें।

इसी तरह अगर आपको अस्थमा, हार्ट रिलेटेड कोई बीमारी है और आपने पॉलिसी लेते वक्त इसे नहीं बताया तो कंपनी को कहीं से पता चल गया तो क्लेम देने मना कर सकती है।

अगर ब्लड शुगर, हाईपर टेंशन जैसी कोई बीमारी है तो जाहिर सी बात है कि इसमें रिस्क ज्यादा है। ऐसे में प्रीमियम बढ़ जाता है। अक्सर देखा जाता है कि ग्राहक को कोई बीमारी है तो हेल्थ इंश्योरेंस में ज्यादा प्रीमियम देने से बचने के लिए गलत जानकारी देते हैं या बीमारी की बात छिपा लेते हैं। इसी आधार पर कम्पनी क्लेम देने से इंकार कर देती है।

पैसों के लिए क्लेम करने से पहले किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?

  • सभी डॉक्युमेंट्स, जरूरी रिकॉर्ड और रसीदों को संभाल कर रखें।
  • सभी रिकॉर्ड्स, रसीद और डॉक्युमेंट्स की हार्ड और सॉफ्ट कॉपी दोनों रखें।
  • बारिश से हुए सभी प्रकार के नुकसान को लिखकर रखें।
  • आप फोटो और वीडियो भी बना सकते हैं।
  • घर के सभी सामानों की एक लिस्ट जरूर बनाएं।
  • क्लेम फाइल करते वक्त घर के सामान की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
  • इस बात का ख्याल भी रखें कि क्लेम निर्धारित समय सीमा के अंदर करना है।
  • इंश्योरेंस से रिलेटेड सभी नियम और अपडेट्स की रेगुलर जांच करें।