उत्तर प्रदेश के आगरा में एक युवक की 7 साल पहले यानी 27 जनवरी 2016 को शादी हुई थी। सुहागरात पर उसे पता चला कि पत्नी सम्बन्ध नहीं बना सकती है क्यूंकि वह किन्नर थी। उसने पत्नी का इलाज कराया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। जिसके बाद उस युवक ने कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन दिया । जून 2023 में न्यायलय ने पति को तलाक के लिए स्वीकृति दे दी है।

कोर्ट का फैसला

शादी से पहले दुल्हन ने अपने महिला न होने की बात नहीं बताई थी। 7 साल तक कोर्ट में मुकदमा चलने के बाद सबूतों के आधार पर कुटुंब न्यायलय ने विवाह को शून्य घोषित करने को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने शादी को शून्य घोषित कर विवाह विच्छेद के आदेश जारी कर दिए हैं। हिन्दू विवाह कानून के अंतर्गत इस प्रकार की परिस्थिति में शादी शून्य घोषित हो सकती है। इस मामले में भी कोर्ट ने शादी शून्य घोषित कर विवाह-विच्छेद का आदेश जारी किया।

विवाह के लिए झूठ बोलने, धोखाधड़ी करने और बात छिपाने के मामले में महिला अथवा पुरुष जिस ने भी झूठ बोलै है या जानकारी छिपाई है उस के खिलाफ शादी शून्य करने का दावा कुटुंब न्यायलय में पेश करना होगा। शिकायतकर्ता चाहे तो सम्बंधित पुलिस थाने में भी केस दर्ज करा सकता है।

हिन्दू विवाह विधि के अंतर्गत तलाक के अलावा भी विवाह को समाप्त किया जा सकता है। शादी कोर्ट के आदेश के तहत खत्म हो जाती है, और दोनों पक्षों पर विवाह के उत्तरदायित्व निभाने की कोई क़ानूनी जिम्मेदारी नहीं रह जाती है। कानूनी भाषा में इसे Null and Void Marriage कहा जाता है।

तलाक और विवाह को शून्य घोषित करवाने में अंतर

तलाक होने के बाद पति और पत्नी दोनों की आर्थिक और सामजिक हैसियत के हिसाब से गुजाराभत्ता, बच्चों की कस्टडी और जैसे फैसले कोर्ट लेती है।
लेकिन शादी शून्य घोषित होने के बाद उस विवाह को शुरू से ही अमान्य माना जाता है। और इसीलिए किसी पर कोई उत्तरदायित्व नहीं डाला जाता है। इसमें गुजाराभत्ता से कोई लेना-देना नहीं होता है।

कब विवाह शुन्य घोषित हो सकता है।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 11 और 12 में के अनुसार विवाह शुन्य घोषित हो सकता है।

हिन्दू विवाह अधिनियम धारा 11. शून्य विवाह –
कोई विवाह निम्न शतों में से किसी एक का उल्लंघन करता है, तो वह अकृत और शून्य होगा :

1. द्विविवाह :

पहले पति या पत्नी के जीवित रहते हुए, तलाक लिए बिना दूसरा विवाह करना । इसका तात्पर्य यह है कि कोई अपने जीवनसाथी को पहले तलाक दिए बिना किसी और से शादी नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा कार्य करता है, तो यह गैरकानूनी है और उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 494 और धारा 495 के अनुसार दंडित किया जाएगा।

2. विवाह करने वाले व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क के हों :

विवाह के समय यदि वे मानसिक रूप से अनुपयुक्त (अनफिट) थे तो ऐसे व्यक्ति का विवाह शून्य हो जाएगा। विवाह करने वाले व्यक्ति को शादी करने से पहले कानूनी रूप से सहमति भी देनी होगी।

3. विवाह करने वाले व्यक्ति आपस में प्रतिषिद्ध नातेदारी के न हों :

प्रतिषिद्ध नातेदारी (Prohibited Relationship) हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत बताई गई है। यह भी रिश्तेदारी है जिन के अंतर्गत हिंदू समाज में विवाह स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

4. विवाह करने वाले व्यक्ति आपस में सपिण्ड न हों :

हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत ही एक परिवार में सपिंड रिश्तेदार भी बताए गए। इनके बीच विवाह भी हिंदू समाज में मान्य नहीं है। इसलिए इस प्रकार के विवाह भी शुन्य माने जाते हैं।

हिन्दू विवाह अधिनियम धारा 12 :

इस धारा के अधीन उन आधारों को वर्णित किया गया है जिनके कारण हिन्दू विवाह शून्यकरणीय हो जाता है। शून्यकरणीय विवाह ऐसा विवाह होता है जो प्रारंभ से शून्य नहीं होता है यानि प्रारंभ से इस विवाह को विधिक मान्यता प्राप्त होती है। परंतु न्यायालय द्वारा अकृतता (Nullity) अथवा शून्यता की डिक्री (निर्णय) प्रदान कर दिए जाने के पश्चात इस प्रकार का विवाह शून्य हो जाता है।

1. विवाह के समय पति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पत्नी को गर्भ होना।
2. किसी भी पक्षकार का नपुंसक होना।
3. यौन रोग
4.विवाह के लिए सहमति न होना या गलत तरीके से सहमति प्राप्त कर लेना।