दूसरी पत्नी नहीं कर सकती धारा 498 ए के अंतर्गत पति की शिकायत
जुलाई 2023 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दिए गए एक फैसले में दूसरी पत्नी द्वारा 498 A अंतर्गत की गई शिकायत को विचार योग्य नहीं माना। इस मामले में दूसरी पत्नी ने IPC की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज की थी और निचले कोर्ट ने पति को सजा सुना दी थी। लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने नीचे की कोर्ट के आदेश को पलटते हुए सजा को माफ कर दिया।
धारा 498 ए क्या है
अगर किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता करता है तो भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी 1860 की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज कराई जाती है।
इसके तहत पति अथवा पति के रिश्तेदारों द्वारा दहेज या किसी अन्य वजह से मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
लेकिन अब दूसरी पत्नी घरेलू हिंसा के मामले में कानून का सहारा नहीं ले सकती क्योंकि कानून में दूसरी पत्नी को इसका अधिकार ही नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act 1955) में दूसरी शादी को अवैध बताया गया है एवं इस पर प्रतिबंध है।
क्या है हिंदू विवाह अधिनियम
हिंदू विवाह अधिनियम या हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में लागू हुआ था। ये एक्ट हिंदूओं के अलावा बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों पर भी लागू है। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत बिना तलाक के अथवा एक पति या पत्नी के जीवित रहते, दूसरी शादी नहीं की जा सकती है। भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा- 494 के तहत भी एक पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है । इसे द्विववाह या बायगेमी (Bigamy) कहा जाता है।
दूसरे विवाह की क्या स्थिति होगी ?
अगर पति या पत्नी के जिंदा रहते हुए पति-पत्नी में से कोई भी दूसरी शादी कर लेता है तो इस शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कोई मान्यता नहीं मिलेगी। इसका मतलब यह विवाह शुन्य यानि नल एंड वॉयड यानी ( Null and void ) माना जाएगा। दूसरा विवाह करने पर भारतीय दंड संहिता के तहत 7 साल की जेल और जुर्माना देना पड़ सकता है।
क्या है कर्नाटक का मामला
इस मामले में शिकायतकर्ता दूसरी पत्नी है। दोनों पांच साल साथ रहे, उनके एक बेटा भी था। जब दूसरी पत्नी को पक्षाघात सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, तो पति ने उसे मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया और उसके साथ क्रूरता की। उसने अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया, उसे अपने वैवाहिक घर से बेदखल कर दिया और उसे एक छोटी सी दुकान चलाकर अपने दम पर रहने के लिए मजबूर किया। पति ने उसे दुकान चलाने पर नुकसान पहुंचाने और दुकान जलाने की धमकी भी दी। पति के क्रूर व्यवहार को सहन करने में असमर्थ, दूसरी पत्नी ने पुलिस अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज कराई।
इस मामले में सुनवाई के पश्चात ट्रायल कोर्ट ने पति को आईपीसी की धारा 498ए के तहत दोषी ठहराया, जिसके बाद में पति की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की गई।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय
इस मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि दूसरी पत्नी द्वारा पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (क्रूरता) के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है।
अदालत ने कंथाराजू द्वारा दायर अपील याचिका को सुनकर उसकी दूसरी पत्नी द्वारा दायर शिकायत पर धारा 498-ए के लिए उसे दोषी ठहराने वाले नीचे के ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया, और पति की सजा माफ कर दी।
उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, “ अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि इस मामले में शिकायतकर्ता की शादी कानूनी रूप से वैध है या वह याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। जब तक, यह साबित नहीं हो जाता कि वह याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है, निचली अदालतों को साक्ष्य के आधार पर यही मानना चाहिए था कि शिकायतकर्ता दूसरी पत्नी थी। एक बार जब शिकायतकर्ता को पति की दूसरी पत्नी माना जाता है, तो जाहिर है, आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर शिकायत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इसी फैसले में आगे कहा कि प्रावधान 498-ए में बताया गया है, “महिला, इसके तहत कानूनी रूप से विवाहित पत्नी का मतलब है और इसमें शामिल है..। यह स्वीकृत तथ्य है कि शिकायत करने वाली महिला, पति की दूसरी पत्नी थी।”
इसलिए अदालत ने यह आदेश दिया कि कि दूसरी पत्नी द्वारा पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर की गई शिकायत अदालत मैं धारा 498A तहत सुनवाई योग्य नहीं है।