पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि समाज में अपराधियों के प्रति तुरंत बदले की कार्रवाई करने की भावना बहुत जोर शोर से उठाई जा रही है समाज में यह इच्छा प्रबल हो रही है कि अपराधियों को तुरंत दंड मिले चाहे वह शारीरिक हो या आर्थिक।

हैदराबाद में वेटरनरी डॉक्टर के बलात्कार के बाद जलाकर मार डालने के आरोपियों को पुलिस के द्वारा जब उसी मौके पर जांच के लिए ले जाया गया और वहां उन्हें गोली मार दी गई तो जनता ने उन पुलिस अधिकारियों का सम्मान फूल बरसा कर उनकी जय-जयकार के नारे लगाकर किया था।

इसी प्रकार की घटना यूपी के गैंगस्टर अभय दुबे के मामले में हुई थी जब पुलिस की रेट के दौरान गैंगस्टर अभय दुबे ने पुलिस वालों की हत्या कर दी थी और फरार हो गया था। उसे पकड़ने गई यूपी पुलिस के अधिकारियों ने रास्ते में गाड़ी पलटने से के कारन भागने के दौरान गैंगस्टर अभय दुबे काएनकाउंटर कर दिया था।  उसका घर भी गिरा दिया गया।

कई लोग इसका समर्थन करते हैं।  लेकिन समाज का एक बड़ा तबका यह मानता है कि इस प्रकार की घटनाएं अपराधियों को तुरंत दंड देने की सामाजिक इच्छा का परिणाम है चाहे वह समाज की हो या पुलिस अधिकारियों की। सुस्त न्याय प्रणाली में न्याय मिलने में 20 – 30 साल लग जाते हैं। ऐसे में तुरंत न्याय करने के उद्देश्य से अपराधियों को दंड देने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

इसी से मिलती-जुलती मानसिकता आरोपियों के घर बुलडोजर से गिरा देने की है। कई लोग इन कार्रवाइयों को ग़ैर-क़ानूनी और बदले की कार्रवाई बताते हैं.

वे सवाल उठाते हैं कि क्या क़ानून किसी व्यक्ति का अपराध सिद्ध होने पर उसका घर गिराने की इजाज़त देता है. उनका मानना है कि  मौजूदा क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी संदिग्ध के घर पर बुलडोज़र चलाया जाए. सरकार ये कहती है कि बुलडोज़र नगर निगम से जुड़े क़ानून के उल्लंघन के लिए चलाया गया है. अगर ऐसा है तो भी सरकार को नोटिस और नोटिस के बाद सुनवाई का मौका देना चाहिए. यहां जो कुछ हो रहा है, वह नगर निगम के क़ानून के उल्लंघन की वजह से नहीं हो रहा है. ये किसी व्यक्ति के प्रोटेस्ट या अन्य किसी घटना में शामिल होने के संदेह होने पर की गई बदले की कार्रवाई है. ये सरासर ग़ैर-क़ानूनी है. भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उसका घर गिरा दिया जाए. जबकि अधिकांश मामलों में तो अभी जांच और न्यायालय द्वारा विचारण हुआ ही नहीं है। अभी भी मात्र आरोपी ही थे जब उनका घर गिरा दिया गया। न्यायालय के द्वारा अभी उनका अपराध सिद्ध नहीं हुआ था।

क़ानून में सिर्फ़ इतना प्रावधान है कि दोषी ठहराए गए व्यक्ति पर जुर्माना लगाया जा सकता है जिसे बाद में पीड़ित पक्ष को दिया जा सकता है. लेकिन आज तक कोई ऐसा क़ानून नहीं बना है जिसके आधार पर अगर कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसका घर गिराया जाए.”

इस संदर्भ मेंउत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की राय भी जानना आवश्यक है। वे भी इन कार्रवाइयों को संविधान सम्मत नहीं मानते हैं। वे कहते हैं कि अपराध रोकने के नाम पर क़ानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। अपराधों को रोकने के लिए प्रशासन का चुस्त होना ज़रूरी है, इसके लिए क़ानून को नहीं तोड़ा जा सकता है. ऐसा नहीं हो सकता कि अपराध रोकने के लिए सीआरपीसी, कोर्ट और क़ानून के राज को अनदेखा कर दिया जाए।

पूर्व वित्त मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने किसी प्रकार की एक घटना पर सुप्रीम कोर्ट से स्वतः  संज्ञान लेने के अनुरोध का एक ट्वीट किया था , –

“मैं सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करता हूं कि यूपी सरकार द्वारा लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाना ‘उचित प्रक्रिया’ का खुले तौर पर उल्लंघन है, इसका स्वत:संज्ञान लिया जाए. कार्यपालिका को एक साथ पुलिस, अभियोजक और न्यायाधीश बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती.”

बुलडोज़र जैसी कार्रवाई का समर्थन बढ़ने के संभावित कारण –

  1. घर गिराने जैसी कार्यवाही को  अपराध के ख़िलाफ़ सरकार केकड़े रुख की तरह देखा जाता है।
  2. राजनीतिक पार्टियों को चुनाव में लाभ मिलता है।
  3. जनता में संदेश जाता है कि प्रशासन कुछ कर रहा है और पीड़ित के साथ है।
  4. संवेदनशील मुद्दा होने के कारण मीडिया में इसे हाथों हाथ लिया जाता है।
  5. कुछ समय पहले तक आरोपियों को तुरंत पकड़ लेना ही बड़ी कार्यवाही माना जाता था लेकिन जनता न्यायालय के बजाय सरकार से आरोपियों के खिलाफ तुरंत और कड़ी कार्यवाही चाहती है।
  6. सरकार को लगता है कि इससे अपराधियों में एक कड़ा संदेश जाएगा और अपराध कम हो सकते हैं
  7. अपराधियों के आर्थिक संसाधनों पर चोट करके उन्हें कमजोर किया जा सकता है।
  8. अधिकांश मामलों में सरकार का यह कहना है कि अपराधियों के यह घर अवैध रूप से बनाए गए थे।