ई–प्रशासन, लघु शोध, अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल

Page content

अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय

भोपाल, मध्य प्रदेश

“ ई – प्रशासन ”

सायबर विधि – स्नातकोत्तर पत्रोपाधि (एक वर्षीय) पाठ्यक्रम  की अंशपूर्ति हेतु प्रस्तुत

लघु शोध प्रबंध

सत्र : 2016-17

निर्देशक

प्रो. सी.एस. मिश्रा

(विभागाध्यक्ष, विधि विभाग)

मार्गदर्शक मार्गदर्शक शोधार्थी
श्रीमती अनीता लड्डा श्री योगेश पंडित नीरज पुरोहित
विधि विभाग विधि विभाग साइबर विधि
अटल बिहारी बाजपेयी हि.वि.वि. अटल बिहारी बाजपेयी हि.वि.वि. द्वितीय सेमेस्टर

अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय

भोपाल, मध्य प्रदेश

“ ई – प्रशासन ”

सायबर विधि – स्नातकोत्तर पत्रोपाधि (एक वर्षीय) पाठ्यक्रम  की अंशपूर्ति हेतु प्रस्तुत

लघु शोध प्रबंध

सत्र : 2016-17

अध्याय 1: ई प्रशासन

  1. ई प्रशासन : सामान्य परिचय
  2. शोध उद्देश्य
  3. परिकल्पना
  4. शोध पद्धति एवं उपकरण
  5. शोध सीमाएं
  6. अध्यायीकरण

अध्याय 2 : ई प्रशासन

  1. ई प्रशासन की परिभाषा
  2. ई प्रशासन की श्रेणियां
  3. ई प्रशासन के क्षेत्र
  4. ई प्रशासन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य
  5. ई प्रशासन के लाभ

अध्याय 3 : ई प्रशासन के समक्ष चुनौतियां

  1. प्रमुख चुनौतियां
  2. ई प्रशासन के जोखिम एवं आलोचना

अध्याय 4 : भारत में ई प्रशासन

  1. भारत में ई प्रशासन
  2. ई प्रशासन की कुछ महत्वपूर्ण योजनायें

अध्याय 5 : उपसंहार एवं सुझाव

  1. उपसंहार
  2. ई प्रशासन हेतु कुछ सुझाव

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

वाद सूची

अध्याय 1 : ई – प्रशासन

  1. ई प्रशासन : सामान्य परिचय

लोक प्रशासन में सूचना प्रो|योगिकी का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा कुछ कम्प्यूटरों को लोकल एरिया नेटवर्क से जोड़कर किया गया था। एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन नेटवर्क नामक यह परियोजना ही विस्तारित होकर वल्र्ड वाइड वेब (www) का रूप ले चुकी है। भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में नेशनल इंफ़ॉर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना ई-शासन की दिशा में पहला कदम था। प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना ही ई प्रशासन का उद्देश्य है।

‘ई- प्रशासन‘ नामक शब्दावली का प्रचलन दुनिया में 90 के दशक से प्रारंभ हो गया था। भारत में यह शब्दावली नब्बे के दशक के अंत में चर्चा में आने लगी। शुरू में तो ई प्रशासन का अर्थ ‘सरकारी कामकाज में कम्प्यूटर का उपयोग करने‘ तक ही सीमित माना जाता था। लेकिन बाद में ई प्रशासन के साथ शब्द प्रयोग होने लगा ‘आईसीटी‘ अर्थात इनफॅार्मेशन एवं कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी यानी ई-गवनेंर्स को लागू करने में कम्प्यूटर और संचार इन दोनों तकनीकों का प्रयोग होता है। नब्बे के दशक की शुरुआत में भारत में रेलवे आरक्षण का कम्प्यूटरीकरण हुआ। आरक्षण केंद्र में जाकर ही सही, उस समय कहीं भी जाने-आने के लिए रेलवे का आरक्षण मिलना तो अपने देश में अजूबा था। लोगों को इस परियोजना से ई प्रशासन का महत्व समझ में आने लगा।

अमेरिका में दिसम्बर, 2002 में पारित ई-शासन अधिनियम-2002 के माध्यम से सूचना प्रो|योगिकी एवं जनता से लोक सेवाओं का एकीकरण हो चुका है। देश-विदेश के अधिसंख्य सरकारी विभागों, अभिकरणों तथा संगठनों की अपनी इंटरनेट वेबसाइटें खुल गई हैं। इन वेबसाइटों के माध्यम से सूचना सरकारी संगठन तुलनात्मक रूप से अधिक पारदर्शी, संवेदनशील और हितकारी सिद्ध हो सकते हैं। जैसाकि वर्तमान युग में सूचना आर्थिक विकास की कुंजी है इसलिए पूरी व्यवस्था सूचना के चारों ओर घूम रही है। वास्तव में ई-प्रशासन एक विस्तृत संकल्पना है जो मात्र शासकीय व्यवस्था से संबंध नहीं रखती अपितु इसमें राजनितिक, सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक, तकनीकी, प्रशासनिक तथा अन्य आयाम भी शामिल हैं। यदि संकीर्ण अर्थ में देखा जाए तो इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर एवं सूचना विज्ञान के क्षेत्र में विकसित हुई युक्तियों का प्रशासन में प्रयोग करना ही ई प्रशासन है जबकि इसके विपरीत विस्तृत दृष्टिकोण में इसका अर्थ किसी भी संगठन, समाज या तंत्र के विविध पक्षों को नियंत्रित, विकसित, पोषित एवं समन्वित रखने के क्रम में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना ई प्रशासन है। यह ई-नागरिक व्यवस्था का व्यापक प्रसार है।

सूचना क्रांति का भारत के ग्रामीण निर्धनों पर काफी अल्प प्रभाव पड़ा है। जन-साधारण के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी पर कार्य समूह (Working Group on Information Technology for Masses) नामक रिपोर्ट में यह व्यक्त किया गया कि, सूचना- प्रो|योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करने वाले प्रयास भारतीय समाज में सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की सुविधा प्राप्त वर्ग एवं इस सुविधा से वंचित वर्ग के मध्य नए विभाजन को जन्म दे सकते हैं। यह एक आंगुलिक (digital) विभाजन होगा, जो पहले से ही विद्यमान विषमताओं को प्रतिवलित एवं तीव्र करेगा। इसी कारण से, सरकार ने नवीन सूचना-प्रौद्योगिकी के लाभों को निर्धनता रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक प्रसारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

सूचना- प्रो|योगिकी को जनसाधारण तक पहुँचाने हेतु राज्य एवं स्थानीय सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्य काफी कम हैं, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने की उत्प्रेरणा एवं स्वीकृति प्रदान करते हैं। अनेक सृजनात्मक परियोजनाएं शुरू किए जाने के पश्चात् भी यह स्पष्ट नहीं है कि वे स्थानीय जनता की अत्यंत अनिवार्य आवश्यकताओं को प्रत्यक्षतः कहां तक पूर्ण कर सकी हैं। इन परियोजनाओं का का निर्धारण सावधानीपूर्वक अंतर-अनुशासनात्मक विश्लेषण करके किया जा सकता है।

  • शोध उद्देश्य

सूचना एवं प्रो|योगिकी के वर्तमान परिदृश्य में ई प्रशासन का क्षेत्र दिन प्रतिदिन व्यापक होता जा रहा है l शासन प्रत्येक स्तर पर आधुनिकीकरण एवं पारदर्शिता को महत्व दे रहा है, इसी कारण शासन की कई सुविधाएं तथा योजनायें आज इलेक्ट्रोनिक माध्यम से आमजन को उपलब्ध कराई जा रही हैं l शासन के स्तर पर हो रहे इन्ही बदलावों कि समीक्षा हेतु यह लघु शोध किया गया है l इस शोध के माध्यम से ई प्रशासन में होने वाले लाभ एवं चुनौतियों की समीक्षा करने का प्रयास किया गया है l

  • परिकल्पना

किसी भी विषय पर शोध कार्य प्रारंभ करने से पूर्व शोधार्थी को परिकल्पना का निर्माण करना पड़ता है, जिसके आधार पर कार्य सुचारु रुप से चल सके और पूरा हो सके।  शोध विषय ई-प्रशासन के अध्ययन में भी शोधार्थी द्वारा कुछ परिकल्पनाएं की गई है जिनके आधार पर शोध कार्य किया गया जो इस प्रकार है :

  • राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सरकारों के ई प्रशासन के प्रयास सराहनीय हैं l

  • भारत सरकार की ई प्रशासन सम्बन्धी योजनायें सुचारू रूप से चल रही हैं l

  • सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की प्रमुख योजनायें जनसाधारण के लिए उपयोगी हैं l

  • शोध पद्धति एवं उपकरण

प्रस्तुत शोध का  विषय “ई-प्रशासन” है l इस विषय में सैद्धांतिक पद्धति का प्रयोग किया गया है शोध विषय के तथ्य का संकलन द्वितीय स्त्रोत से किया गया है l उपरोक्त विषय के लिए प्राथमिक तथ्य संकलन करना मुश्किल कार्य है, अतः  प्राथमिक स्रोत का प्रयोग बहुत कम मात्रा में किया गया है और द्वितीय स्रोत के रूप में पुस्तकें एवं पाठ्य पुस्तकें, न्यायालयीन वाद, समाचार पत्र, पत्रिकाएं व इंटरनेट की मदद लेकर शोध सामग्री का संकलन किया गया है.

  • शोध सीमाएं

शोधकर्ता द्वारा शोध विषय से सम्बंधित सामग्री का अध्ययन किया गया है l समय सीमा के कारण शोध द्वितीयक स्त्रोत पर आधारित है l शोध प्रबंध शासन एवं आम जनता के पारस्परिक संबंधो को केंद्र में रख कर किया गया है l शोध में शासन की कुछ प्रमुख योजनाओं का अध्ययन किया गया है l

  • अध्यायीकरण

अध्याय 1 ई प्रशासन

प्रथम अध्याय में ई प्रशासन का सामान्य परिचय दिया गया है l इस अध्याय में शोध के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है l इसके अलावा शोध की परिकल्पना का भी उल्लेख किया गया है l इस लघु शोध में प्रयुक्त की गयी शोध पद्धति एवं उपकरणों का विवरण भी इस अध्याय में किया गया है l लघु शोध की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं l एसी कुछ सीमाओं का उल्लेख भी प्रथम अध्याय में किया गया है l प्रस्तुत लघु शोध की एक संक्षिप्त रूप रेखा को अध्यायीकरण शीर्षक के अंतर्गत लिपिबद्ध किया गया है l

अध्याय 2  ई प्रशासन

अध्याय 2 में ई प्रशासन की परिभाषा दी गयी है l इसी अध्याय के अगले भाग में ई प्रशासन की श्रेणियों को सूचीबद्ध भी किया गया है l ई प्रशासन के क्षेत्र एवं इसे प्रोत्साहित करने के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन भी  द्वितीय अध्याय में किया गया है l ई प्रशासन से होने वाले लाभों का वर्णन इस अध्याय के अंतिम भाग में विस्तार से किया गया है l

अध्याय 3 ई प्रशासन के समक्ष चुनौतियां

ई प्रशासन के सम्मुख प्रमुख चुनौतियों का वर्णन इस शोध के तृत्तीय अध्याय में किया गया है l इसके साथ ही ई प्रशासन के जोखिम एवं आलोचना भी इसी अध्याय में सम्मिलित की गयीं हैं l

अध्याय 4 भारत में ई प्रशासन

लघु शोध के चतुर्थ अध्याय में भारत में ई प्रशासन की स्थिति पर चिंतन किया गया है l इस के साथ ही साथ भारत में ई प्रशासन से सम्बंधित केंद्र एवं राज्य सरकार की कुछ महत्वपूर्ण योजनाओ पर प्रकाश डाला गया है l

अध्याय 5 उपसंहार एवं सुझाव

लघु शोध के अंतिम अध्याय में उपसंहार है l उपसंहार के उपरान्त भारत में ई प्रशासन के बेहतर क्रियान्वयन हेतु कुछ सुझाव शोधार्थी द्वारा दिए गए हैं l

अध्याय 2 : ई प्रशासन

  • ई प्रशासन की परिभाषा

ई प्रशासनसे अभिप्राय सरकार द्वारा सेवाओं एवं सूचनाओं को जनता द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले वैद्युत साधनों (electronic means) का प्रयोग कर जन-साधारण को उपलब्ध कराए जाने से है। सूचना-प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सरकार को जनता एवं अन्य अभिकरणों को सूचनाओं के प्रसार हेतु प्रक्रिया को दक्ष, त्वरित एवं पारदर्शी बनाने तथा प्रशासनिक गतिविधियों के निष्पादन में सुविधा रहती है। सामान्य शब्दों में कहें तो :

“**प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना ई प्रशासन का कहलाता है।**“

सरकार की आम नागरिकों के लिए उपलब्ध सुविधाओं को इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध कराना ई प्रशासन या ई-शासन कहलाता है। इसके अंतर्गत शासकीय सेवाएँ और सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध होती हैं। शासन व्यवस्था की प्रक्रिया को संगणक के माध्यम से ईन्टरनेट के द्वारा आम जनता तक पहुंचाना ही ई- प्रशासन कहलाता हैl

“ई प्रशासनका अर्थ है नागरिकों (जी2 सी.)**,** व्यवसायियों (जी2बी.)**,** कर्मचारियों (जी2ई.) और सरकारों (जी2जी.) को सरकारी सूचना एवं सेवाएं देने के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।“

ई प्रशासन सरकार द्वारा अपने लोगो के लिये प्रशासनिक पहल दोबारा गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने के रणनीतिक प्रयास है। इस काम के लिए सूचना एवं संचार तकनीकी एक ऐसी प्रणाली है, जो प्रशासनिक तंत्र को दक्ष एवं क्षमतावान बनाती है l

“सरकार को सूचना तकनीकी की सहायता से अपनी सेवा एवं अधिकार आम लोगो तक आसानी से सुलभ कराना ही ई प्रशासन कहलाता है l“

ई प्रशासन के माध्यम से जनता को अपने अधिकार सहजता से उपलब्ध करना भी शासन का उद्देश्य है l

  • ई प्रशासन की श्रेणियां

ई प्रशासन की कई श्रेणियां हैं l मूल रूप से सम्प्रेषण एवं लक्ष्य के आधार पर इसे श्रेणियों में बनता गया है l भारत एवं विश्व के कई देशों में ई प्रशासन कई रूपों में प्रवर्तित हैं। स्थूल रूप से ई प्रशासन संबंधी परियोजनाओं को सेवा प्रदान करने की दृष्टि से पांच श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है –

  • जी.टू.जी.-गवर्नमेंट से गवर्नमेंट तक, (सरकार से सरकार तक):

जब सरकार के किसी विभाग का दूसरे किसी विभाग से ई प्रशासन के माध्यम से संपर्क होता है तो यह श्रेणी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कहलाती है। जैसे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय, खाद्यान्नों सम्बन्धी आवश्यकताओं की सूचना कृषि मंत्रालय को भेजे या वित्त मंत्रालय अन्य मंत्रालयों को वित्तीय सूचना उपलब्ध किया जाना इत्यादि।

  1. जी.टू.सी.- गवर्नमेंट से सिटिजन तक (सरकार से जनता तक) :

सरकार एवं नागरिकों के बीच पास्परिक व्यवहार गवर्नमेंट टू सिटीजन श्रेणी में आता है जैसे आयकर विवरणी जमा कराना, विद्युत् एवं जल सम्बन्धी शिकायतें करना इत्यादि। अधिकाँश जन सुविधाएं इसी श्रेणी में आ जाएँगी l क्यूंकि  शासन का का उद्देश्य नागरिको के हित में योजनाये चलाना भी है l

  • जी.टू.बी. – गवर्नमेंट से बिजनेस (सरकार से व्यवसाय तक):

गवर्नमेंट टू बिजनेस श्रेणी के अंतर्गत सरकार व्यापार जगत से संपर्क कर लेन-देन करती है, जैसे ऑनलाइन ट्रेडिंग तथा सीमा एवं उत्पाद शुल्क संबंधी प्रकरण इत्यादि। ऑनलाइन टेंडर जारी करने एवं भरने की प्रक्रिया आदि इस श्रेणी के प्रमुख उदाहरण हैं l

  • जी.टू.ई. गवर्नमेंट से एम्प्लोयी (सरकार से कर्मचारी तक):

इसमें सरकार अपने कर्मचारियों (गवर्नमेंट टू इम्पलॉयी) से संप्रेषण करती है। यह व्यवस्था सामान्य इन्टरनेट अथवा विशेष पोर्टल पर आधारित भी हो सकती हैl यह व्यवस्था सामान्य इंटरनेट अथवा विशेषीकृत इकाइयों पर आधारित हो सकती है l

  • सी.टू.सी. सिटिजन से सिटिजन तक (नागरिक से नागरिक तक):

सिटीजन टू सिटीजन श्रेणी में नागरिकों का पारस्परिक संपर्क होता है। कई प्रकार की ऑनलाइन सेवाओं जैसे वेबसाईट अथवा पोर्टल के माध्यम से नागरिक से नागरिक तक पहुँचने की व्यवस्था की जाती है l इसमें नियंत्रण शासन अथवा जनभागीदारी के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है l

इन उपरोक्त श्रेणियों का विकास कर प्रशासन का उपसर्ग ‘ई‘- दक्षता (एफिशिएंसी), सशक्तिकरण (एम्पावरमेंट), प्रभावशीलता (इफेक्टिवनेस), आर्थिक एवं सामाजिक विकास (इकॉनोमिक एण्ड सोशल डेवलपमेंट), संवर्द्धित सेवा (एनहांस्ड सर्विस) जैसे तत्वों को हासिल करने का प्रयास करता है।

हिन्दी में ई– प्रशासन से सबसे अधिक लाभान्वित दूर–दराज के क्षेत्रों के लोग हो रहे हैं जिनके लिए अन्यथा ऐसी सुविधाएँ पारंपरिक रूप से पाना अत्यंत खर्चीला और समय लेने वाला था। इस दिशा में अभी शुरुआत ही हुई है तथा माना जा रहा है कि आने वाले समय में सभी मूलभूत सरकारी सुविधाएँ कंप्यूटर तथा मोबाइल के माध्यम से मिलने लगेंगी जिससे समय, धन तथा श्रम की बचत होगी तथा देश के विकास में योगदान मिलेगा। ई प्रशासन के ज़रिए लोग घर बैठ कर कई कार्य कर सकते हैं ।

ई प्रशासन की कुछ प्रमुख सुविधाएं –

  • वायुयान, रेल गाड़ी में सीट की बुकिंग।
  • पानी, बिजली का बिल भरना।
  • बेंको में धन जमा करना या निकालनाएवं एटीएम की सुविधा
  • जन्म एवं म्रत्यु प्रमाण पत्र लेना।
  • लोक विभाग की शिकायत करना या शिकायत की स्तिथी प्राप्त करना।
  • विद्याल्यों में दाखिला लेना या परिक्षाफल प्राप्त करना।
  • रसोई गैस के लिए आवेदन अथवा बुकिंग करना
  • रसोई गैस अथवा अन्य कोई सब्सिडी सीधे बैक खाते में प्राप्त करना
  • अपने बैंक खाते की जानकारी लेना अथवा नया खाता खुलवाना
  • प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी प्राप्त करना एवं आवेदन करना
  • रेलवे टिकट एवं आरक्षण का कम्प्यूटरीकरण
  • इंटरनेट से रेल टिकट, हवाई टिकट का आरक्षण
  • इंटरनेट से एफआईआर दार्ज करना
  • न्यायालयों के निर्णय आनलाइन उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
  • किसानों के भूमि रिकार्डों का कम्प्यूटरीकरण
  • विश्वविद्यालयो में प्रवेश के लिए आनलाइन आवेदन एवं आनलाइन काउंसिलिंग करना
  • आनलाइन परीक्षाएं आयोजित करना
  • कई विभागों के टेंडर आनलाइन भरे जा रहे हैं।
  • पासपोर्ट, गाडी चलाने के लाइसेंस आदि भी आनलाइन भरे जा रहे हैं।
  • कई विभागों के ‘कांफिडेंसियल रिपोर्ट‘ आनलाइन भरे जा रहे हैं।
  • शिकायतें आनलाइन की जा सकतीं है।
  • सभी विभागों कई बहुत सारी जानकारी आनलाइन उपलब्ध है। सूचना का अधिकार‘ के तहत भी बहुत सी जानकारी आनलाइन दी जा रही है।
  • आयकर व अन्य टैक्सों की फाइलिंग आनलाइन की जा सकती है।
  1. ई प्रशासन के क्षेत्र

ई प्रशासन का क्षेत्र काफी विस्तृत है इसमें भारत सरकार के कई विभाग और उनके द्वारा क्रियान्वित कई योजनाओं को समावेशित किया गया है. आमजन को अनेक मंत्रालयों एवं विभिन्न विभागों के द्वारा क्रियान्वित कई परियोजनाओं को ई- प्रशासन के दायरे में लाया गया है. इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की लगभग सभी योजनाएं वर्तमान समय में ई-प्रशासन के क्षेत्र में आ जाती हैl उनमे से कुछ प्रमुख हैं :

शिक्षा एवं प्रशिक्षण सेवाएं

  • स्‍कूल, कॉलेज आदि में दाखिले के लिए आवेदन एवं प्रक्रिया की जानकारी ऑनलाइन प्राप्त करना
  • स्‍कूल, कॉलेज में दाखिले हेतु ऑनलाइन आवेदन करना
  • व्‍यावसायिक पाठ्यक्रम, फ़ीस भरना ,
  • रोजगार की जानकारी प्राप्त करना एवं आवेदन करना
  • शासकीय संस्था में प्रशिक्षण इत्‍यादि प्राप्त करने हेतु आवेदन
  • ऑनलाइन कोर्स में दाखिला लेकर शिक्षण गुणवत्ता बढ़ाना
  • ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करना
  • ऑनलाइन प्रवेश पात्र जरी करना एवं परीक्षार्थी को भेजना
  • ऑनलाइन परिणाम घोषित करना

कृषि सेवाएं

  • कृषि, बागवानी, रेशम उत्‍पादन, पशुपालन आदि की जानकारी प्राप्त करना
  • मंडी, फसलों के बाजार भाव पता करना
  • मंदी में फसल बेच कर सीधे बेंक खाते में भुगतान प्राप्त करना
  • पशु चिकित्‍सा एवं नस्लों की जानकारी प्राप्त करना
  • नाबार्ड एवं सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओ की जानकारी एवं आवेदन करना
  • किसान क्रेडिट कार्ड, कृषि लोन आदि की जानकारी एवं आवेदन
  • किसान मेलों की जानकारी एवं उनमें भाग लेना
  • नवीन उपकरण एवं तकनीको का ज्ञान प्राप्त करना व उन्हें ओनलाईन मंगवाना
  • ई चौपाल के माध्यम से उन्नत एवं लाभदायक कृषि का ज्ञान प्राप्त करना
  • मौसम एवं अन्य उपयोगी जानकारी प्राप्त करना
  • कृषि विशेषज्ञ की सलाह प्राप्त करना

स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं

  • स्‍वास्‍थ्‍य जांच
  • टेलीमेडीसन,
  • रोग एवं उपचार की जानकारी ऑनलाइन प्राप्त करना
  • प्रिस्क्रिप्शन ऑनलाइन भेजना,
  • विशेषज्ञ से ऑनलाइन सलाह लेना,
  • जेनेरिक दवाईयों की जानकारी ऑनलाइन प्राप्त करना
  • वीडियो कोंफ्रेंसिंग से चिकित्सा शास्त्र का शिक्षण
  • ओपरेशन या सर्जरी के वीडियो ओडियो दिखा कर प्रक्षिक्षण देने में आसानी l

बैंकिंग और बीमा सेवाएं

  • ऑनलाइन खाते खोलना,
  • ऑनलाइन खाते को नियंत्रित करना , जानकारी प्राप्त करना ,
  • ऑनलाइन बेंकिंग,
  • मोबाईल बैंकिंग,
  • ऑनलाइन सूक्ष्‍म ऋण,
  • ऑनलाइन फसल बीमा,
  • ऋण हेतु ऑनलाइन आवेदन व स्वीकार करना ,
  • बीमा ऑनलाइन करना
  • ऑनलाइन रिचार्ग एवं भुगतान,
  • ऑनलाइन पासवर्ड भेजना , बदलना ,

मनोरंजन सेवाएं

  • ऑनलाइन फिल्‍में,
  • टेलीविजन सम्बन्धी सेवाए,
  • इंटरनेट आधारित मनोरंजन वेबसाईट सेवाएँ
  • फिल्म, नाटक आदि हेतु ऑनलाइन बुकिंग
  • डी.टी.एच. का ऑनलाइन रिचार्ज करना

जन-उपयोगी सेवाएं

  • ऑनलाइन बिल भेजना एवं उनका भुगतान,
  • ऑनलाइन ब्रोशर प्रकाशित करना,
  • ऑनलाइन बुकिंग एवं भुगतान,
  • भूमि‍ संबंधी लेखा-जोखा ऑनलाइन उपलब्ध,
  • नगर-नि‍गम की सुविधाएं ऑनलाइन होना

वाणिज्यिक सेवाएं

  • ऑनलाइन टेक्स के नोटिस देना एवं इनका भुगतान,
  • ऑनलाइन सूचनाये भेजना एवं प्राप्त करना,
  • ऑनलाइन व्यापार,
  • ऑनलाइन प्रि‍टिंग,
  • इंटरनेट ब्राउजिंग,
  • ग्रामीण स्‍तर पर बीपीओ

विदेश मंत्रालय

  • ऑनलाइन पासपोर्ट आवेदन,
  • आव्रजन सम्बन्धी सूचनाये,
  • वीज़ा और वि‍देशी पंजीकरण,
  • नागरिकता संबंधी प्रावधान,
  • अन्य ऑनलाइन गाइडलाइन व निर्देश.

पुलिस एवं जेल प्रशासन

  • ऑनलाइन शिकायत दर्ज करना
  • ऑनलाइन शिकायत पर नज़र रखना
  • संवेदनशील स्थानों की निगरानी सीसीटीवी के माध्यम से करना
  • अपराधियों का ऑनलाइन डेटाबेस बनाना
  • ऑनलाइन सूचनाएँ एवं जानकारी साझा करना ,
  • अपराधों की ऑनलाइन जाँच व अन्वेषण करना
  • गिरफ्तार व्यक्तियों की जानकारी ऑनलाइन रखना
  • जी पी एस जैसे उपकरणों से वाहनों, अपराधियों, पेट्रोलिंग टीमो की सटीक स्थिति ज्ञात करना,
  • जेलों में अपराधियों की स्थिति पर निगरानी रखना
  • जेल से ही वीडियो कोंफ्रेंसिंग के माध्यम से अपराधी के पेशी अदालत में करवाना

न्याय प्रशासन

  • ऑनलाइन केस पंजीकृत करना
  • ऑनलाइन दस्तावेज स्वीकार करना
  • ऑनलाइन रिकार्ड रखना
  • अगली पेशी एवं अन्य जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध करना,
  • आदेश तथा डिक्री ऑनलाइन उपलब्ध करना
  • ऑनलाइन समन तथा नोटिस भेजना
  • वीडियो कोंफ्रेंसिंग से पेशी तथा गवाही करवाना
  • इलेक्ट्रोनिक साक्ष्य को स्वीकार करना

उपरोक्त सेवाओं के अतिरिक्त ई-प्रशासन के अंतर्गत कई अन्य सेवाएँ आ जाती हैं l शासन के प्रयेक स्तर पर ई-प्रशासन का लाभ उठाने के प्रयास सरकारों द्वारा किये जा रहे हैं l उदाहरण के लिए अब न्यायालयों द्वारा इलेक्ट्रोनिक साक्ष्यों की ग्राह्यता को मान्यता प्रदान की गयी है l इस से इलेक्ट्रोनिक संव्यवहारों को भी विधिक मान्यता प्राप्त हो गयी है l दिल्ली राज्य बनाम मोहम्मद अफज़ल व अन्य के मामले में कोर्ट ने इलेक्ट्रोनिक अभिलेखों को साक्ष्य के रूप में मान्यता दी l अवनीश बजाज बनाम दिल्ली राज्य के मामले में अभियुक्त को ऑनलाइन वेबसाईट बाजी.कॉम पर अश्लील सामग्री बेचने के आरोप में इलेक्ट्रोनिक साक्ष्यों के आधार पर ऑनलाइन पोर्नोग्राफी के अपराध का दोषी सिद्ध किया गया था l इसी प्रकार तमिलनाडु राज्य विरुद्ध सुहास कुट्टी

नागरिकों तथा व्यवसायियों को शासकीय सेवाएँ प्रदान करने के कार्य में सुधार लाने के उद्देश्य से आरंभ की गयी राष्ट्रीय ई-शासन योजना निम्नलिखित दृष्टि द्वारा मार्गदर्शित है।

सभी सरकारी सेवाओं को सार्वजनिक सेवा प्रदाता केन्द्र के माध्यम से आम आदमी तक पहुँचाना और आम आदमी की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने लिए इन सेवाओं में कार्यकुशलता**,** पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना।

यह दृष्टि कथन अच्छे शासन को सुनिश्चित करने के लिए सरकार की प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

इस दृष्टि से इसे ग्रामीण जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। आवश्यकता समाज के उन तबकों तक पहुँचने की है जो अभी तक भौगोलिक चुनौतियों तथा जागरूकता की कमी जैसे कारणों से सरकार की पहुँच से लगभग बाहर रहे हैं। राष्ट्रीय ई-शासन योजना (NeGP) में ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों तक पहुँच के लिए प्रखण्ड स्तर तथा साझा सेवा केन्द्रों तक के सभी सरकारी कार्यालयों को राज्यव्यापी एरिया नेटवर्क (SWAN) द्वारा जोड़ा जा रहा है।

साझा सेवा वितरण केन्द्र: वर्तमान में खासकर दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को किसी सरकारी विभाग या उसके स्थानीय कार्यालय से कोई सेवा लेने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। नागरिक सेवाएँ प्राप्त करने में लोगों का काफी समय तथा पैसा खर्च होता है। इस समस्या से निबटने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ई-शासन योजना के एक भाग के रूप में प्रत्येक छ: गाँव के लिए एक कंप्यूटर तथा इंटरनेट आधारित साझा सेवा केन्द्रों की स्थापना की योजना शुरू की गई है ताकि ग्रामीणजन इन सेवाओं का आसानी से अपने निकटवर्ती केन्द्र से प्राप्त कर सकें। इन साझा सेवा केन्द्रों का उद्देश्य है ‘कभी भी, कहीं भी’ के आधार पर एकीकृत ऑनलाइन सेवा प्रदान करना।

शासन में सुधार के लिये ई-शासन अपनाना: सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग शासन को नागरिकों तक पहुँचने में सहायता दी और अध्ययन बताते है और जिसके फलस्वरूप शासन में सुधार हुआ है । इससे विभिन्न शासकीय योजनाओं की निगरानी तथा उसे लागू करना भी सम्भव हुआ है जिससे शासन की जवाबदेही तथा पारदर्शिता में वृद्धि होना की उम्मीद है। अभी तक के अनुभव इस बात की पुष्टि कर रहे है।

ई-प्रशासन न्यूनतम मूल्य पर नागरिक केन्द्रित सेवा प्रदान करने के प्रावधान के द्वारा इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर रहा है और इसके फलस्वरूप सेवाओं की माँग तथा इन्हें प्राप्त करने में कम समय लगने से यह काफी सुविधाजनक साबित हो रहा है।इसलिए, इस दृष्टि का उद्देश्य सुशासन को मज़बूती प्रदान करने के लिए ई-शासन का उपयोग करना है।  ई-शासन की विभिन्न पहल के ज़रिये लोगों को दी जा रही सेवाएँ, केन्द्र व राज्य सरकारों को अब तक वंचित समाज तक पहुंचाने में मदद कर रही हैं। साथ ही, यह समाज के मुख्यधारा से कटे हुए लोगों को शासकीय क्रियाकलापों में भागीदारी के द्वारा उनका सशक्तीकरण हो रहा है जिससे गरीबी में कमी आने की उम्मीद की जा रही जिससे सामाजिक व आर्थिक स्तर पर मौज़ूद विषमता में कमी आएगी।

  1. ई प्रशासन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य

तकनीकी के बढ़ने से, लोगो में जागरूकता तथा अधिकारों के प्रति समझ बढ़ाने में सूचना तकनीकी का महत्वपूर्ण योगदान है, इसके प्रशासनिक तंत्र, सरकारी तंत्र, सिविल समाज आदि तकनीकी के सहारे पारदर्शी एवं उत्तरदायित्व तरीके से एक दूसरे की सहायता करते है जिसमे आम लोगो की भी भागदारी होती है। जिससे परंपरागत समाज, आधुनिकता की और बढ़ता है, तथा गरीबी, बेरोजगारी, तथा सामाजिक,आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकार और संसाधनों के समान बटवारे जैसी समस्याओं का हल संभव है।

ई प्रशासन का अर्थ है नागरिकों (जी2सी.), व्यवसायियों (जी2बी.), कर्मचारियों (जी2ई.) और सरकारों (जी2जी.) को सरकारी सूचना एवं सेवाएं देने के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। एक संगठनात्मक परिप्रेक्ष्य से ई प्रशासन का अत्यधिक स्पष्ट लाभ है – वर्तमान व्यवस्था या प्रणाली की दक्षता में सुधार लाना, ताकि यह धन एवं समय बचा सके। उदाहरण के लिए, एक बोझिल दस्तावेजी प्रणाली से हट कर यदि किसी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली पर कार्य किया जाए तो यह प्रणाली जनशक्ति की आवश्यकता को कम कर सकती है और कार्य-परिचालन लागत भी घट सकती है।

नागरिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ई प्रशासन का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण लाभ (मानव चालित प्रणालियों की तुलना में) यह है कि नागरिकों को सरकारी सेवाएं ”कहीं भी और किसी भी समय“ उपलब्ध हो सकती हैं। नागरिकों के लिए ई प्रशासन के अन्य लाभों में निम्नलिखित शामिल हैं:- बहुभाषी सूचना सारांश, डिसेबल्ड-फ्रेंडली नेवीगेशन, सारांश तक पहुंच एवं सरकार से जुड़ी सूचना, सेवाओं तथा योजनाओं में नवीनतम परिवर्तनों की नियमित जानकारी। इसके अतिरिक्त, ई प्रशासन सेवाएं मुद्रित कागजों की आवश्यकता को भी कम करेंगी; इसलिए, ये एक हरे-भरे ग्रह तथा धारणीय पारिस्थितिक प्रणाली में योगदान देती हैं। इंटरनेट का उपयोग देखो और अनुभव करो की दृष्टि से सूचना को आसानी से ढूंढा जा सकता है। खराब गवर्नेंस (जो निरंकुशता, भ्रष्टाचार, पारदर्शिता का साख की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न करती हैं) को कई विकासशील देशों का एक बड़ा मुद्दा माना जाता है। ई प्रशासन का प्रभावी कार्यान्वयन ही ई प्रशासन को सक्षम बनाएगा, जिससे निरंकुशता तथा भ्रष्टाचार में कमी आने और सरकारी निर्णय लेने में नागरिकों के विनियोजन तथा सहभागिता के माध्यम से बेहतर पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी की संभावना है।

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के समावेशन में शामिल प्रयासों और देश में ई प्रशासन संबंधी कार्यक्रम देश के प्रशासनिक परिवर्तन प्रयासों के व्यापक ढांचे के भीतर तैयार किए जाने चाहिए। इस संबंध में भारत में द्वितीय प्रशासनिक आयोग (2005) की नियुक्ति की गई। आयोग नियुक्त करने में, भारत सरकार ने लोक प्रशासन व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए एक विस्तृत रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता बतायी। आयोग की सरकार के सभी स्तरों पर देश के लिए पहलकारी, अनुक्रियाशील, जवाबदेह, सतत् और कुशल प्रशासन उपलब्ध कराने के लिए उपायों का सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

इस प्रकार ई प्रशासन को सूचना एवं प्रौद्योगिकी के समावेशन के माध्यम से एक प्रकार के एक-कालिक परिवर्तन के रूप में अनुदार नहीं माना गया है। यह बेहद तर्कसंगत एवं औचित्यपूर्ण है की सुचना एवं संचार प्रद्योगिकी के समावेशन को व्यापक और सर्वंगी सरकारी सुधार का एक अभिन्न अंग बना दिया गया है।

ई प्रशाशन के कुछ अन्य उद्देश्य निम्न हैं :

  • सरकार के निर्णयों में सुधार
  • सरकार में लोगों के विश्वास में वृद्धि करना
  • सरकार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता बढ़ाना
  • सूचना युग में नागरिकों की इच्छाओं की सुव्यवस्था की योग्यता प्राप्त करना
  • नाइ चुनौतियों का सामना करने में गैर-सरकारी संगठनों, व्यवसायियों एवं इच्छुक नागरिकों को प्रभावी रूप से शामिल करना।
  • ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग भी देश-विदेश के घटनाक्रम से भली-भांति परिचित हो सकेंगे।
  • इसके माध्यम से योजनाओं एवं दस्तावेजों का सुव्यवस्थित रख-रखाव संभव हो सकेगा।
  • सूचना का अधिकार एवं ई-प्रशासन मिलकर देश के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकेंगे।
  • विभिन्न योजनाओं/परियोजनाओं की जानकारी एक आम आदमी तक इंटरनेट के माध्यम से पहुंचायी जा सकती है ताकि वे उसके बारे में जान सकें एवं लाभान्वित हो सकें।
  • ज्ञान-आधारित भारत के निर्माण में ई प्रशासन एक महत्वपूर्ण कारक है।
  • सूचनाएं सीधे सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुंच सकेंगी और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सकेगी जो शोषण का एक कारक है।
  1. ई प्रशासन के लाभ

ई प्रशासन नागरिकों एवं व्यवसाय के लिए सुगम एवं लागत हितैषी है। इसके माध्यम से बिना समय, ऊर्जा एवं पैसा गवांए सूचना प्राप्त हो जाती है। ई-शासन के लाभों में शामिल हैं- दक्षता, बेहतर सेवाएं, लोक सेवाओं तक बेहतर पहुंच और अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही।

ई प्रशासन एक ऐसा सिस्‍टम है जिससे सरकारी काम-काज में पारदर्शिता के साथ-साथ सभी सेवायें जनसामान्‍य तक तत्‍काल पहुचाया जा रही हैं, बहुत से लोगों को ऑफिसों के चक्‍कर लगाने से डर लगता था वह भी अब बडे आराम से इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं। साथ ही जनहित गारंटी अधिनियम ने ई प्रशासन में तेजी ला दी है, दफ्तरों में कर्मचारियों को समयसीमा में बॉध दिया गया है, जनहित के कामों के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी गई है, जिससे सरकारी काम-काज में लेटलतीफी और रिश्‍वतखोरी पर लगाम भी लगेगी।

ज्‍यादातर सरकारी योजनाओं की जानकारी आज इंटरनेट पर हिन्दी में उपलब्ध है। चाहे वह किसानों से सम्‍बन्धित हो या मनरेगा से सम्बंधित। आयकर भरने के साथ-साथ बिजली, पानी, फोन, बीमा आदि के लिए भुगतान करने से लेकर नौकरी के लिये फॉर्म भरने रिजल्‍ट देखने एवं आय-जाति निवास प्रमाणपत्र बनवाने जैसे काम “ई-गवर्नेंस” के माध्‍यम से इंटरनेट द्वारा बडी ही सरलता से कर सकते हैं। यहॉ तक कि अब सभी सरकारी अदालतों को भी ऑनलाइन कर दिया गया है, जिससे मुकदमों की तारीख के लिये भी आपको कोर्ट नहीं जाना होगा, जल्‍द ही संपत्ति की रजिस्ट्री और मकान के नक्‍शा पास कराने के काम भी घर बैठे ही होने लगेंगे।

देश-विदेश के अधिसंख्य सरकारी विभागों, अभिकरणों तथा संगठनों की अपनी इंटरनेट वेबसाइटें खुल गई हैं। इन वेबसाइटों के माध्यम से सूचना सरकारी संगठन तुलनात्मक रूप से अधिक पारदर्शी, संवेदनशील और जनोन्मुख सिद्ध हो सकते हैं। जैसाकि वर्तमान युग में सूचना आर्थिक विकास की कुंजी है इसलिए पूरी व्यवस्था सूचना के चारों ओर घूम रही है। वास्तव में ई-शासन एक विस्तृत संकल्पना है जो मात्र शासकीय व्यवस्था से संबंध नहीं रखती अपितु इसमें राजनितिक, सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक, तकनीकी, प्रशासनिक तथा अन्य आयाम भी शामिल हैं। यदि संकीर्ण अर्थ में देखा जाए तो इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर एवं सूचना विज्ञान के क्षेत्र में विकसित हुई युक्तियों का प्रशासन में प्रयोग करना ही ई प्रशासन है जबकि इसके विपरीत विस्तृत दृष्टिकोण में इसका अर्थ किसी भी संगठन, समाज या तंत्र के विविध पक्षों को नियंत्रित, विकसित, पोषित एवं समन्वित रखने के क्रम में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना ई प्रशासन है। यह ई-नागरिक व्यवस्था का व्यापक प्रसार है।

हिंदी व स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन

आज भारत सरकार और लगभग सभी प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें आम जनता के लिए अपनी सुविधाएँ इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध करा रही हैं। विद्यालय में दाखिला हो, बिल भरना हो या आय–जाति का प्रमाणपत्र बनावाना हो, सभी मूलभूत सुविधाएँ हिन्दी में उपलब्ध हैं। ई-प्रशासन के माध्यम से सरकार स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दे रही है इसके द्वारा कई प्रशासनिक सुविधाएं एवं कार्य अब स्थानीय भाषाओं और विशेषकर हिंदी में होने लगे हैं ।बढ़ते इंटरनेट के प्रभाव में स्थानीय व अन्य भाषाओं को लिखने एवं पढ़ने की सहजता सरलता एवं सुविधाओं के बढ़ने से सरकार के इस कार्य को और अधिक बढ़ावा मिला है। कुछ समय पहले तक इंटरनेट की एक मात्र भाषा अंग्रेजी थी जिसके कारण भारत के दूरदराज के गांव में और पिछड़े क्षेत्रों में एक बड़ा तबका इंटरनेट की सुविधाओं से वंचित रह जाता था और इसी कारण सरकार के प्रयास जनता के सारे वर्क वर्गों तक नहीं पहुंच पा रही थी।सभी सुविधाओं का लाभ सारी जनता नहीं उठा पा रही थी। किंतु स्थिति बदली है। सरकार का हिंदी विभाग एवं सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मिले-जुले प्रयासों से अब सरकार की कई सुविधाएं एवं प्रशासन की कई सुविधाएं कई स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। इंटरनेट पर अब वेबसाइट स्थानीय भाषाओं में बनने लगी है स्थानीय प्रशासन स्थानीय भाषाओं का प्रयोग करते हुए प्रशासन की सुविधाओं को आम जनता तक बड़ी सहजता से उपलब्ध करा रहा है इससे वह वर्ग भी प्रशासन में उन सुविधाओं का लाभ उठा पा रहा है जो कि पहले अंग्रेजी में उपलब्ध होने के कारण इसका लाभ नहीं उठा पाते थे

उदाहरण हेतु हिन्दी में कुछ महत्वपूर्ण वेबसाइट और लिंक:

इसी प्रकार अन्य स्थानीय भाषाओं को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है. सभी प्रकार की सुविधाओं को स्थानीय भाषा में जनता तक पहुचाया जा रहा है. नए नियमो के अनुसार अब रेल टिकिट भी अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषा में प्राप्त की जा सकती है.

सरकारी विभागों या अभिकरणों से संबंधित सूचनाएं एवं सेवाएं इण्टरानेट एवं इंटरनेट पर उपलब्ध होना एवं स्वयं सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी की आधुनिक तकनीकों का प्रशासनिक कृत्यों में प्रयोग करना, ई प्रशासन का व्यावहारिक स्वरूप है।

ई प्रशासन की अवधारणा मूल रूप से बेहतर सरकार की मान्यता को पल्लवित करती है जिसके तहत म्नौकर्शाही का छोटा आकार, प्रशासन में सच्चरित्रता, लोक सेवाओं के प्रति जवाबदेही, जनता में प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता जगाना तथा प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाना इत्यादि शामिल हैं।

ई प्रशासन के कुछ अन्य लाभ जो विशेष रूप से सामने आये हैं :

  • यह प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का संपूर्ण आत्मसात् कारण है और इसमें ई प्रशासन शामिल है।
  • इस व्यवस्था से कागजी कार्यवाही में कमी आती है तथा विलंब और बाबू राज पर रोक लगती है।
  • ई प्रशासन द्वारा टेलीकांफ्रेंस संभव हुआ है जिससे प्रशासन में दक्षता आई है।
  • इसमें एक ही कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होती और निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक कार्यक्रमों के रूप में प्रोग्राम विकसित कर दिया जाता है।
  • ई-गवर्नेस, लोक प्रशासन में स्वचालन की अवधारणा तथा प्रयासों का परिष्कृत एवं विस्तार स्वरूप है।
  • सरकारी विभागों की संगठनात्मक, कार्यात्मक एवं प्रक्रियात्मक सूचनाएं सहजता से उपलब्ध
  • विकासपरक एवं सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं का विवरण
  • आदेश पत्रों की उपलब्धता एवं भरे हुए पत्रों की स्वीकार्यता
  • पंजीकरण सुविधा
  • दस्तावेजों की प्रतिलिपियां सहेजना, खोजना एवं प्राप्त करना आसान
  • ऑनलाइन मण्डी, नीलामी तथा बिल जमा सुविधा उपलब्ध
  • अपराधियों, भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों तथा करदाताओं से सम्बंधित विवरण
  • शिकायत पंजीकरण तथा निस्तारण
  • प्रबोधन, नियंत्रण तथा मूल्यांकन की नियमित एवं निर्धारित प्रक्रियाएं
  • कागजी कार्रवाई में कमी आती है और बाबू राज पर अंकुश लगता है।
  • अधिकारियों के व्यक्तिगत दौरों, निरीक्षण, पर्यवेक्षण तथा प्रत्यक्ष नियंत्रण का स्थान दूर बैठ वार्तालाप ने ले लिया है।
  • नियंत्रण का क्षेत्र व्यापक हो गया है।
  • एक ही प्रकृति के कार्य को बार-बार करने की बजाय निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक कार्यक्रमों के रूप में विकसित कर दिया जाता है।

अध्याय 3 : ई प्रशासन के समक्ष चुनौतियां 

ई प्रशासन के विभिन्न प्रभावों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने ”सभी सरकारी सेवाएं आम आदमी को उसके स्थान पर सुगम्य कराने, सभी आम सेवाएं डिलीवरी केन्द्र उपलब्ध कराने तथा आम आदमी की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वहन करने योग्य लागत पर ऐसी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने“ के ध्येय से मई, 2006 में राष्ट्रीय ई प्रशासन योजना (एन.ई.जी.पी.) का अनुमोदन किया। तथापि, ऐसा लगता है कि भारतीय संदर्भ में ई प्रशासन के सफल कार्यान्वयन की राह में अनेक मुद्दे तथा चुनौतियां सामने खड़ी हैं। इन मुद्दों को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित कर सकते हैं; तकनीकी, आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दे। तकनीकी मुद्दों में गोयनीयता, सुरक्षा एवं बहु-मॉडल परस्पर प्रभाव शामिल हैं। आर्थिक मुद्दे मुख्य रूप से निवेश पर लाभ और लागत, पुनः उपयोगिता एवं सुवाध्यता सहित तकनीकी मुद्दों की सुरक्षा से संबंधित है।

जबकि सामाजिक मुद्दे ई प्रशासन के विकास तथा व्यापक अंगीकरण के संबंध में अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, इनमें जागरूकता अभाव और किसी बड़े वर्ग द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप में दी गई सरकारी सेवाओं का अंगीकरण एवं उपयोग शामिल हैं। ई-गवर्नमेंट सेवाओं को ग्रामीण समाज तक पहुंचाने में अन्य चुनौतियां हैं। ऐसी चुनौतियों पर नियंत्रण करने के लिए स्थानीय आवश्यकताओं का मूल्यांकन करने और इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ई प्रशासन समाधानों को प्रचलन में लाने, ग्रामीण एवं दूरस्थ इलाकों में रहने वाले जन समुदाय से सम्पर्क का प्रावधान करने, स्थानीय भाषाओं में वेब सार का विकास करने और एक मानव संसाधन ज्ञान बल का निर्माण करने की आवश्यकता है।

ऐसे मुद्दों तथा चुनौतियों पर काबू प्राप्त करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं, प्रेक्टिसनरों तथा सरकारी एजेंसियों को, ई प्रशासन के व्यापक विकास तथा विस्तार में सहायक अवसरों का सृजन करके एक सम्मिलित एवं सहयोगी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

ई प्रशासन पर बढती निर्भरता की कई बार आलोचना भी की जाती हैl कुछ ढांचागत कमियों के कारण यह अभी तक सभी स्तरों पर स्वीकार नहीं की गयी है l ई प्रशासन के क्रियान्वयन एवं निर्माण में निम्न चिंताएं एवं सबल कारक अंतर्निहित हैं।

अत्यधिक निगरानी : 

सरकार एवं इसके नागरिकों के बीच बढ़ता संपर्क दोनों तरीके से कार्य कर सकता है। एक बार ई-गवर्नमेंट विकसित होना शुरू हो जाती है और बेहद परिष्कृत बन जाती है, तो नागरिकों को व्यापक पैमाने पर सरकार के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से संपर्क करने के लिए बाध्य किया जाएगा। सम्भावना है की इससे नागरिकों की निजता भंग होगी। सरकार एवं नागरिकों के बीच इलेक्ट्रॉनिक रूप से अत्यधिक सूचनाओं का आदान-प्रदान निरंकुश व्यवस्था को पल्लवित कर सकता है। सरकार अपने नागरिकों की असीमित सूचना को प्राप्त कर सकती है और इस प्रकार नागरिक की निजता पूरी तरह से समाप्त हो सकती है।

हाल ही के समय में सरकार पर निजता में दखल देने जैसे काफी आरोप लगे हैं l विशेषकर सोशल मीडिया पर नियंत्रण लगाने के प्रयासों की काफी आलोचना की गयी l

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा 66 A को रद्द कर दिया है। न्यायलय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।

इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी। न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को लेकर इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। lयह धारा वेब पर अपमानजनक सामग्री डालने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी। कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्‍ट की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी का अधिकार सीधा प्रभावित होता है। कोर्ट ने कहा कि धारा 66 ए संविधान के तहत उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को साफ तौर पर प्रभावित करती है।

न्यायालय ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, ‘किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वो दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है।’ कोर्ट ने कहा कि सरकारें आती हैं और जाती रहती हैं लेकिन धारा 66 ए हमेशा के लिए बनी रहेगी। न्यायालय ने यह बात केंद्र के उस आश्वासन पर विचार करने से इनकार करते हुए कही जिसमें कहा गया था कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा। न्यायालय ने हालांकि सूचना आईटी एक्‍ट के दो अन्य प्रावधानों को निरस्त करने से इनकार कर दिया जो वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति देता है।

2013 में महाराष्ट्र में दो लड़कियों को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे पर सोशल मीडिया में आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बाद में कुछ NGO ने भी इस एक्ट को ग़ैरक़ानूनी बताते हुए इसे ख़त्म करने की मांग की थी।

हालांकि इस धारा का विरोध करते समय इस तथ्य को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि सोशल मीडिया पर ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो दूसरों का अपमान करने,  अफवाहें फैलाने, लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने, परेशान करने आदि के लिए उसका दुरुपयोग करते हैं। ऐसे मामलों में मनचाही टिप्पणियों का अधिकार नहीं दिया जा सकता,  ठीक उसी तरह, जैसे कि दूसरे जनसंचार माध्यमों में ऐसा करने की इजाजत उपलब्ध नहीं है। इंटरनेट पर आपराधिक कृत्यों को रोकने पर से फोकस खत्म नहीं होना चाहिए, लेकिन नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा हर कीमत पर की जानी चाहिए। सरकार को इस पर नए सिरे से सोचकर समझदारी से प्रावधान तैयार करने की जरूरत है जो इंटरनेट की लोकतांत्रिक और खुली प्रकृति की रक्षा करते हुए लोगों की निजता को भी सुरक्षित रखने की गारंटी ले।

लागत : 

ई प्रशासन में इससे सम्बद्ध प्रौद्योगिकी के विकास एवं क्रियान्वयन में अत्यधिक धन व्यय होता है। इसके लिए आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में व्यापक स्तर पर धन के निवेश की आवश्यकता होती है l यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अत्यंत खर्चीली है l इसमें प्रत्येक स्तर पर आधुनिक उपकरणों के साथ ही साथ जटिल तकनीक का भी उपयोग किया जाता है l मुख्य रूप से इंटरनेट आधारित सेवा होने के कारण इसमें निम्न आवश्यकताए होती हैं :

  • अत्यंत आधुनिक मशीनरी
  • कंप्यूटर एवं अन्य उपकरणों का संजाल
  • 24 घंटे निरंतर बिजली की आपूर्ती
  • प्रिंटर, स्केनर, बायोमीट्रिक जैसे आधुनिक उपकरण
  • दूरदराज के क्षेत्रो में सेटेलाईट के माध्यम से सेवा पहुचाना भी काफी खर्चीला उपाय है l

सभी की पहुंच में न होना : 

ई प्रशासन से तात्पर्य लगाया जाता है कि सरकार की सूचना एवं सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच हो सकती है और जो एक लोकतंत्र के लिए अच्छा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है की सभी नागरिक स्वतः सूचना एवं सेवाओं को प्राप्त करने की स्थिति में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती हैl अभी भी इंटरनेट एवं अन्य तकनीक भारत के अधिकाँश वर्ग के लिए दूर की कौड़ी है l कई गाँव अभी भी मुख्यधारा से कटे हुए हैं l जिस देश में अभी भी सड़कें, पुल, स्कूल एवं साफ़ पेयजल जैसी सुविधाएं नहीं पहुंची हैं वहां इंटरनेट की बात करना भी बेमानी है l

तकनीकी उपकरणों की मुश्किल से उपलब्धता : 

ई प्रशासन में कंप्यूटर, बेतार, संजाल, सीसीटीवी, ट्रेकिंग तंत्र, टीवी और रेडियो जैसे उपकरणों का प्रयोग शामिल होता है। विकासशील देशों में इस प्रकार तकनीकियों को अपनाना एक समस्या हो सकती है। ऑनलाइन सुविधाओं को प्रदान करने वाले केंद्र जैसे कियोस्क, अथवा ई चौपाल आदि मूलभूत सुविधाओं के अभाव में अधिकतर बंद ही पड़े रहते हैं l  यदि उपकरण खराब हो जाएँ तो उन्हें सुधरवाने की समुचित व्ययवस्था ही नहीं है l उदाहरण के लिए हम मोबाईल सेवाओ को ही ले लें l भारत में कहने के लिए तो 4 जी तकनीक भी उपलब्ध हो गयी है किन्तु वह भी ढंग से नागरिकों को उपलब्ध नहीं है l जो इंटरनेट स्पीड हमें 3 जी या 4 जी में भारत में मिलती है वह बहुत कम है l और यह भी अक्सर बाधित ही रहती है l इस सम्बन्ध में TRAI कई बार दिशा निर्देश  भी जारी कर चुका है l

पारदर्शिता एवं जवाबदेही का असत्य बोध : 

ऑनलाइन सरकारी पारदर्शिता छद्म प्रतीत होती है क्योंकि इसे स्वयं सरकार नियंत्रित करती है। सूचनाओं को इंटरनेट साइट से लोगों के लिए रखना या हटाना सरकार द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, न्यूयार्क शहर में 11 सितम्बर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अपनी सरकारी वेबसाइट से राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अधिकतर सूचनाएं हटा दी। आज कल कही भी शांति भंग होने की स्थिति में प्रशासन सब से पहले, अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट सुविधाएं बंद कर देता है l इंटरनेट के अभाव में ई प्रशासन की सभी सुविधाए स्वतः ही बंद हो जाएँगी l

एक और उदाहरण लेते हैं l हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने शासकीय कर्मचारियों के तबादले करने की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी है l आवेदन से लेकर सूची तक ऑनलाइन ही जारी हुई l किन्तु तबादले की लिस्ट मंत्रियों के द्वारा उच्च अधिकारियों द्वारा ही बनायीं गयी l प्रचारित तो यह किया गया था की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाने के कारण यह भ्रस्टाचार से मुक्त होगी किन्तु ऐसा हुआ नहीं l  प्रथम और अंतिम चरण के अतिरिक्त सभी कार्य पूर्ववत ही हुए l उतना और उसी प्रकार भ्रस्टाचार हुआ जैसा पहले होता था, और इसमें पारदर्शिता का सर्वथा अभाव रहा l इस से कर्मचारियों में यह सन्देश गया कि प्रक्रिया के कम्प्युटरीकृत होने के बावजूद समस्त कार्य मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त नहीं है l इस से ऑनलाइन प्रक्रिया के प्रति अविश्वास पैदा होता है l

निजीकरण :

कई शासकीय सेवाओ को चलाने के लिए निजी हाथो में दे दिया जाता है. निजी क्षेत्र का मुख्या उद्देश्य लाभ कमाना होता है. ऐसे में यह आलोचना की जाती है की निजी क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं को लाभ कमाने के अवसर में बदल सकता है l जिस का नुक्सान अंत में जनता को ही होगा l निजी कम्पनियों में अपनी खुद की कार्य प्रणाली होती है l यह पारदर्शी हो यह आवश्यक नहीं l शिकायत निवारण की प्रणाली हो और अगर हो भी तो वह उपभोक्ता केन्द्रित है या नहीं यह देखना भी आवश्यक है l  बिना किसी सरकारी नियंत्रण प्रणाली को विकसित किये हुए ई प्रशासन की सुविधाओं को निजी हाथों में सौपने के दूरगामी गंभीर परिणाम हो सकते हैं l

सुरक्षा :

डिजिटल वित्तीय सेवाओं के अनगिनत लाभ हैं, लेकिन इसके साथ ही गोपनीयता भंग होने का खतरा भी है जिससे उपभोक्ताओं, कारोबारियों, बाजारों और राष्ट्रों सभी का अहित होता है। भारत में कुछ भुगतान प्रणालियां दरअसल खामियों अथवा कमजोरियों से ग्रस्त हैं क्योंकि ‘अंतर्निहित संपूर्ण गोपनीयता’ सिद्धांत के आधार पर उनकी भावी डिजाइनिंग नहीं की गई थी। बैक-एंड पर अवस्थित डेटा का केंद्रीकृत स्‍टोरेज जोखिम भरा है। वहीं, फ्रंट-एंड पर घटिया अथवा दोषपूर्ण ‘कैप्चर डिवाइस’ के कारण डेटा का दुरुपयोग होने का अंदेशा है। मिडिल माइल में यहां से वहां तक बगैर मजबूत एन्क्रिप्शन के ही डेटा को ट्रांसमिट किया जाता है। अत: गोपनीयता की भावी रक्षा सुनिश्चित करने और अटूट एन्क्रिप्शन एवं खुले मानकों का उपयोग करने के लिए निश्चित तौर पर भुगतान प्रणालियों की फि‍र से डिजाइनिंग की जानी चाहिए। इसके साथ ही डेटा गोपनीयता कानून और एक मजबूत बाजार नियामक भी अत्‍यंत आवश्यक हैं।

डेटा-संचालित समस्‍त डिजिटल सेवाओं की भांति ही डिजिटल वित्तीय सेवाओं में भी उपभोक्ताओं को काफी सहूलियत तो है, लेकिन उसके बदले में उनके गोपनीय डेटा के गलत हाथों में पड़ जाने का अंदेशा है। यह सच है कि डीएफएस से विकासशील देशों के बैंकिंग सुविधाओं से वंचित एवं अपेक्षाकृम कम बैंकिंग सुविधाएं पाने वाले लोगों का वित्तीय समावेश होने की भी उम्‍मीद बंधी है। यही नहीं, सरकार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय निकायों की ओर से भी मिल रहे प्रोत्‍साहन की बदौलत भारत में डीएफएस का तेजी से विकास होना तय नजर आ रहा है। हालांकि, इसके साथ ही यह भी सच है कि डेटा की गोपनीयता एवं सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था के बिना डीएफएस अत्‍यंत जोखिम भरी है और इससे संबंधित उपभोक्‍ताओं के साथ धोखाधड़ी होने का अंदेशा है। वर्तमान में भारत में यही स्थिति देखने को मिल रही है।

धोखाधड़ी की गुंजाइश कम करने के लिए बायोमीट्रिक-प्रमाणि‍त डीएफएस को भारत में अत्यधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण से उपभोक्ताओं, व्यापारियों, सेवा प्रदाताओं और बाजार सभी के लाभान्वित होने की उम्‍मीद तो है, लेकिन प्रमाणीकरण के लिए बॉयोमीट्रिक्स के उपयोग की वैचारिक आलोचना करने वालों की कमी भी नहीं है। डेटा की गोपनीयता एवं सुरक्षा की ठोस व्यवस्था के अभाव में बायोमीट्रिक-प्रमाणि‍त डीएफएस तो सामान्य डीएफएस से भी कहीं ज्‍यादा जोखिम भरी हैं। भारत सरकार ने डेटा की गोपनीयता एवं सुरक्षा के लिए अनेक उपाय तो किए हैं, लेकिन वह अब तक इस तरह के जोखिमों को कम करने में विफल ही साबित हुई है।

हाल ही मे वानाक्राइ नाम के एक रैंसमवेयर ने विश्व के 74 देशों में करीब 45,000 कंप्यूटरों को हैक कर लिया. इसमें भारत के कंप्यूटर भी शामिल थे. अगर 22 साल के एक अनाम लड़के ने इस वायरस का पता लगाकर इसे तुरंत ही खत्म न किया होता तो यह वायरस विश्व भर में भारी तबाही ला सकता था. कुछ ही घंटो में इस वायरस ने ब्रिटेन के स्वास्थ सेवाओं को बूरी तरह से प्रभावित कर दिया. यूके के एनएचएस के अतर्गत आने वाले करीब 40 अस्पतालों में इसका प्रभाव देखा गया. एक्स-रे मशीने बंद हो गईं, सर्जरी रुक गई, एंबुलेंसों को वापस बुला लिया गया. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस रैंसमवेयर को नियंत्रित नहीं किया जाता तो कुछ ही दिनों में विश्व के करोड़ों कंप्यूटर हैक हो जातें और विभिन्न सरकारों को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अरबों रुपए खर्च करने पड़ते.

यह हमला मुख्य रूप से माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज अधारित सिस्टम पर किया गया था. माइक्रोसॉफ्ट के अनुसार उसने मार्च में ही एक सिक्योरिटी अपडेट रीलीज की थी जो कि इस तरह के खतरे को रोक सकने मं सक्षम है. कंपनी के अनुसार जिन उपभोक्ताओं ने इस अपडेट का प्रयोग किया होगा उनके सिस्टम को यह रैंसमवेयर प्रभावित नहीं कर पाया होगा. भारत के साथ समस्या यह है कि यहां ज्यादातर आधिकारिक कंप्यूटर विंडोज अधारित हैं लेकिन उपयोगकर्ताओं में इसके रेगलुर अपडेट करने की आदत नहीं है. इस वजह से ऐसे वायरसों का खतरा भारतीय कंप्यूटर्स पर कहीं अधिक है.

भारत में ढ़ेरों व्यक्तिगत किस्म के ऑनलाइन डाटा को करीब एक अरब भारतीयों के आधार डाटा से जोड़ा जा रहा है. आधार को बैंक अकाउंट, इनकम टैक्स और अन्य व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारीयों से जोड़े जाने के कारण खतरा कई गुना बढ गया है. क्योंकि आधार को बैंक अकाउंट से लिंक कियाजा रहा है, साइबर आपराधी आधार की जानकारी लेकर संबंधित बैंक अकाउंट तक पहुंच सकते हैं और मुहं मांगी फिरौती ना मिलने तक अकाउंट को निष्क्रिय बनाए रख सकते हैं.

इसके अलावा केंद्र सरकार लगातार तमाम योजनाओं के लाभ के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बना रही है। अब आधार को इनकम टैक्स रिटर्न के लिए अनिवार्य कर दिया गया है । इसके अलावा उन्होंने भविष्य में आधार को ही सभी कार्डों का विकल्प बनाए जाने की बात कही। ऐसा करने से कई प्रकार की समस्याएंहो सकती हैं.

आधार से जुड़ा सबसे बड़ा मसला सुरक्षा का है। कुछ दिनों पूर्व यूआईएडीआई ने ऐक्सिस बैंक, सुविधा इन्फोसर्व और ई-मुद्रा से जुड़े लोगों पर कार्रवाई की थी। इन पर आरोप था कि इन्होंने कार्डधारकों की बायोमीट्रिक डिटेल चोरी कर उनका बेजा इस्तेमाल किया था। इसके अलावा कार्डधारक की प्रिवेसी को लेकर भी कई बार चिंताएं जाहिर की जा चुकी हैं। गौरतलब है कि आधार ऐक्ट में ही प्रिवेसी से जुड़ी चिंताओं के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इसके अलावा डेटा मिसयूज किए जाने वालों पर किसी तरह की कानूनी कार्रवाई के बारे में भी कोई बात नहीं की गई है।

आधार ऐक्ट के तहत यूआईएडीआई के पास कार्डधारक की बायोमीट्रिक डिटेल्स को एकत्र करने का अधिकार है। फिंगर प्रिंट स्कैन के अलावा आधार के तहत डीएनए भी लिया जा सकता है। यही नहीं ऐक्ट में प्राइवेट एजेंसियों को भी आधार यूज करने का आधार दिया गया है, यह इसके पूर्व के उद्देश्य के विपरीत है। पहले कहा गया था कि आधार का मकसद सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग को रोकना है। अब रीयल एस्टेट, एयरलाइन और अन्य कंपनियां आधार की मांग करती हैं।

निजता संबंधी चुनौतियाँ :

इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। लेकिन, देश में डिजिटल ट्रांजैक्शंस में इजाफे और ई-कॉमर्स के बढ़ते इस्तेमाल के बाद प्रिवेसी कानूनों की मांग बढ़ रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड जैसे देशों ने प्रिवेसी लॉ बनाए हैं। यूएन ने अपने चार्टर में प्रिवेसी के अधिकार को ह्यूमन राइट्स में जगह दी है, लेकिन भारत में अब तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं दिखती।

इनफोसिस के को-फाउंडर और यूनिक आईडेंटिफिकेशन आथॉर्टी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन नंदन नीलकेणि ने एक बिजनेस अखबार को दिए गए इंटरव्यू में स्मार्टफोन से लोगों को सबसे ज्यादा खतरा बताया है।

नंदन नीलकेणि ने ये बात प्राइवेसी कानून के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में कही। प्राइवेसी कानून के सवाल के जवाब में नंदन नीकेणि ने कहा, ‘ लोगों की प्राइवेसी लीक का सबसे ज्यादा खतरा उनके स्मार्टफोन से होता है। देश में करोड़ों लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते है। इन स्मार्टफोन का इस्तेमाल लोग मैसेज करने और कॉलिंग में करते हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता है कि उनके कॉल या मैजेस ट्रेस किए जा सकते हैं।‘

उन्होंने यह भी कहा कि स्मार्टफोन इ्स्तेमाल करने वालो की लोकेशन जीपीएस से आराम से ट्रेस की जा सकती है। अगर आप ने अपनी लोकेशन ऑफ भी कर रखी है, तो भी आपने द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे नेटवर्क की मदद से आपकी लोकेशन ट्रैक की जा सकती है। यहां तक की स्मार्टफोन में मौजूद एक्सेलेरोमीटर और गायरोमीटर की मदद से यूजर ने शराब पी रखी या नहीं ये भी पता लगाया जा सकता है। स्मार्टफोन के इस बढ़ते इस्तेमाल में कौन कब आपका डाटा चोरी कर ले ये आप नहीं जानते।

अत्यधिक संवेदनशील डेटा अकुशल एवं अज्ञात लोगो के हाथों में होता है जो की असुरक्षित होता है. कई बार यह असामाजिक तत्वों के हाथो तक भी पहुँच जाता है. अभी हाल हि में एक वाक्य आया जिस में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान श्री महेंद्र सिंह धोनी के आधार का डेटा आधार पंजीयन केंद्र के द्वारा लीक कर दिया गया था जिस की शिकायत ट्विटर पर उनकी पत्नी ने मानव संसाधन एवं विकास मंत्री से की l इस पर संज्ञान लेते हुए सम्बंधित एजेंसी को ब्लेकलिस्ट कर दिया गया l इस मामले में कोई बड़ी क्षति तो नहीं हुई किन्तु इस ने प्रक्रिया में कई खामियों को उजागर कर दिया l इसी प्रकार के कई खतरे ई प्रशासन से जुड़े हुए है l

शिक्षा / प्रशिक्षण का अभाव :

शासकीय स्तर पर कर्मचारियों एवं अधिकारियों का तकीनीकी स्तर पर प्रशिक्षित न होना एक बड़ी समस्या है. इस कारण वे ई शाशन के प्रभावी पालन में बाधा बन रहे हैं. यही कारण है की वे ई शाशन के क्रिया कलापों एवं विकास कार्यों में अपनी अरुचि प्रदर्शित करते हैं. सभी कर्मचारियों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करने के लिए बहुत अधिक समय एवं धन की भी आवश्यकता होती है. इस कारण कुछ कर्मचारियों को ही प्रशिक्षित कर के सभी जिम्मेदारी उन पर डाल दी जाती है जिस कारण उन पर काम का अत्यधिक बोझ आ जाता है.

सरकार में सूचना और संचारतकनीक का आरंभ और उसका क्रियान्वयन कई चुनौतियों से घिरा हुआ है। ये चुनौतियां ई-सरकार के कारण सरकारी संगठनों के बीच बढ़ती हुई अंतःनिर्भरता तथा अंतः संगठनात्मक नेटवर्को के उभरने से पैदा हुई है।

तकनीकी चुनौतियां :

इसके अंतर्गत साझा आंकड़ों की परिभाषा, संचालनात्मक कार्य-प्रक्रियाएं, तकनीकी मानक एवं प्रोटोकॉल्स, सूचना गुणवत्ता, सुरक्षा, आदान-प्रदान एवं नियंत्रण, साझी सुविधाओं की लागत, तथा वस्तु पहचान एवं संख्या इत्यादि शामिल हैं। इसके बाद ई-सरकार को रूपांतरित करने के मामले पर ध्यान दिया गया है ताकि उसे ग्राहक केंद्रित और नागरिक केंद्रित बनाया जा सके। वन स्टॉप शॉप्स पोर्टल का विकास करना जो नागरिकों को व्यापक सेवाएं दे सकें। इसके लिए वेबसाइटों पर विषय-वस्तुओं का इस प्रकार प्रबंधन किया जाना शामिल है की उनमें अधिकारों, कर्तव्यों, प्रक्रियाओं, संपर्कों, अक्सर पूछे जाने जाने वाले प्रश्नों एवं फीडबैक, लेन-देन की पहचान और प्रमाणीकरण इत्यादि के लिए प्रणाली का विकास तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी पहलें निहित हो।

उदाहरण के लिए ही हम एक अन्य समस्या को लेते हैं – फॉण्ट की समस्या l यह भी एक बड़ी तकनीकी समस्या है l इसके कारण स्थानीय भाषा में कार्य करने में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है l फॉण्ट का एकीकरण न हो पाने के कारण अलग अलग समय पर अलग अलग  विभाग अलग अलग प्रकार के फॉण्ट प्रयोग करते है l यह कई प्रकार की जटिलताओं को जन्म देती है l यह समस्या हिंदी में और अधिक बढ़ जाती है l हिंदी के लिए कई अलग अलग प्रकार के फॉण्ट इस्तेमाल किये जाते हैं l जैसे कृति, देव एवं मंगल आदि l इन सब में कुछ ण कुछ भिन्नताएं हैं l हिंदी में इंटरनेट पर मंगल फॉण्ट का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है l  यह फॉण्ट पूर्ण रूप से कारगर नहीं है l हिंदी के कई अक्षरों का इसमें अभाव पाया जाता है l यह अभाव भाषा को अशुद्ध बना देता है l यह समस्या ई प्रशाशन में कई प्रकार की समस्याओ को जन्म दे सकती है l

उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के नाम में कोई अशुद्धि आ जाये तो वह एक बड़ी प्रशासनिक समस्या बन सकती है l उसे कई सुविधाओं से वंचित होना पड़ सकता है l या फिर इस अशुद्धि को दूर करवाने के लिए उसे कई दफ्तरों के चक्कर काटना पड़ सकते है, l यह समस्या आधार योजना में बड़े स्तर पर सामने आ भी चुकी है l

संगठनात्मक चुनौतियां : 

ई प्रशासन के सम्मुख पुनः संगठन की प्रक्रिया एक वृहत चुनौती प्रस्तुत करती है, जैसे :

  • नियंत्रण समाप्त होना,
  • स्वामित्व की भावना की कमी,
  • तकनीकी विशेषज्ञों में दूरदृष्टि का अभाव तथा
  • सामाजिक समस्याओं को समझने में अक्षमता तथा जड़ता।

सुस्पष्ट भूमिकाओं और दायित्वों के निर्वहन, शक्ति के क्षैतिज एवं आनुलाम्बिक विभाजन, तथा पदानुक्रमित संरचना के साथ-साथ सरकार की अफसरशाही संरचना की सूचना और संचार तकनीक के अनुप्रयोगों से इसकी स्थिरता एवं लोचहीनता के कारण-अधिक तालमेल नहीं बैठ पाता और न ही उससे अच्छी तरह अंतःसंबंध ही कायम हो पाता है।

आधारभूत ढांचे का अभाव :

ई प्रशासन की संस्थात्मक चुनौतियों का जन्म मानसिक, क़ानूनी एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों से होता है। मानसिक बाधाओं का जन्म विवेकाधिकार एवं अधिकारियों की शक्ति में कमी-खास तौर पर गली-मोहल्लों के स्तर पर तथा इस बात की परिकल्पना से होता है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने उनके सारे कार्य दायित्व अपना लिए हैं। सरकार में सूचना और संचार प्रविधि अनुप्रयोगों के समक्ष कड़ी क़ानूनी बाधाओं की शुरुआत सूचनाओं की साझेदारी से हो सकती है जिसके कारण सीमा रेखाएं अस्पष्ट हो सकती हैं, प्रामाणिक सूचना का अभाव हो सकता है तथा दायित्वशीलता का बंधन शिथिल पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत में ई प्रशासन के दायरे में शासन की नई आवश्यकताओं को शामिल करने के लिए देश की वैधानिक व्यवस्था में संशोधन किए जाने की आवश्यकता हो सकती है। जोखिम से बचने एवं नई सूझ-बूझ की कमी जैसी सांस्कृतिक बाधाएं सरकार के दायरे में सूचना और संचार तकनीकी के आत्मार्पण को हतोत्साहित कर सकती हैं।

समस्‍त डिजिटल सेवाओं में गोपनीयता और सुरक्षा के जोखिम हैं जो डेटा से जुड़े चिंताजनक तौर-तरीके अपनाने के कारण उत्‍पन्‍न होते हैं। गोपनीयता के लिहाज से चिंताजनक तौर-तरीकों में बगैर सहमति या अत्यधिक डेटा संग्रह, साझाकरण, स्‍टोरेज एवं उपयोग, अनियंत्रित डेटा ब्रोकरेज और डेटा की पहचान समाप्‍त करने में विफलता शामिल हैं। सुरक्षा के नजरिए से डेटा संबंधी चिंताजनक तौर-तरीकों में कमजोर एन्क्रिप्शन का उपयोग, कमजोर तकनीकी नियंत्रण, घटिया साइबर खुफिया और केंद्रीकृत डेटा संग्रह शामिल हैं।

डेटा-संचालित समस्‍त डिजिटल सेवाओं में गोपनीयता और सुरक्षा के जोखिम हैं जो डेटा से जुड़े चिंताजनक तौर-तरीके अपनाने के कारण उत्‍पन्‍न होते हैं। डेटा से जुड़े चिंताजनक तौर-तरीके अपनाने का प्रतिकूल असर उपभोक्ताओं, कारोबारियों और बाजार तीनों पर ही पड़ता है। उपभोक्ताओं को नुकसान डेटा लीकेज, पहचान की चोरी, भेदभाव, प्रतिष्ठात्मक क्षति और वास्तविक हानि के कारण होता है। इसी तरह कारोबारियों को नुकसान साख घट जाने, आपराधिक देनदारी और हर्जाना, क्षति एवं पेनाल्‍टी की वजह से होने वाली वास्‍तविक हानि के कारण होता है। वहीं, दूसरी ओर बाजार को नुकसान डिजिटल सेवाओं एवं साइबर सतर्कता में आम जनता का भरोसा कम हो जाने और अनौपचारिक तंत्रों के विकास के कारण होता है।

यही नहीं, डेटा से जुड़े घटिया अथवा चिंताजनक तौर-तरीके अपनाने का प्रतिकूल असर विभिन्‍न देशों पर भी पड़े बिना नहीं रहता है। उदाहरण के लिए, भुगतान प्रणालियों में जबरन अतिक्रमण, जो डेटा के प्रवाह को किसी और दिशा में मोड़ देता है, होने से आर्थिक अराजकता की स्थिति उत्‍पन्‍न हो सकती है। इसी तरह बड़े पैमाने पर बायोमीट्रिक डेटा के लीक हो जाने की स्थिति में धोखाधड़ी वाले व्‍यापक लेन-देन से व्यवस्था चरमरा सकती हैं। जबरन अतिक्रमण करने वालों की पहुंच जितने अधिक डेटा तक होगी उतना ही नुकसान होने का अंदेशा है। दरअसल, साइबर युद्ध के सिद्धांत किसी भी विरोधी की डिजिटल सुरक्षा कमजोरियों से लाभ उठाने पर आधारित होते हैं, ताकि ज्‍यादा-से-ज्‍यादा आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा सके।

ब्रॉडबैंड हाइवे.

पूरे भारत में ब्रोड्बैंड हाइवे विकसित करने की एक बहुत महत्वकांक्षी योजना पर सरकार कार्य कर रही है l यह भारत सरकार का प्रमुख लक्ष्य है l इसके तहत देश के आख़िरी घर तक ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा. लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम, जो अनुमानित समय सीमा से काफी पीछे चल रहा है l सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव इतने बड़े स्तर पर बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो इस कार्य में अकुशल हैं l आपको वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की जटिलताओं को समझते हैं l इसके अलावा हम सिर्फ ऑप्टिकल नेटवर्क पर ही निर्भर नहीं रह सकते l हमें अन्य विकल्पों जैसे मोबाइल व अन्य वायरलेस नेटवर्क, सेटेलाईट आदि के विकास पर भी समुचित ध्यान देना होगा l

मोबाईल फोन की उपलब्धता

इसके अलावा फोन पर आधारित सेवाओं के लिए जरुरी है सभी के पास मोबाईल फोन की उपलब्धता l जिसके लिए आवश्यक है कि लोगों के पास फ़ोन खरीदने की क्षमता हो. लेकिन सरकार को ये सोचना होगा कि क्या सबके पास फोन खरीदने की क्षमता आ गई है. या फिर सरकार अगर ये सोच रही है कि वो खुद सस्ते फोन बनाएगी तो इसके लिए तकनीक और तैयारी कहां है? हाल ही में एक बड़ी निजी कम्पनी ने सस्ती 4 जी तकनीक आधारित फोन लांच किये हैं l किन्तु ये भी अभी सभी को उपलब्ध नहीं हो पाए हैं l सब के लिए सुलभ होने में अभी इन को काफी वक्त लगेगा l

सरकारी दफ्तरों को डिजिटल बनाना

एक बड़ी समस्या सरकारी दफ्तरों को डिजीटल बनाने और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने की l इसे लागू करने का पिछला अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजीटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग डिजिटल नहीं हो पा रहे हैं. कंप्यूटर व अन्य उपकरण धूल खाते रहते हैं l उपकरण खराब होने पर उन्हें सुधरवाने की लम्बी सरकारी प्रक्रिया अत्यधिक दुरूह एवं लम्बी होती है l

विधिक जटिलताएं :

तकनीक के नित्य नए विकास से विधिक जटिलताएं सामने आती हैं l जैसे न्यायिक क्षेत्राधिकार, समय सीमा, संविदात्मक दायित्व आदि l इन कमियों को दूर करने के लिए सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम लाया गया है l इस अधिनियम ने काफी हद तक इन विसंगतियों को दूर किया है l समय समय पर आने वाले हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के न्याय निर्णयों से भी काफी मदद मिलती है l  पी. आर. ट्रांसपोर्ट एजेंसी बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में संविदा की ए मेल के माष्यम से स्वीकृति की गयी थी l स्वीकृति के स्थान एवं न्यायालय के क्षेत्राधिकार का प्रश्न भी इस मामले में उठा था l इस मामले में न्यायालय ने निर्णय दिया कि क्षेत्राधिकार उस न्यायालय होगा जिस स्थान पर व्यवसाय संचालित किया जा रहा है l इस मामले में प्रस्ताव एवं स्वीकृति दोनों का स्थान न्यायालय के क्षेत्राधिकार के भीतर आता है अतः उक्त न्यायालय को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है l

अध्याय 4 : भारत में ई प्रशासन

भारत में सुशासन के प्रयास में सूचना क्रांति ने एक शक्तिशाली उपकरण का कार्य किया है। ज्ञातव्य है कि भारत सूचना प्रौद्योगिकी क्षमता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ई-प्रशासन, ई-शिक्षा, ई-व्यापार, ई-वाणिज्य, ई-मेडिसिन आदि ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ सुचना प्रौद्योगिकी की प्रभावशाली भूमिका में महत्वपूर्ण प्रगति देखी जा सकती है।

ई प्रशासन के अंतर्गत सरकारी सेवाएं एवं सूचनाएं पहुँचाने में विभिन्न इलैक्ट्रॉनिक विधियों एवं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। ई-प्रशासन के माध्यम से शासन को सरल, नागरिकोन्मुख, पारदर्शी, जवाबदेह एवं त्वरित बनाया जा सकता है।

वर्ष 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारें उत्साहपूर्वक सुचना और संचार प्रौद्योगिकी प्रणाली को अपनाती चली आ रही हैं, जिसमे खास तौर पर इन्टरनेट सहित वेब आधारित तकनीकी भी है। भारत सरकार के प्रमुख विकास स्तंभों में सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉनिक संवाद की वैधता प्रदान की गई और इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कार्य प्रथाओं का नियमन किया गया और सुचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (इसके द्वारा जनसंस्थानों की सूचना की मांग करने वाले नागरिकों की जानकारी देने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया) शामिल हैं।

सूचना क्रांति का भारत के ग्रामीण निर्धनों पर काफी अल्प प्रभाव पड़ा है। जन-साधारण के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी पर कार्य समूह (Working Group on Information Technology for Masses) नामक रिपोर्ट में यह व्यक्त किया गया की, सूचना-प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करने वाले प्रयास भारतीय समाज में सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की सुविधा प्राप्तवर्ग एवं इस सुविधा से वंचित वर्ग के मध्य नए विभाजन को जन्म दे सकते हैं। यह एक आंगुलिक (digital) विभाजन होगा, जो पहले से ही विद्यमान विषमताओं को प्रतिवलित एवं तीव्र करेगा। इसी कारण से, सरकार ने नवीन सूचना-प्रौद्योगिकी के लाभों को निर्धनता रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक प्रसारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

सूचना-प्रौद्योगिकी को जनसाधारण तक पहुँचाने हेतु सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्य काफी कम हैं, किंतु ये कार्य राज्य एवं स्थानीय का विस्तार करने हेतु, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में, भूमिका को प्रोत्साहित करने को उत्प्रेरणा एवं स्वीकृति प्रदान करते हैं। अनेक सृजनात्मक परियोजनाएं शुरू किए जाने के पश्चात् भी यह स्पष्ट नहीं है कि वे स्थानीय जनता की अत्यंत अनिवार्य आवश्यकताओं को प्रत्यक्षतः कहां तक पूर्ण कर सकी हैं। इन प्रयोगात्मक एवं विकीर्ण (scattered) परियोजनाओं का सावधानीपूर्वक अंतर-अनुशासनात्मक विश्लेषण करके उनके प्रभावों का निर्धारण कर पाने में समय लगेगा।

  • भारत में क्रियान्वित ई प्रशासन की कुछ महत्वपूर्ण योजनायें

समुदाय सूचना केंद्र

पूर्वोत्तर राज्यों में 2002 से समुदाय सुचना केंद्र कार्यरत हैं और वे सब अत्याधुनिक अधोसंरचनाओं से सुस्सजित हैं, जिनमे एक सर्वर, 5 क्लाइंट system, एक वी-सैट, लेजर प्रिंटर, एक डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर, मॉडेम, लैन, हब, टीवी, वेबकैम और दो यूपीएस शामिल हैं। सामान्यतः ये केंद्र लोगों को इंटरनेट एक्सेस, ई-मेल, प्रिंटिंग, दाता एंट्री और वर्ल्ड प्रोसेसिंग जैसी सुविधाएं देने तथा स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करने का काम करते हैं। अपने रोजमर्रा के खचों को पूरा करने के लिए ज्यादातर सीआईसी प्रदान की गई सेवाओं के बदले में उपयोगकर्ताओं से मामूली शुल्क लेते हैं।

राष्ट्रीय ई-शासन योजना (राज्य एम एम पी) के अंतर्गत आनेवाले विषय इस प्रकार है –

शिक्षा

भारत के संविधान के तहत शिक्षा एक समवर्ती विषय है और इसमें एक ऐसा पारिस्थितिक तंत्र शामिल है जिसमें केन्द्र और राज्यों में अन्य मंत्रालयों तथा विभागों की अनेक गतिविधियां शामिल हैं। मध्य दिवस भोजन का प्रशासन, छात्रावासों का प्रशासन, छात्रवृत्तियों का संवितरण आदि गतिविधियों के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनके लिए सरकार की अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय की आवश्यकता होती है। भारत सरकार की अनेक प्रमुख योजनाएं जैसे सर्व शिक्षा अभियान, मध्य दिवस भोजन, राष्ट्रीय माध्यममिक शिक्षा अभियान आदि जिनके कार्यान्वतयन और निगरानी के लिए आईसीटी की आवश्यकता होती है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्कूली शिक्षा में आईसीटी के उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिए राज्यों को सहायता हेतु दिशानिर्देश प्रदान करने के लिए स्कूली शिक्षा में आईसीटी पर राष्ट्रीय नीति तैयार कर रहा है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग को इस एमएमपी की डिजाइन और कार्यान्वयन के लिए नोडल विभाग बनाया गया है।

आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली योजना (सीसीटीएनएस)

सीसीटीएनएस जून , 2009 में आर्थिक कार्य मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली योजना (सीसीटीएनएस) के लिए 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है जो केन्द्र द्वारा 100% प्रायोजित एक योजना है जिसे 11 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2009-2012) के शेष भाग के दौरान लागू करने के लिए अनुमोदित किया गया। अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (सीसीटीएनएस) एमएमपी का लक्ष्‍य सभी स्तरों पर, विशेष रूप से पुलिस स्टेशन स्तर पर दक्षता और प्रभावी पुलिस कार्रवाई करने के लिए ई -शासन के सिद्धांतों को अपनाने के माध्यम से उन्‍न्‍त बनाने के लिए एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली बनाने और एक राष्ट्रव्यापी निर्माण आईटी समर्थित आधुनिकतम ट्रैकिंग प्रणाली के विकास के लिए नेटवर्क बुनियादी सुविधाओं पर लक्षित है।

कृषि

कृषि और सहकारिता विभाग (डीएसी) ने पिछले वर्षों में अनेक आईटी प्रयास किए हैं जैसे एग्मार्क नेट, सीडनेट, डार्कनेट आदि। कृषि मिशन मोड परियोजनाओं में इन आईटी प्रयासों को परियोजना के भाग के रूप में विकसित किए जा रहे नए अनुप्रयोगों/मॉड्यूलों के साथ समेकित करना प्रस्तावित है।

कृषि विभाग द्वारा मिलने वाली सेवाएं हैं –

  • कीटनाशक, उर्वरक और बीज पर सूचना
  • मृदा स्वास्थ्य पर जानकारी प्रदान करना
  • फसलों, कृषि मशीनरी, प्रशिक्षण और अच्छी कृषि पद्धतियों (जीएपी) पर सूचना
  • पूर्वानुमानित मौसम सूचना
  • कीमतों, आगमन, खरीद अंक पर सूचना, और बातचीत के मंच प्रदान करना
  • निर्यात और आयात के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण
  • विपणन मूल संरचना पर सूचना
  • योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन / मूल्यांकन की निगरानी
  • मत्स्य आदानों पर सूचना
  • सिंचाई मूल संरचनाओं पर सूचना
  • सूखा राहत और प्रबंधन
  • पशुधन प्रबंधन

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

केबिनेट सचिव की अध्याक्षता में राष्ट्रीभय ई-शासन योजना (एनईजीपी) की शीर्ष समिति ने एनईजीपी के तहत मिशन मोड परियोजना (एमएमपी) के रूप में सार्वजानिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का अनुमोदन किया है।

पीडीएस का कंप्यूकटरीकरण आबंटन और उपयो‍गिता रिपोर्टिंग, अनाज के भंडारण और आवगमन, शिकायत निपटान और पारदर्शिता पोर्टल, लाभार्थी डेटा बेस के डिजिटाइजेशन, उचित मूल्ये की दुकान का स्व चालन आदि सहित एक सिरे से दूसरे सिरे तक परियोजना को शामिल करने वाले मुख्य कार्यात्मतक क्षेत्रों के रूप में करने की संकल्पना की गई है।

स्वास्थ्य

आईसीटी कार्यक्रम प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में मातृ और बाल ट्रैकिंग सिस्टम (एमसीटीएस) कार्यक्रम के द्वारा शुरू किया गया है | आईसीटी अस्पताल सूचना प्रणाली सहित दवाओं और टीकों के लिए आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रदान करता है | आईसीटी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य (एनआरएचएम) में आशा और एएनएम श्रमिकों को एमएमपी के माध्यम से उपकरण उपलब्ध कराने में अग्रसर है|

रोजगार कार्यालय

रोजगार कार्यालय मिशन मोड परियोजना (ईईएमएमपी) श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पूरे भारत में रोजगार कार्यालयों (ईई) के नेटवर्क के माध्यम से प्रदान की जाने वाली आधुनिक रोजगार सेवाओं को उन्नत बनाने के लिए किया गया प्रयास है।

इस एमएमपी से नौकरी पाने वालों और नियोक्ताओं को रोजगार संबंधी सेवाओं और सूचना तक शीघ्रतापूर्वक और आसान पहुंच प्रदान करने में सहायता मिलेगी (संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र) तथा रोजगार कार्यालय आधुनिक भारत की अर्थव्यवस्था और लचीले व्यापार परिवेश में महत्वोपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम होंगे।

इसका संकल्पना वक्तव्य निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ परिभाषित किया गया है।

  • रोजगार और प्रशिक्षण पर सूचना का संग्रह और प्रसार, संगठित और असंगठित क्षेत्रों के नौकरी पाने के इच्छुक व्यक्तियों और नियोक्ताओं को देना ताकि कार्यबल की मांग और आपूर्ति के बीच एक उचित संतुलन बनाए रखा जा सके
  • सभी पणधारियों के लिए रोजगार कार्यालयों की आसान और शीघ्र पहुंच की सेवाएं सृजित करना
  • संगत रोजगार परामर्श प्रदान करना, क्षमताओं का आकलन और रोजगार परकता को बढ़ाने के लिए नौकरी पाने वालों को व्यावसायिक मार्गदर्शन सेवाएं प्रदान करना
  • योजना के लिए श्रम बाजार की सूचना की शुद्धता और गुणवत्ता नीति निर्माताओं को सही समय पर प्रदान करना है |
  • रोजगार कार्यालय द्वारा प्रदान की गई सेवाएं इस प्रकार है
  • नौकरी पाने वालों का पंजीकरण, नवीकरण, और अभिलेखों का रखरखाव को अद्यतन बनाना
  • नियोक्ताओं से रोजगार बाजार सूचना (ईएमआई) का संग्रह
  • व्यावसायिक मार्गदर्शन और कैरियर काउंसिलिंग प्रतिपादन
  • रिक्तियों की अधिसूचना के साथ कार्रवाई, इसे नौकरी चाहने वालों के पास भेजना और अनुवर्तन
  • त्वरित और तेजी से प्रभावी अंतर – विभागीय एमआईएस, तेजी से संचार और सूचना केन्द्र अधिकारियों की सुलभ जानकारी के लिए विभागों के अंदर सभी स्तरों पर सेवा और जानकारी का आदान प्रदान
  • योजना बनाने और लागू करने के लिए एक समय पर और सुसंगत तरीके से प्रभावी निर्णय समर्थन प्रणाली में भारत के रोजगार बाजार पर व्यापक जानकारी की उपलब्धता |

ई-पंचायत

पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) में अपर्याप्त भौतिक और वित्तीय संसाधनों, तकनीकी क्षमताओं और अत्यंत सीमित कम्प्यूटरीकरण की समस्याओं की भरमान है। परिणामस्वरूप पीआरआई की संभाव्यता वरीयता प्राप्त राज्य और केन्द्र की योजनाओं के प्रदायगी चैनल के रूप में और नागरिक सेवाओं के लिए पूरी तरह उपयोग नहीं की जाती है। एनआईसी द्वारा पिछले कुछ वर्षों में पीआरआई के कुछ कम्प्यूटरीकरण प्रयास किए गए हैं, इसके बावजूद ई-शासन की क्रांति देश में अभी पीआरआई को उतनी हद तक स्पर्श नहीं कर पा रही है, जिसके लिए उल्लेखनीय प्रयास की आवश्यरकता है। अत: पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार ने एक मिशन मोड आधार पर पीआरआई के कम्प्यूटरीकरण कार्य को लेने का निर्णय लिया है।

ई-जिला

सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के नोडल मंत्रालय होने के साथ राष्ट्रीय ई शासन योजना (एनईजीपी) के तहत सत्ताइस मिशन मोड परियोजनाओं में से एक है ई-जिला। इस परियोजना का लक्ष्यप बुनियादी प्रशासनिक इकाई अर्थात “जिला प्रशासन” के लिए समर्थन बैकेंड कंप्यूटरीकरण करने के लिए उच्च मात्रा में नागरिक केंद्रित सरकारी सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक वितरण सक्षम द्वारा प्रदान करना है, जो बेहतर लाभ उठाने और राज्य् व्या पी क्षेत्र नेटवर्क (स्वान) , राज्य डेटा केंद्र (एसडीसी) और सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) सेवाओं के तीन बुनियादी स्तंभों का उपयोग नागरिक को अपने दरवाजे पर वितरित करने में करेंगे. एनईजीपी के तहत 16 राज्यों के वर्तमान में किसी भी मिशन मोड परियोजना के द्वारा कवर नहीं किए गए 41 जिलों में ई – जिला प्रायोगिक परियोजनाओं को शुरू किया गया है और इनमें जिला स्तर, उच्च मात्रा में सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से बैकेंड कंप्यूटरीकरण का कार्य किया जाना है ताकि उप जिला/तहसील स्तर पर एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर एक स्थायी तरीके में सामान्य सेवा केंद्र(सीएससी) के माध्यम से इन सेवाओं के वितरण में ई – सक्षम प्राप्त की जा सके। अब यह प्रस्ताव है कि ई – जिला एमएमपी का रोलआउट के देश में सभी जिलों में किया जाए।

राष्ट्रीय भूअभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एनएलआरएमपी)

भूमि अभिलेख कम्प्यूटरीकरण (सीएलआर) की एक परियोजना 1988-89 में आरंभ की गई थी जिसका आशय भूमि अभिलेख के रखरखाव और अपडेशन की मैनुअल प्रणाली की आंतरिक कमियों को दूर करना था। वर्ष 1997-98 में यह योजना तहसीलों तक बढ़ाई गई ताकि भूमि स्वामियों को उनकी मांग पर अभिलेख दिए जा सके। इस पूरे प्रचालन का फोकस सदैव आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के उपयोग से देश की मौजूदा भू अभिलेख प्रणाली को सुगम्य और रूपांतरित करना रहा है।

दूसरी महत्वपूर्ण योजना अर्थात राजस्व प्रशासन को सुदृढ़ बनाना और भू अभिलेखों का अपडेशन (एसआरए एण्डअ यूलएआर) 1988-89 में आरंभ की गई ताकि राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अपने भू अभिलेख अपडेट करने का अनुरक्षण में, सर्वेक्षण को सुदृढ़ बनाने और स्थापित करने में सहायता दी जा सके तथा निपटान संगठनों और सर्वेक्षण प्रशिक्षण मूल संरचना, सर्वेक्षण और निपटान प्रचालनों का आधुनिकीकरण एवं राजस्व मशीनरी का सुदृढ़ीकरण किया जा सके।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित गतिविधियों द्वारा देश में भू अभिलेख प्रणाली को आधुनिक बनाना है।

  • अधिकार के रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण
  • मानचित्र के डिजिटलीकरण और भूमि अभिलेखों का अद्यतन
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए सर्वेक्षण / पुन: सर्वेक्षण हवाई फोटोग्रामेट्री सहित
  • पंजीकरण कंप्यूटरीकरण
  • संबंधित अधिकारियों और पदाधिकारियों के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण
  • भूमि रिकार्ड और पंजीकरण कार्यालयों और आधुनिक रिकॉर्ड कमरे / तहसील / तालुका / चक्र / ब्लॉक स्तर पर भूमि रिकार्ड प्रबंधन केंद्रों के बीच कनेक्टिविटी|
  • इसमें प्रदत्त सेवाएं इस प्रकार हैं –
  • वास्तविक समय की उपलब्धता का रिकॉर्ड
  • सेवा सिंगल विंडो या वेब – सक्षम “कभी भी-कहीं भी, उपयोग करने की सक्षमता
  • संपत्ति मालिकों के उपयोग के लिए मुफ्त और गोपनीय रिकॉर्ड
  • स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क के बैंकों के माध्यम से भुगतान
  • आरओआर प्राप्त करने के लिए समय में भारी कमी।
  • स्वचालित और स्वचालित म्यूटेशन
  • निष्करर्षात्मक शीर्षक के कारण मुकदमेबाजी में काफी कमी
  • रिकॉर्ड में छेड़छाड़ संभव नहीं
  • ई – लिंकेज क्रेडिट सुविधा
  • वेबसाइट पर बाजार मूल्य की जानकारी की उपलब्धता
  • सरकारी कार्यक्रम की पात्रता के लिए भूमि तारीख (आय, अधिवास, जाति, आदि) के आधार पर प्रमाण पत्र की उपलब्धता

भारतीय पोर्टल

भारत सरकार की विभिन्न इकाइयों की 5000 से अधिक वेबसाइट इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जिसमें मंत्रालय, विभाग, राज्य / संघ राज्य क्षेत्र, जिला प्रशासन, संगठन शामिल हैं। नागरिकों को इन सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अनेक वेबसाइटों पर खोजबीन और ब्राउज करना होता है। भारतीय राष्ट्रीय पोर्टल 5000 से अधिक वेबसाइटों के लिए एकल विंडो एकीकृत इंटरफेस प्रदान करता है और इस प्रकार नागरिकों को होने वाली असुविधा कम की जाती है। यह पोर्टल विभिन्न केन्द्रीय / राज्य / संघ राज्य क्षेत्र सरकारों की योजनाओं और कार्यक्रम के तहत ई-शासन प्रयासों को एक युक्ति संगत अग्रणी पृष्ठय के रूप में कार्य करता है। यह एक महत्वकांक्षी पहल है जिसमे इंटरनेट र बिखरी हुयी अनगिनत सरकारी वेब्साइटो को एक स्थान पर संकलित कर दिया गया है  l भारतीय राष्ट्रीय पोर्टल के लाभार्थियों की सूची लंबी है, जिसमें सामान्यक नागरिको के अलावा सरकारी विभाग, निगम क्षेत्र, अनिवासी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया तथा दुनिया भर की आम जनता शामिल है है। इसका वेब पता निम्न है – https://india.gov.in/hi/

ई-न्यायालय

विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की बढती संख्या से प्रभावकारी ढंग से निपटने, वादियों उनके अदालती मामलों से जुड़ी आवश्‍यक सूचनाएं तत्परता से उपलब्ध कराने, न्यायाधीशों को कानूनी बिन्दुओं से जुडी न्यायिक-व्यवस्थाएं और आंकड़े सहजता से उपलब्ध कराने तथा समूची न्याय-प्रणाली को गति प्रदान करने के लिए न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण की दिशा में दो दशक पूर्व प्रयास शुरू किए गए थे। न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण का ही नतीजा है कि आज उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के साथ ही कई जिला अदालतों में ई-न्यायालय व्यवस्था भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोग अपने किसी भी मुकदमे की प्रगति और स्थिति के बारे में सिर्फ अदालत की वेबसाइट पर एक क्लिक करके ही अपेक्षित जानकारी घर बैठे प्राप्त कर पा रहे हैं।

इसमें न्यायिक पोर्टल और ई-मेल सेवा, सहजता से इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर उपकरण, न्यायाधीशों और अदालत के प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अदालत परिसर में प्रशिक्षित स्टाफ की उपस्थिति के लिए एक अलग काडर बनाने, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय परिसरों में मौजूद संरचना को अपग्रेड करने, समूचे रिकॉर्ड  के लिए डिजिटल संग्रह तैयार करने और तमाम लॉ-पुस्तकालयों को कम्प्यूटर-नेटवर्क से जोड़ने जैसे कार्यों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।

ई-न्यायालय सेवा के जरिए न्यायालय में मुकदमों के प्रबंधन की प्रक्रिया को आटोमेशन मोड में डाला गया। इस सेवा के दायरे में मुकदमों ई फाईलिंग करना, मामलों की जांच पडताल, मामलों का पंजीकरण, मामले का आबंटन, अदालत की कार्यवाही, मामले से संबंधित विस्तृत विवरण, मुकदमे का निष्पादन और स्थानांतरण जैसी जानकारी मुहैया कराई जा रही है। इसी तरह ई-न्यायालय सेवा के तहत न्यायिक आदेश और फैसलों की प्रमाणित प्रति, कोर्ट फीस और इससे जुड़ी दूसरी जानकारियां ऑनलाइन प्राप्त की जा सकती है।

देश के दूरदराज इलाके में रहने वाले व्यक्ति कही से और कि‍सी भी समय वेब साइट क्लिक करके किसी भी मुकदमे की जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हैं। इस परियोजना के तहत पहले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और इसके बाद जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में ई-फाइलिंग सुविधाजनक होती जा रही है।

ई न्यायालय में तकनीक के उपयोग की अवधारणा द्वारा भारतीय न्यायपालिका को बदलने के दृष्टिकोण से शुरु की गई थी। इस परियोजना का विकास भारतीय न्यायपालिका में सूचना प्रौद्योगिकी के साधनों के कार्यान्वयन पर राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना पर सुप्रीम कोर्ट के तहत ई-समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट किया गया था। ई-न्यायालय के तहत, 5 साल की अवधि में 3 चरणों में भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने का प्रस्ताव है। इस योजना का उद्देश्य दिल्ली, मुंबई कोलकाता और चेन्नई के लगभग 700 न्यायालयों में और देशभर के 29 राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों के 900 न्यायालयों और देश भर के 13000 जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में स्वचालित निर्णय प्रणाली और निर्णय-समर्थित प्रणाली की स्थापना करना है।

ई-न्यायालय का स्प्ष्ट, उद्देश्य है – न्याय पालिका के प्रक्रमों को रि-इंजीनियर करना तथा इस की उत्पायदकता को मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से बढ़ाकर न्याय प्रदायगी प्रणाली को वहनीय पहुंच योग्य, लागत प्रभावी, पारदर्शी और जबावदेह बनाना।

परियोजना का विस्तार पूरे देश के न्यायालयों में स्वचालित निर्णय लेने और निर्णय समर्थन प्रणाली का विकास, प्रदायगी, स्थापना और कार्यान्व्यन करना है। ई-न्यायालय परियोजना में तालुक स्तर से शीर्षतम न्याययालय तक बीच के सभी न्याययालय में डिजिटल आपसी जुड़ाव सुनिश्चित करना निहित है।

ई-न्यायालयों द्वारा दी जा रही सेवाएं हैं :

सेवाएं विवरण
प्रकरण प्रबंधन की स्वचालन प्रक्रिया जांच, पंजीकरण, केस आवंटन, अदालत की कार्यवाही,एक मामले की जानकारी प्रविष्टि, मामला निपटान और बहाली, प्रकरण का स्थानांतरण आदि प्रक्रियाएं।
ऑनलाइन सेवाओं के प्रावधान आदेश और निर्णय की प्रमाणित प्रतियां, मामलों की स्थिति, कोर्ट फीस की गणना का प्रावधान, संस्थागत रजिस्टर, और कोर्ट डायरी।
अदालत और सरकार के बीज सूचना गेटवे स्थापित करना वादी या प्रतिवादी के बीच दूरी होने से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाही और गवाही, अदालतों और सरकारी एजेंसियों एवं पुलिस के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान, जेल, भूमि रिकार्ड विभाग।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड एजेंसी का निर्माण करना अदालतों में लम्बित मामलों की निगरानी करना।

ई-लोकतंत्र

एक व्यावहारिक परिभाषा के अनुसार, ई-लोकतंत्र (e-democracy) वर्तमान सूचना युग में प्रतिदिन के लोकतांत्रिक शासकीय प्रतिनिधित्व को बनाए रखने एवं उसके रूपांतरण में सहायता हेतु आवश्यक है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा रणनीतियों का स्थानीय संचार, राज्य/क्षेत्रों, राष्ट्रों एवं वैश्विक स्तर की राजनीतिक प्रक्रिया के भीतर लोकतांत्रिक क्षेत्रों (democratic sectors) द्वारा प्रयोग किया जाना ही ई-लोकतंत्र है।

साथ ही सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण से शक्तिशाली बनाना और उत्पादकता व् रचनात्मकता के लिए पुरस्कृत करना, नागरिकों को क्लाइंट के रूप में देखना तथा सरकार में और अधिक पारदर्शिता तथा दायित्वशीलता बढ़ाने के लिए पहल करना भी इसके दायरे में आते हैं। इसके अतिरिक्त, सूचना युग ने मताधिकार संपन्न एवं गैर-मताधिकार वाले गरीब तबकों के बीच अवसरों तक पहुँच कायम करने को लेकर बनी खाई की और गहरा बना दिया है। सु-शासन केवल सूचना और संचार तकनीकी द्वारा प्रस्तुत प्रभावी तरीकों को आत्मार्पित किए जाने तक ही सिमित नहीं है, अपितु सभी नागरिकों को इस तकनीकी तक पहुँच प्राप्त हो, अवसर तक पहुँच कयन होना विकास का एक महत्वपूर्ण वाहक माना गया है।

ई-प्रशासन की व्यापक अवधारणा भी ई-लोकतंत्र के समान है। ई-गवर्नमेंट का अर्थ सरकारी अभिकरणों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग है, जिनमे नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के अन्य अंगों के साथ संबंधों को परिवर्तित करने की क्षमता है। ये प्रौद्योगिकियां विविध प्रकार के लक्ष्यों को पूरा कर सकती हैं। नागरिकों को सरकारी सेवाओं की की बेहतर डिलीवरी, व्यवसाय और उद्योग के साथ बेहतर आपसी संपर्क, सूचना तक अभिगम प्रदान कर नागरिक का सशक्तीकरण अथवा अधिक कुशल सरकारी प्रबंधन। उभरती सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के कारण सेवा केन्द्रों को ग्राहकों के निकट रखना संभव है। ऐसे केन्द्रों में सरकारी एजेंसी में बिना प्रभारी के किओस्क, ग्राहक के निकट अवस्थित सेवा किओस्क या घर अथवा कार्यालय में पर्सनल कम्प्यूटर का उपयोग शामिल हो सकते हैं। ई-गवर्नमेंट का उद्देश्य सरकार और नागरिकों, सरकार और व्यवसायिक उद्यमों के बीच आपसी संपर्क और अंतर-अभिकरण संबंधों को अधिक मैत्रीपूर्ण, सुविधाजनक, पारदर्शी और कम खर्चीला बनाना है।

इस प्रकार, ई-लोकतंत्र समाज के सभी वर्गों के द्वारा राज्य के अभिशासन में भाग ले सकने की क्षमता के माध्यम से लोकतंत्र की विकास की दिशा में भी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समग्र रूप में, ई-लोकतंत्र पारदर्शिता, उत्तरदायित्व की भावना एवं सहभागिता बढ़ाने की प्रक्रिया है।

निम्नलिखित लोकतांत्रिक कर्ताओं (democratic actors) लोकतांत्रिक क्षेत्रों के अंतर्गत सम्मिलित किया जा सकता है-

  1. सरकारें
  2. निर्वाचित अधिकारी
  3. मीडिया (एवं सभी बड़े ऑनलाइन पोर्टल)
  4. राजनितिक दल एवं हित समूह
  5. लोक समाज संगठन
  6. अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन
  7. नागरिक/मतदाता

शासन में ई-लोकतंत्र के लक्ष्य: लोकतंत्र एवं प्रभावी शासन को प्रोत्साहित करने हेतु शासन में ई-लोकतंत्र के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं:

  1. सरकार द्वारा निर्णयन (decisions) में सुधार।
  2. सरकार में नागरिकों के विश्वास को बढ़ाना।
  3. सरकार की उत्तरदायित्वता एवं पारदर्शिता में वृद्धि करना।
  4. जन-इच्छा को सूचना युग में समायोजित करने की क्षमता।

ई-पंचायत

भारत में पंचायती राज के माध्यम से लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण किया गया है। यह शासन का प्रमुख कार्यान्वयन निकाय होता है, जिस पर पूरी विकासात्मक योजना की सफलता निर्भर करती है। इसलिए शासन की इस निम्न इकाई में उच्च स्तरीय सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में ई-पंचायत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिए पंचायत से संबंधित सभी मामलों, नियमों, सरकारी योजनाओं से संबंधित सभी सूचनाओं आदि का कम्प्यूटर द्वारा संग्रहण कर उनका सहज लाभ आम आदमी तक पहुंचाया जा सकता है।

दरअसल ई-पंचायत से अर्थ इलेक्ट्रॉनिक पंचायत से है। इसके अंतर्गत सुचना और संचार की आधुनिक तकनीक का उपयोग कर पंचायत, को कम्प्यूटरीकृत किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पंचायत-स्तर शासन प्रबंधन में गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार करना है। ई-पंचायत के माध्यम से बेहद तेजी से और कम समय में सूचना का प्रसार होता है जिसका लाभ ग्रामीण जीवन में हो रही प्रगति में मिल सकेगा। जहां ई-पंचायत का प्रारंभ हो गया है वहां ग्रामीण क्षेत्रों के शासन प्रबंधन में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है, जो पंचायत के सुधार और अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है इससे पंचायत स्तर पर पारदर्शिता, शांति, सुरक्षा एवं समानता लाने में मदद मिल रही है। उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार महिलाओं के प्रवेश ने पंचायत स्तर पर पुरुष वर्ग के आधिपत्य को कमजोर किया है, ठीक उसी प्रकार इस स्तर पर कम्प्यूटर एवं इंटरनेट का प्रवेश सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव लाने का कार्य करेगा।

वर्तमान में पंचायत की राज्य संचित निधि से व्यय राशि आवंटित की जाती है, लेकिन इसकी सही जानकारी आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती। ई-पंचायत के माध्यम से वित्तीय अपारदर्शिता को समाप्त किया जा सकता है। इसका सकारात्मक परिणाम लोगों के प्रति व्यक्ति आय में देखने को मिलेगा। ई-पंचायत तकनीक द्वारा लोगों में राजनीतिक अधिकार के प्रयोग की शिक्षा से सामाजिक जागरूकता आएगी, जिससे लोगों में नागरिक गुणों का विकास होगा,जनता और शासक में एक-दूसरे की परेशानियों को समझने की भावना उत्पन्न होगी, जिससे परस्पर सहयोग का विचार उत्पन्न होगा। यह सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए बहुत बड़ी क्रांति होगी। ई-पंचायत के माध्यम से भूमि संबंधी दस्तावेजों, नक्शों एवं सरकारी कानूनों और आदेशों की किसानों को सहज प्राप्ति कराई जा सकती है, जिससे लोगों को समान रूप से आर्थिक लाभ एवं न्याय मिल सके।

ई-पंचायत को सफल बनाने के लिए जरूरी कदम

  • पंचायत स्तर पर बुनियादी सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करना।
  • प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक ग्राम सेवक तथा सह-सूचना अधिकारी की नियुक्ति करना।
  • कम्प्यूटर एवं इंटरनेट से संबंधित ज्ञान द्वारा जन चेतना व्यापक करना।
  • ग्राम पंचायत से संबंधित सभी सूचनाओं का संग्रहण एवं निर्देशन करना।
  • कम्प्यूटर; इंटरनेट के प्रयोग और उपयोग से संबंधित जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

लोगों में सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना के अधिकार के प्रति भरोसा बढ़ा है। पंचायत की किसानों एवं जनता को कम्प्यूटर की स्क्रीन पर ही अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त कराई जा सकती है। एटीएम से रुपया निकालना, बसों एवं रेलों में आरक्षण की स्थिति जानना एवं टिकट प्राप्त करना इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ई-पंचायत के द्वारा कोई भी व्यक्ति कृषि सम्बन्धी जानकारी एवं मौसम सम्बन्धी जानकारी हासिल कर सकता है और उस सूचना के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है। ई-मेल के द्वारा जनता अपनी शिकायत सरकार से कर सकती है और समाधान तथा जानकारियां प्राप्त कर सकती हैं। ई-पंचायत सरकार द्वारा पंचायत को पिछड़े युग से सूचना युग तक पहुंचाने के लिए किया जाने वाला प्रयास है। आज सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान बढ़ता जा रहा है और ऐसे परिदृश्य में पंचायत को इससे जोड़ना अत्यावश्यक है। इस प्रकार ई-पंचायत के माध्यम से प्रभावी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बहाल कर सुशासन भी स्थापित किया जा सकता है।

डिजिटल इंडिया योजना 

‘डिजिटल इंडिया’ भारत सरकार की एक नई पहल है जिसका उद्देश्‍य भारत को डिजिटल लिहाज से सशक्‍त समाज और ज्ञान अर्थव्‍यवस्‍था में तब्‍दील करना है। इसके तहत जिस लक्ष्‍य को पाने पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया जा रहा है, वह है भारतीय प्रतिभा (आईटी) + सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) = कल का भारत (आईटी)।

‘डिजिटल इंडिया’ एक व्‍यापक कार्यक्रम है जो अनेक सरकारी मंत्रालयों और विभागों को कवर करता है। यह तरह-तरह के आइडिया और विचारों को एकल एवं व्‍यापक विज़न में समाहित करता है, ताकि इनमें से हर विचार एक बड़े लक्ष्‍य का हिस्‍सा नज़र आए। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का समन्‍वय डीईआईटीवाई द्वारा किया जाना है। वहीं, इस पर अमल समूची सरकार द्वारा किया जाना है।

‘डिजिटल इंडिया’ का विज़न तीन प्रमुख क्षेत्रों पर केन्‍द्रित है। ये हैं– हर नागरिक के लिए उपयोगिता के तौर पर डिजिटल ढांचा, मांग पर संचालन एवं सेवाएं और नागरिकों का डिजिटल सशक्‍तिकरण।

महत्वाकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम भारत को डिजिटल सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए निर्धारित किया गया है। डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है व इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों। इस कार्यक्रम का मकसद भारत को डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है।

यह कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रौद्योगिकी विभाग की परिकल्पना है। यह कार्यक्रम 2018 तक चरणबद्ध तरीके से लागू किया जायेगा। डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है तथा इससे यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों। इससे सरकारी व प्रशासनिक सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के साथ सार्वजनिक जवाबदेही को भी सुनिश्चित करेगा।

फिलहाल अधिकतर इ-गवर्नेस परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता केंद्र या राज्य सरकारों में संबंधित मंत्रालयों/ विभागों के बजटीय प्रावधानों के जरिये होती है। लेकिन डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अलग-अलग परियोजनाओं के लिए जरूरी कोष का आकलन संबंधित नोडल मंत्रलय/ विभाग करेंगे और उसी के अनुरूप धन का आवंटन किया जायेगा।

कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य

  1. ब्रॉडबैंड हाइवेज: सामान्य तौर पर ब्रॉडबैंड का मतलब दूरसंचार से है, जिसमें सूचना के संचार के लिए आवृत्तियों (फ्रीक्वेंसीज) के व्यापक बैंड उपलब्ध होते हैं। इस कारण सूचना को कई गुणा तक बढ़ाया जा सकता है और जुड़े हुए तमाम बैंड की विभिन्न फ्रीक्वेंसीज या चैनलों के माध्यम से भेजा जा सकता है। इसके माध्यम से एक निर्दिष्ट समयसीमा में वृहत्तर सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है। ठीक उसी तरह से जैसे किसी हाइवे पर एक से ज्यादा लेन होने से उतने ही समय में ज्यादा गाड़ियां आवाजाही कर सकती हैं। ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से अग ले तीन सालों के भीतर देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जायेगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी।
  2. मोबाइल कनेक्टिविटी: देशभर में तकरीबन सवा अरब की आबादी में मोबाइल फोन कनेक्शन की संख्या जून, 2014 तक करीब 80 करोड़ थी। शहरी इलाकों तक भले ही मोबाइल फोन पूरी तरह से सुलभ हो गया हो, लेकिन देश के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में अभी भी इसकी सुविधा मुहैया नहीं हो पायी है। हालांकि, बाजार में निजी कंपनियों के कारण इसकी सुविधा में पिछले एक दशक में काफी बढ़ोतरी हुई है। देश के 55,000 गांवों में अगले पांच वर्षो के भीतर मोबाइल संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 20,000 करोड़ के यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) का गठन किया गया है। इससे ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल में आसानी होगी।
  3. पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम : भविष्य में सभी सरकारी विभागों तक आम आदमी की पहुंच बढ़ायी जायेगी। पोस्ट ऑफिस के लिए यह दीर्घावधि विजन वाला कार्यक्रम हो सकता है। इस प्रोग्राम के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में बनाया जायेगा। नागरिकों तक सेवाएं मुहैया कराने के लिए यहां अनेक तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा।
  4. ई प्रशासन : प्रौद्योगिकी के जरिये सरकार को सुधारना: सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस प्रोसेस री-इंजीनियरिंग के ट्रांजेक्शंस में सुधार किया जायेगा। विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जायेगा। इसके अलावा, स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आइडी कार्डस आदि की जहां जरूरत पड़े, वहां इसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है। यह कार्यक्रम सेवाओं और मंचों के एकीकरण- यूआइडीएआइ (आधार), पेमेंट गेटवे (बिलों के भुगतान) आदि में मददगार साबित होगा। साथ ही सभी प्रकार के डाटाबेस और सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मुहैया कराया जायेगा।
  5. ई-क्रांति- सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी: इसमें अनेक बिंदुओं को फोकस किया गया है। इ-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (ढाई लाख) को मुफ्त वाइ-फाइ की सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल लिटरेसी कार्यक्रम की योजना है। किसानों के लिए रीयल टाइम कीमत की सूचना, नकदी, कजर्, राहत भुगतान, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना। स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऑनलाइन मेडिकल सलाह, रिकॉर्ड और संबंधित दवाओं की आपूर्ति समेत मरीजों की सूचना से जुड़े एक्सचेंज की स्थापना करते हुए लोगों को इ-हेल्थकेयर की सुविधा देना। न्याय के क्षेत्र में इ-कोर्ट, इ-पुलिस, इ-जेल, इ-प्रोसिक्यूशन की सुविधा। वित्तीय इंतजाम के तहत मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो-एटीएम प्रोग्राम।
  6. सभी के लिए जानकारी: इस कार्यक्रम के तहत सूचना और दस्तावेजों तक ऑनलाइन पहुंच कायम की जायेगी। इसके लिए ओपेन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जायेगा, जिसके माध्यम से नागरिक सूचना तक आसानी से पहुंच सकेंगे। नागरिकों तक सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित मंचों पर सक्रिय रहेगी। साथ ही, नागरिकों और सरकार के बीच दोतरफा संवाद की व्यवस्था कायम की जायेगी।
  7. इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़ी तमाम चीजों का निर्माण देश में ही किया जायेगा। इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है ताकि 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। इसके लिए आर्थिक नीतियों में संबंधित बदलाव भी किये जायेंगे। फैब-लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसेट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्डस, माइक्रो-एटीएम आदि को बढ़ावा दिया जायेगा।
  8. रोजगारपरक सूचना प्रौद्योगिकी: देशभर में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार से रोजगार के अधिकांश प्रारूपों में इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। इसलिए इस प्रौद्योगिकी के अनुरूप कार्यबल तैयार करने को प्राथमिकता दी जायेगी। कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जायेगा। संचार सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां ग्रामीण कार्यबल को उनकी अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित करेगी। गांवों व छोटे शहरों में लोगों को आइटी से जुड़े जॉब्स के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा। आइटी सेवाओं से जुड़े कारोबार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जायेगा। इसके लिए दूरसंचार विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
  9. अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचा बनाना होगा यानी इसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी।
  • संदेशों के लिए आईटी प्लेटफॉर्म

डीईआईटीवाई द्वारा व्यापक स्तर पर संदेश भेजने के लिए एक एप्लीकेशन तैयार किया गया है जिसके दायरे में सभी चुने हुए प्रतिनिधि व सभी सरकारी कर्मचारी आएंगे। 1.36 करोड़ मोबाइल व 22 लाख ईमेल इस डेटाबेस का हिस्से होंगे।

  • सरकारी शुभकामनाओं के लिए ई-ग्रिटिंग्स

ई-ग्रिटिंग्स का गुलदस्ता तैयार किया गया है। माईगोव पोर्टल के जरिये ई-ग्रिटिंग्स का क्राउड सोर्सिंग सुनिश्चित किया गया है। ई-ग्रिटिंग्स पोर्टल 14 अगस्त 2014 से काम करना शुरू कर दिया है।

  • बायोमीट्रिक उपस्थिति

दिल्ली में केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों व डीईआईटीवाई में पहले से इसका संचालन शुरू हो चुका है और शहरी विकास विभाग में भी ऐसी पहल की जा रही है। दूसरे विभागों में भी ऐसी कार्यवाही शुरू हो रही है।

  • सभी विश्वविद्यालयों में वाई-फाई

नेशनल नॉलेज नेटवर्क (एनकेएन) के तहत सभी विश्वविद्यालयों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस योजना को लागू करने के लिए नोडल मंत्रालय होगा।

  • सरकारी ईमेल की सुरक्षा

क. ईमेल संचार का प्राथमिक तरीका होगा।

ख.10 लाख कर्मचारियों का पहले चरण में उन्नतीकरण हो चुका है। दूसरे चरण में मूलभूत ढांचे में और सुधार होंगे जिसके दायरे में मार्च 2015 तक 50 लाख कर्मचारी आएंगे जिसकी लागत 98 करोड़ रुपये होगी। डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल विभाग होगा।

  • सरकारी ईमेल डिजाइन का मानकीकरण

सरकारी ईमेल के टेम्पलेट्स का मानकीकरण हो रहा है और अक्टूबर 2014 तक तैयार हो जाएगा। इसे डीईआईटीवाई द्वारा लागू किया जाएगा।

  • सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट्स

डिजिटल शहरों को बढ़ावा देने के लिए एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों व पर्यटक केंद्रों पर सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट मुहैया कराया जाएगा। इस योजना को दूरसंचार विभाग व शहरी विकास मंत्रालय द्वारा लागू किया जाएगा।

  • स्कूली किताबें ईबुक्स होंगी

सभी किताबों को ईबुक्स में तब्दील किया जाएगा। एचआरडी मंत्रालय/डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल एजेंसी होंगी।

  • एसएमएस आधारित मौसम सूचना**,** आपदा चेतावनियां

मौसम की सूचनाएं व आपदा चेतावनियां एसएमएस के जरिये दी जाएंगी। डीईआईटीवाई की मोबाइल सेवा प्लेटफार्म पहले ही तैयार हो चुका है और इस काम के लिए उपलब्ध है। एमओईएस (आईएमडी)/एमएचए (एनडीएमए) इस योजना को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी होंगे।

  • खोए-पाए बच्चों के लिए नेशनल पोर्टल

क. इसके जरिये खोए-पाए बच्चों से संबंधित सूचनाएं वास्तविक समय के आधार पर जुटाई व साझा की जा सकेंगी और इससे अपराध को रोकने में मदद मिलेगी व त्वरित कार्रवाई में सुधार होगा।

ख. इस परियोजना के लिए डीईआईटीवाई/ डीओडब्ल्यूसीडी नोडल एजेंसी होंगे।नकदी रहित भारत (कैशलेस इंडिया)

भारत सरकार ने 8 नवम्बर 2016 को अचानक 500 रुपये एवं 1000 रुपये की पुरानी मुद्रा के अवमूल्यन की घोषणा कर दी,यह कदम भारत में नकदी रहित अर्थव्यवस्था (कैशलेश इकॉनमी) का आगाज करने में निर्णायक साबित हुआ है। कैशलेस अर्थव्यवस्था ने अधिक से अधिक पारदर्शिता, मौद्रिक लेनदेन में आसानी और सुविधा का मार्ग प्रशस्त किया है।

केंद्र सरकार द्वारा उच्च मूल्य वर्ग की मुद्रा के विमुद्रीकरण एवं भारत में नकदी रहित अर्थव्यवस्था का विकास करने की दिशा में उठाये गए अन्य कदमों का स्वागत भी किया गया और साथ ही आलोचना भी हुई। पूरे देश में बड़े पैमाने पर 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रतिबंधित करने के फलस्वरूप उपजी नकदी की भारी कमी के खिलाफ देश भर में विपक्षी दलों द्वारा जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया गया।

किन्तु अबलोग डिजिटल माध्यमों द्वारा भुगतान को भी सुरक्षित एवं सुविधाजनक महसूस करने लगे हैं। इसके अलावा, नकदी रहित अर्थव्यस्था को प्रश्रय देने के लिए एवं लोगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नरेंद्र मोदी सरकार ने कई लाभकारी घोषणाएं भी की हैं।

इस कदम का लाभ अब प्राप्त होना शुरू हो गया है और ज्यादा से ज्यादा लोगों ने डिजिटल मुद्रा में लेन देन शुरू भी कर दिया है। भारत धीरे-धीरे नकदी केंद्रित अर्थव्यस्था से नकदी रहित अर्थव्यवस्था (कैशलेश इकॉनमी) की तरफ लगातार बढ़ रहा है। डिजिटल लेनदेन का पता आसानी से चल जाता है जिस वजह से सबके लिए करों का भुगतान करना अनिवार्य हो जाएगा और काले धन के संचलन के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे। पूरा देश लेनदेन के प्रक्रिया के आधुनिकीकरण के दौर से गुजर रहा है और इस वजह से ई-भुगतान सेवाओं में अभूतपूर्व प्रगति हो रही है। कारोबारियों की एक बड़ी संख्या और यहां तक ​​कि सड़क के किनारे सामान बेचने वाले फुटकर विक्रेताओं ने भी अब इलेक्ट्रॉनिक भुगतान स्वीकार करना शुरू कर दिया है और इस तरह से वे भी सभी लोगों को तेजी से नकदी रहित लेन-देन प्रणाली अपनाने के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हुए हैं।

सभी पुराने 500 रुपये और 1,000 रुपये की मुद्रा के विमुद्रीकरण के बाद देश में डिजिटल माध्यम द्वारा नकद लेनदेन में भारी उछाल देखा गया है। क्रेडिट / डेबिट कार्डों, मोबाइल फोन अनुप्रयोगों, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई), भीम (भारत इंटरफेस फॉर मनी) एप, आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) या ई-पर्स के तहत विभिन्न अनुप्रयोगों के द्वारा नकदी रहित भारत (कैशलेस भारत) के लक्ष्य को प्राप्त करने कि दिशा में अपेक्षित प्रगति दर्ज की गई है।

भारत जैसे विशाल देश में नकदी रहित अर्थव्यवस्था (कैशलेश इकॉनमी) लागू करने में कठिनाईयां आना तो स्वभाविक है लेकिन इस दिशा में प्रयास शुरू करना जरूरी था। आज डिजिटल माध्यम से मौद्रिक लेन-देन के प्रति लोगों के मानसिकता में एक बड़ा परिवर्तन आया है। लोग जान गए हैं कि डिजिटल माध्यम भी सुरक्षित, आसान, सुविधाजनक एवं पारदर्शी है और नकदी रहित भारत में काले धन या नकली मुद्रा की अब कोई गुंजाईश नहीं है।

विमुद्रीकरण के बाद से लोगों ने आखिरकार क्रेडिट कार्ड / डेबिट कार्ड, और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के अन्य चैनलों के रूप में प्लास्टिक मुद्रा में विश्वास करना शुरू कर दिया है। पर्याप्त नकदी की अनुपलब्धता के कारण ऑनलाइन बैंकिंग बाजार को प्रमुखता मिली है। इसके अलावा, भुगतान करने के लिए ई-कॉमर्स माध्यम भी लोकप्रिय हुआ है और यहां तक कि अधिकांश लोग तो अब 50 रूपए का भुगतान भी डिजिटल माध्यमों की सहायता से कर रहे हैं। इन सभी घटनाओं को अर्थव्यवस्था के बेहतर विकास के लिए अच्छा माना जा रहा है।

नकदी रहित भारत का महत्व

  • बिना नकदी के लेन-देन की सुविधा, नकदी लाने और ले जाने से जुड़ी हुई सभी परेशानियों से राहत पहुंचाता है।
  • यह वर्तमान दौर में दुनिया के साथ कदम-कदम मिलाकर चलने जैसा है क्योंकि पूरे विश्व में कई देशों में अब लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन के द्वारा ही होता है और इसके लिए नकदी की जरूरत नहीं रह गई है।
  • डिजिटल ट्रांजेक्शन आपको अपने खर्चों को एक बार में ही सरसरी तौर पर देखकर हिसाब लगाने की सुविधा प्रदान करता है जिससे आप अपने बजट को आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं।
  • बिना नकदी के किए गए लेनदेन की जांच आसानी से की जा सकती है इसलिए इनपर आवश्यक करों का भुगतान अनिवार्य हो जाता है जिससे काले धन की समस्या से मुक्ति मिलती है।
  • कैशलेस मोड के माध्यम से कर संग्रह आसान हो जाता है और यह आर्थिक विकास की गति को तेज करता है, क्योंकि सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे के विकास एवं लोगों के समग्र कल्याण पर खर्च करना आसान हो जाता है।
  • करों के संग्रह में वृद्धि होने की वजह से कर वसूली के ढ़ाचे में करों की दरें कम हो जाता है।
  • गरीबों एवं जरूरतमंदों को इस माध्यम से मौद्रिक लाभ सीधे उनके बैंक खातों में हस्तांतरित करने की सुविधा मिलती है जिससे बेईमान दलालों द्वारा गरीब शोषित होने से बच जाते हैं।
  • बिना नकद लेनदेन के द्वारा हवाला चैनलों के माध्यम से काले धन के वितरण पर रोक लगती है। इसके द्वारा बेहिसाब धन का आपराधिक एवं आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में किये जा रहे इस्तेमाल पर रोक लगती है।
  • इस सुविधा की वजह से सरकार द्वारा करेंसी नोटों के मुद्रण एवं प्रचलन के लागत में पर्याप्त बचत होती है।
  • बैंकों में भारी मात्रा में नकदी जमा रहने की वजह से ब्याज दरों को कम करने में मदद मिलती है और साथ ही बैंक इस नकदी का इस्तेमाल उत्पादक कार्यों में करने में समर्थ हो जाते हैं।

कैशलेस या लेन-देन के लिए नकदी रहित अर्थव्यवस्था (कैशलेश इकॉनमी) की अवधारणा डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का एक हिस्सा है और इसकी दृष्टि भारत को एक ऐसे समाज में बदलने पर केंद्रित है जो डिजिटल रूप से सक्षम हो एवं जहां बिना नकद लेन-देन के कई सशक्त तरीके विकसित हो चुके हों। नतीजतन, क्रेडिट / डेबिट कार्ड, मोबाइल वॉलेट्स, बैंको के प्री-पेड कार्ड्स, यूपीआई, यूएसएसडी, इंटरनेट बैंकिंग आदि जैसे डिजिटल माध्यमों के द्वारा, निकट भविष्य में भारत पूरी तरह से कैशलेस या नकदी रहित होने की तरफ अग्रसर है।

यूनीफायड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) एवं भीम एप्लीकेशन

यूनीफायड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई), जो सरकार द्वारा निर्मित भुगतान प्रणाली है, के तहत पंजीकृत सेलफोन नंबरों और पासवर्ड प्रमाणीकरण के आधार पर उपभोक्‍ताओं को पहले ही बैंकों से लिंक किया जा चुका है। ‘आधार’ संचालित भुगतान प्रणाली (एईपीएस), जो यूपीआई के ढांचे पर आधारित है, ने बायोमीट्रिक्स को एक अन्य प्रमाणीकरण उपाय के रूप में शामिल कर लिया है। कोई भी उपभोक्ता इसके तहत संबंधित कारोबारी के फिंगरप्रिंट रीडर के जरिए अपनी बायोमीट्रिक्स देकर किसी ट्रांजैक्‍शन की शुरुआत करता है, फि‍र डेटाबेस के जरिए उसे प्रमाणित किया जाता है और इसके बाद उस उपभोक्ता के बैंक खाते से निर्धारित धनराशि कटकर कारोबारी के बैंक खाते में चली जाती है। ऐसे सभी वाणिज्यिक डीएफएस प्रदाता, जो अपने उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) को बायोमीट्रिक दृष्टि से प्रमाणित करना चाहते हैं, वे यूपीआई के ढांचे को अपनी प्रणाली का आधार बना सकते हैं।

इसी प्रणाली पर आधारित “भीम एप्प” पिछले दिनों भारत सरकार द्वारा जनता को समर्पित की गयी है. इसका पूरा विस्तार “भारत इंटरफेस फॉर मनी” है. यह एक कई सुविधायुक्त मोबाइल बैंकिग एप्लीकेशन है जो मुफ्त में प्ले स्टोर पर उपलब्ध है. इसकी विशेषता यह है हि यह एप्लीकेशन न सिर्फ एंड्राइड प्लेटफोर्म पर बल्कि अन्य प्लेटफोर्म पर भी उपलब्ध है l यह सुविशा टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से साधारण फोन में भी उपलब्ध है l

अध्याय 5 : उपसंहार एवं सुझाव 

  1. उपसंहार
  2. ई प्रशासन हेतु कुछ सुझाव

अध्याय 5 . उपसंहार एवं सुझाव

  1. उपसंहार

वर्तमान विश्व में अधिकतर राज्य लोक कल्याणकारी हैं जिन्हें प्रशासकीय राज्य के तौर पर भी जाना जाता है और जो लोक सेवाओं पर अत्यधिक निर्भर हैं। राजनीतिक स्तर पर जनसाधारण की सहभागिता सुनिश्चित करने, सामाजिक चेतना में अभिवृद्धि करने, विकास की गति को तेजी प्रदान करने तथा आधुनिकता का परिवेश तैयार करने में लोक सेवाओं की निर्णायक भूमिका है। इस प्रकार आधुनिक कल्याणकारी शासन व्यवस्थाओं में लोक सेवाओं एक महत्वपूर्ण निकाय हैं जो सम्पूर्ण विकास तंत्र का मुख्य आधार भी हैं।

राज्य की मुख्य गतिविधियों को जनसाधारण में संचालित करने एवं प्रत्येक व्यक्ति तक विविध सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए लोक सेवाओं की आवश्यकता प्राचीनकाल से ही अनुभव की जाती रही है। मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ ही राजतंत्रात्मक व्यवस्थाओं में लोक सेवाएं प्रारम्भ हो गई थीं। लोक सेवाओं को वर्तमान में राज्य तथा संविधान के माध्यम से गठित कर विशिष्ट दायित्वों के अनुरूप ढाला जाता है। ये लोक सेवाएं राजनीतिक सत्ता की नीतियों एवं कार्यक्रमों को न केवल निष्पादित करती हैं अपितु राजनीतिक सत्ता को आवश्यक सूचना तथा परामर्श भी उपलब्ध करवाती हैं।

बीसवीं सदी के प्रमुख चिन्तक एल्विन टाफलर ने कहा कि- मानव सभ्यता को दो प्रमुख क्रांतियों ने प्रभावित किया है। पहली क्रांति के तहत् 10,000 वर्ष पूर्व हुई कृषि क्रांति ने मानव के खानाबदोश जीवन को सुस्थिर आधार देते हुए सामाजिक-आर्थिक विकास को गति दिखाई तो दूसरी क्रांति 17वीं सदी की औद्योगिक क्रांति थी, जिसने मानव को भौतिकवादी तथा आधुनिक जीवन दिया। उन्होंने तीसरी क्रांति के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति की कल्पना की थी जो आज हमारे सामने प्रवर्तित है।

गौरतलब है कि 1990 के दशक से वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण की संकल्पनाओं के अस्तित्व में आने एवं उनके कार्यशील होने के परिणामस्वरूप नव-उदारवादी राज्य सामने आया है। अब राज्य सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में नियामक की भूमिका में नहीं अपितु रेफरी की भूमिका में है। बाजारीकरण की तीव्रता के कारण राज्य को भी गला काट प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। सूचना का अधिकार एवं सूचना तकनीकी दोनों ने नौकरशाही की भूमिका में परिवर्तन जरूरी बना दिया है। सूचना तकनीक के प्रयोग से प्रशासनिक कार्य प्रणाली को अधिक सक्षम और प्रभावी बनाया जा सकता है, वहीं सूचना के अधिकार के तहत नौकरशाही में, पारदर्शिता, खुलेपन, उत्तरदायित्व एवं संवेदनशीलता ग्रहण करने की मांग बढ़ रही है।

उल्लेखनीय है कि भारत में अभी भी आर्थिक एवं सामाजिक विषमताएं बड़े पैमाने पर हैं एवं बहुत बड़ी जनसंख्या अभी भी गरीबी एवं विपन्नता में जी रही है इसलिए नव-उदारवादी व्यवस्था में भी भारतीय परिप्रेक्ष्य में नौकरशाही की नियामक स्थिति बनी हुई है। आधुनिक युग में सभी सरकारों का एकमेव प्रमुख कार्य लोक कल्याण ही है। स्पष्ट है कि वर्तमान शासन व्यवस्थाओं में राज्य के कंधों पर जनकल्याण तथा सुरक्षा के गुरुत्तर दायित्व हैं जिनकी क्रियान्विति का माध्यम लोक सेवाएं ही हैं। लोक सेवाओं में विपुल, योग्य तथा निपुण कार्मिकों की सहायता से ही शासन की नीतियों, योजनाओं तथा कार्यक्रमों की व्यावहारिक स्तर पर क्रियान्विति संभव हो पाती है। लोक सेवाओं के माध्यम से ही पिछड़े वर्गों, बंधुआ मजदूरों तथा असहाय व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाती है।

वर्तमान प्रशासन की विकास प्रशासन के रूप में इसलिए वर्णित किया जाता है कि देश के समस्त नागरिकों का समग्र विकासलोकप्रशासन के प्रयासों से ही सम्भव है। कृषि एवं आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने वाले समस्त उद्योगों का विकास, मशीनीकरण, संसाधनों का समुचित दोहन, आयात निर्यात में संतुलन, उत्पादन तथा आय में वृद्धि और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक कारकों को प्रगतिशील बनाए रखने हेतु लोक सेवकों की भूमिका सर्वविदित है।

शासन की नीतियों एवं कार्यक्रमों के निरूपण में मंत्री को सूचना एवं परामर्श उपलब्ध करवाने का दायित्व लोक सेवक का होता है क्योंकि वह प्रशासन के कार्यों में कुशल और विशेषज्ञ होता है। राजनीतिक गतिविधियों में कार्यरत मंत्रियों के पास न तो इतना समय होता है कि वे प्रशासनिक कार्यों में गंभीरतापूर्वक रुचि ले सकें और न ही वे इतने कुशल होते हैं कि प्रशासन की प्रत्येक गतिविधियों को सूक्ष्मता से समझ सकें, अतः लोक सेवकों को ही जनकल्याण के कार्य निष्पादित करने पड़ते हैं।

भारत सहित अधिकांश विकासशील देश सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं से ओत-प्रोत हैं। भारत में भाषावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद तथा सांप्रदायिकता की सामाजिक समस्याएं विद्यमान हैं। इन समस्याओं की तीव्रता कम करने में लोक सेवकों की दोहरी भूमिका है। एक तो लोक सेवाएं तटस्थता तथा समानता के आधार पर कार्य करती हैं दूसरी इन सेवाओं की प्रकृति एवं कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय स्तर का है। लोक सेवाओं की यह प्रकृति लोक सेवाओं में संकीर्णता त्यागकर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने में सहायता करती है। लोक सेवाओं में सभी जाति, वगों, भाषाओं, क्षेत्रों तथा सम्प्रदायों के कार्मिक कार्य करते हैं जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं।

शासकीय कार्यों की सम्पूर्ति के निमित्त विशाल संख्या में विशिष्ट योग्यताधारी लोक सेवकों की आवश्यकता होती है। कल्याणकारी राज्य के दायित्व भी चहुंमुखी हैं अतः लोक सेवकों के माध्यम से सरकार जनकल्याण के कार्य निष्पादित करवा सकती है। राजनीतिक स्तर पर जनसाधारण की सहभागिता सुनिश्चित करने, सामाजिक चेतना में अभिवृद्धि करने, विकास की गति को तेजी प्रदान करने तथा आधुनिक परिवेश तैयार करने में लोक सेवकों की निर्णायक भूमिका है।

सर्वप्रथम नौकरशाही तंत्र में मौजूद दोषों या कमियों का परिमार्जन आवश्यक है जो उसके दिन-प्रतिदिन के कार्यों एवं क्षमता को प्रभावित करता है। नौकरशाही की राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त कराना अत्यंत आवश्यक है। नौकरशाही को विवेकपूर्ण ढंग से परामर्श देने तथा नीतियों को क्रियान्वित करने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। यह तभी व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलों का परीक्षण भी करेगी तथा सभी स्तरों पर प्रशासनिक कामकाज के सहज संचालन को आरंभ करेगी। दूसरे, हमारे देश एवं देशवासियों के प्रति नौकरशाही के दृष्टिकोण एवं उपागम को व्यापक अथों में बदलने की आवश्यकता है।

नागरिक सेवाओं के नियमों एवं उत्तरदायित्वों को निर्धारित करना अति आवश्यक है। उदाहरण के लिए, किसी स्थान पर लोक सेवक की नियुक्ति की अवधि को निश्चित किया जा सकता है ताकि उस अवधि के समाप्त होने से पहले ही लोक सेवक का स्थानांतरण होने पर, उसे हटाने के सही-सही कारणों के बारे में पूछा जा सके। विशेषतः मंत्रिमंडल सचिव एवं राज्यों के मुख्य सचिव जैसे शीर्ष पदों के लिए सीमित कार्यकाल अनिवार्य है क्योंकि ये वरिष्ठ अधिकारी शासक दल एवं नौकरशाही के बीच तटस्थता पूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वर्तमान में लोक सेवकों द्वारा सरकार में अधिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही की मांग की जा रही है ताकि राजनीतिज्ञ लोक सेवकों को अपने अधीन लेन के लिए धन एवं बाहुबल का प्रयोग करने के बारे में पुनर्विचार कर सकें। संवर्ग आवंटन, कार्य निष्पादन सम्बन्धी सूचनाएं तथा किसी अधिकारी के निर्णय से जुड़ी फाइलों तक पहुंच, आदि ऐसे विषय हैं, जिनमे अधिक खुलेपन की जरुरत है। नौकरशाही की सबसे मुख्य समस्या यह है कि उनके पास अपनी शिकायतों एवं असहमतियों को प्रकट करने का कोई उपयुक्त तंत्र उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में मत विभिन्नताओं का कोई लाभदायक उपयोग नहीं हो पाता तथा वे दिमाग में भरी रहने को विवश होती हैं। इस संदर्भ में नियमों एवं विनियमों को परिष्कृत रूप देने की आवश्यकता है। नौकरशाहों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे प्रशासनिक निर्णयों के तकधिार को जनसंचार माध्यमों के द्वारा सुस्पष्ट कर सकें। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलों में ऐसे अधिकार को प्रतिबंधित किया जा सकता है। किसी मामले में नौकरशाहों की सलाह को निरस्त करने की स्थिति में उन्हें इस संबंध में फाइल पर लिखित आदेश प्राप्त करने की अनुमति होनी चाहिए।

सामान्यज्ञों एवं विशेषज्ञों के बीच मौजूद विवाद तथा अन्य दूसरी समस्याओं को भी अतिशीघ्र निपटाने के प्रयास किये जाने चाहिए।

राजनीतिज्ञों का संरक्षण ही अधिकारियों को दण्डात्मक कार्यवाही से भय मुक्त बना देता है। कड़े कानूनों का निर्माण तथा उन्हें लागु करके ऐसे नौकरशाहों को दण्ड देना, जो अपने पद का दुरुपयोग करते हैं तथा भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करते हैं, आज की मूल आवश्यकता है| अंत में, राजनीतिज्ञों को भी सर्वप्रथम स्वयं में सुधार करना होगा। जहां भी भ्रष्ट राजनीतिज्ञ मौजूद होंगे, वहां नौकरशाहों को उनके पद चिन्हों पर चलने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

व्यापक अर्थों में हमारे नौकरशाहों की वर्तमान समाजार्थिक पर्यावरण तथा जन-सामान्य की आवश्यकताओं व इच्छाओं के प्रति संवेदनशील एवं विश्वासजनक रवैया अपनाना होगा। उनमें उभरते बदलावों तथा अप्रत्याशित घटनाक्रमों से निपटने हेतु एक दृष्टितथा प्रेरणा का होना आवश्यक है। उन्हें नीति-नियोजन के क्षेत्र में शोधपरकता की महत्व देना होगा। नौकरशाही में व्यापक अनुकूलनशीलता होनी चाहिए। ताकि वह स्वतंत्र तथा लोचपूर्ण तरीके से अपनी गलतियों में प्रभावी सुधार कर सके और पुराने नियमों व संरचनात्मक ढांचों को परे रखकर नवीन संस्थात्मक प्रणालियों के साथ उभर क्र आ सकें।

अति विविधता वाले भारत में नौकरशाही का स्वरूप आज की तुलना में अधिक प्रतिनिध्यात्मक होना चाहिए। इसके लिए भर्ती की योजना में परिवर्तन करके यह सुनिश्चित करना होगा कि अभिजात्य वर्ग के अलावा जन-सामान्य स्तर से आये अधिकाधिक लोग प्रशासन तंत्र को संचालित करने में भागीदार बन सकें। वर्तमान में अधिकांश लोक सेवक जन-सामान्य के प्रति उदासीन दृष्टिकोण रखते हैं। इस प्रकार के दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है क्योंकि स्वतंत्र भारत में नौकरशाही का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र का समाजार्थिक विकास करना है। नौकरशाही को ऐसे उपागमों को अपनाना चाहिए, जिनसे अधिकाधिक लोग विकास प्रक्रिया में भागीदार बन सकें।

वैश्वीकरण के युग में, राज्य की भूमिका में परिवर्तन हुआ है। संचार तकनीक में तीव्र उन्नयन के चलते वैश्वीकरण में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। तकनीक के इस तीव्र विकास के कारण हम वैश्विक समुदाय की बात करते हैं। अतः वर्तमान में, बेहतर एवं दुरुस्त प्रशासन के लिए तकनीकी का इस्तेमाल अपरिहार्य है और लोक प्रशासन में प्रौद्योगिकी का प्रयोग इसे पारदर्शी एवं जिम्मेदार बनाता है। अतः अब समय आ चुका है कि लोक सेवाओं को प्रविधि उन्मुख बनाया जाए।

अब राज्य का विशेष जोर सामाजिक क्षेत्र पर है और होना चाहिए। इसके लिए राज्य की शासन के प्रति अपने उपागम को बदलना होगा। भागीदारी की युक्ति अपनानी होगी। लोक सेवाओं को मात्र सरकार कर सकती है के नजरिए से बाहर निकलकर लोगों की भागीदारी वाली सरकार कर सकती है के विचार को अपनाना होगा।

ई प्रशासन हेतु कुछ सुझाव

ई प्रशासन को काफी प्रभावी ढंग से कुशल बनाये जाने के प्रयास किये गए हैं किन्तु फिर भी इसमें अभी काफी सुधार आना बाकी है l शोध के उपरान्त शोधार्थी द्वारा कुछ सुझाव निचे दिए गए हैं जो कि ई प्रशासन हेतु लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं l

सुरक्षा सम्बन्धी विश्वसनीयता को बढाया जाये

हम देखते हैं कि रोज़ नए तरीके से साइबर अपराध बढ़ रहे हैं l इन घटनाओं से लोगो में असुरक्षा की भावना बढती है l जनता साइबर माध्यमो का उपयोग करने से हतोत्साहित होती है l

माइक्रोसॉफ्ट सिक्योरिटी रिस्पाँस सेंटर के प्रिंसिपल सिक्योरिटी ग्रुप मैनेजर फिलिप मिसनर लिखते हैं कि ज्यादातर साइबर अपराधी आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले फिशिंग तकनीक का ही प्रयोग करते हैं. इनसे बचने के लिए आप किसी भी ऐसे लिंक को ना खोलें जिस पर आपको भरोसा न हो. ऐसी सोर्सेज से सॉफ्टवेयर डाउनलोड न करें जिसके बारे में आपको जानकारी न हो.

भारत में इस खतरनाक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार को अवश्‍य ही इन समस्‍त कार्यों को करने हेतु तत्काल निम्न कदम उठाने चाहिए:

(i) उन सभी प्रौद्योगिकियों को सिरे से खारिज कर देना जिनमें शुरू से ही ‘अंतर्निहित गोपनीयता’ नहीं होती है;

(ii) डेटा सुरक्षित रखने के लिए ‘अटूट एन्क्रिप्शन’ के उच्चतम मानकों को अपनाना;

(iii) खुले मानकों के उपयोग को अनिवार्य करना;

(iv) एक ऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण डेटा गोपनीयता कानून बनाना जो उपभोक्ताओं को लागू किए जाने वाले अधिकार दे, और

(v) एक स्वतंत्र एवं विशेषज्ञता आधारित बाजार नियामक बनाना।

संवाद स्थापित किया जाए

प्राम्भ से ही, नागरिक आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं में परिवर्तन को पहचानने में नेताओं के समक्ष नौकरशाही एक बड़ी बाधा है। निर्वाचनों के अतिरिक्त नागरिक आगत (citizen input) के विषय में जान पाना थोड़ा कठिन होता है। बेहतर संवाद व्यवस्था की अक्षमता से बहुधा नागरिकों, नेताओं एवं लोक कार्यों का क्रियान्वयन करने वालों के मध्य भेद  उत्पन्न होता है।

अपने एक-मार्गीय (one-way) प्रसारण को द्धि-मार्गीय (two way) बनाने से शासन प्रक्रिया अधिक दक्षता से जनता की समस्याएं सुनने एवं उन पर प्रतिक्रिया कर पाने में और अधिक दक्ष हो सकेगी। आवश्यकता है कि नौकरशाही को प्रतिक्रिया प्राप्त करने एवं उस पर सुधार करने हेतु समुचित निर्देश दिए जाएँ l

तकनीकी कुशलता बढाई जाये

चूंकि सायबर दुनिया में कोड ही कानून है, इसलिए इस सेक्टर में ज्‍यादातर गोपनीयता और सुरक्षा जोखिमों को उचित डिजाइनिंग एवं इंजीनियरिंग के जरिए कम किया जा सकता है।  हालांकि, ‘अंतर्निहित संपूर्ण गोपनीयता’ सुनिश्चित करने के लिए गोपनीयता कानून अत्‍यंत आवश्यक है। यही नहीं,इसी कानून के तहत उपभोक्ताओं को ऐसे गोपनीयता अधिकार अवश्‍य ही दिए जाने चाहिए जिन्‍हें लागू करना संभव हो। यह सच है कि परंपरागत उपभोक्ता गोपनीयता कानून, जिसे ‘सूचना और सहमति’ मॉडल पर बनाया गया है, विफल हो रहा है। वैसे तो सहमति का चलन समाप्‍त नहीं हुआ है, लेकिन इसके बारे में बस फि‍र से परिकल्‍पना करने की जरूरत है। डेटा से जुड़े तौर-तरीकों  के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक तरीका यह है कि इसे उपयोग आधारित विनियमन और गोपनीयता की प्रासंगिक अपेक्षाओं पर आधारित अनिवार्य अहित चेतावनियों  के जरिए संभव किया जाए।

जनता में जागरूकता कार्यकमों का प्रसार

विज्ञापनों एवं शिविरों के माध्यम से आम जनता में जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाएँ जिनमे इस क्षेत्र में होने वाले संभावित खतरों एवं सावधानियो की जानकारी दी जाए. साथ ही साथ उन्हें उनके अधिकारों, कानूनों एवं दायित्वों की जानकारी भी मुहैया कराई जाये. अंततः जागरूक जनता के हाथ में ही यह सुविधा प्रदान किये जाने के उद्देश्य हेतु प्रयास किये जा रहे हैं.

पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम**.**

हर किसी के लिए इंटरनेट हो यह अच्छी बात है. इसके लिए पीसीओ के तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट बनाए जा सकते हैं. ये पीसीओ आसानी से समस्या हल कर सकते हैं, लेकिन हर पंचायत के स्तर पर इसको लगाना और चलाना कोई आसान काम नहीं है. इसी के चलते पिछले कई साल से योजना लंबित है. इस में आ रही बाधाओं को दूर करते हुए इसे प्रभावी ढंग से लागू कराया जाये l

सैधांतिक की अपेक्षा प्रायोगिक शिक्षा पर बल

शिक्षण एवं प्रशिक्षण स्तर पर सैधांतिक की अपेक्षा प्रायोगिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाना चाहिए. इस से गुणवत्ता एवं रूचि का विकास होगा. प्रायमरी शिक्षा में कंप्यूटर को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाये कि शिक्षण सुचारू रूप से चलता रहे l कम्पूटर एवं अन्य उपकरण कार्य करते रहें तथा कक्षाएं निर्बाध पूर से चलती रहें l

मोबाइल नेटवर्क को बढ़ावा

भारत में मोबाईल नेटवर्क काफी तेज़ी से विकसित हुआ है l पिछले कुछ सालो में इसकी विकास की गति सराहनीय रही है l इसी के कारण मोबाईल से इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ी है l वोईस कॉल एवं वीडियो कॉल भी बहुत सहजता से किये जा रहे हैं l इस अवसर का लाभ ई प्रशासन में भी मिला है l अतः सरकार को चाहिए कि मोबाईल नेटवर्क को और अधिक मज़बूत बनाया जाये l निजी कम्पनियों को और अधिक सहूलियतें व कर में छूट प्रदान की जाए ताकि मोबाइल कम्पनियों को प्रोत्साहन मिले l

न्याय एवं पुलिस प्रशासन के क्षेत्र में

  • ऑनलाईन अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली विकसित की जाये
  • जांच, अपराध निरोधक कानून, और व्यवस्था के रखरखाव और यातायात प्रबंधन, आपातकालीन प्रतिक्रिया, आदि जैसे अन्य कार्यों के लिए उन्नत उपकरण प्रदान करना।
  • पुलिस कार्य एवं अन्य प्रचालनों की प्रभावशीलता के लिए आईटी व अन्य तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए l
  • आसानी और तेजी से विश्लेषण के लिए जानकारी प्रदान करना|
  • हस्तकार्य की जरूरत को कम करते हुए नीरस और दोहराव वाले कार्य करने में कमी l
  • संचार सुधार जैसे पुलिस संदेश, ईमेल प्रणाली, आदि पर ध्यान दिया जाये |
  • बैक ऑफिस कार्यों को स्वचालित बनाना, और इससे पुलिस कर्मचारियों को केंद्रीय पुलिस कार्यों पर अधिक ध्यान देने के लिए छोड़ना।
  • राज्य और केंद्र स्तर पर और देश भर में अपराध और आपराधिक डेटाबेस / जानकारी साझा करने के लिए राज्यों में प्लेटफार्मों बनाना |
  • देश भर में और अन्य एजेंसियों में राज्य स्तर और भारत सरकार के स्तर राज्यों में खुफिया जानकारी साझा करने के लिए एक मंच बनाना |

संदर्भ ग्रंथ सूची

  1. डॉक्टर मिश्र, साइबर विधि एक परिचय, सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन संस्करण प्रथम 2014
  2. ठाकुर अमिताभ एवं मोहम्मद जैदी हसन, साइबर क्राइम, आलिया लॉ एजेंसी, संस्करण प्रथम
  3. डॉक्टर पाठक अरुण कुमार, साइबर क्राइम एवं साइबर क्लास, पुस्तक सदन प्रकाशन, संस्करण प्रथम
  4. प्रोफ़ेसर त्रिपाठी, मधुसूदन साईबर अपराध, ओमेगा पब्लिकेशन, दिल्ली, संस्करण प्रथम, 2014
  5. वर्मा अंजलि, इंटरनेट महत्व और प्रयोग, ओमेगा पब्लिकेशन, दिल्ली संस्करण प्रथम, 2014
  6. सी. एम. अभिलाष, विकासशील देशों में ई कॉमर्स विधियां : भारत के परिपेक्ष्य में l
  7. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000
  8. वेबसाईट http://hi.vikaspedia.in/e-governance/
  9. वेबसाईट www.weikipedia.com
  10. वेबसाईट https://india.gov.in/hi/
  11. वेबसाईट http://lawmantra.co.in/

प्रमुख वाद

  • दिल्ली राज्य बनाम मोहम्मद अफज़ल व अन्य 2003 (3) SCC 1669.
  • अवनीश बजाज बनाम दिल्ली राज्य  (2005) 3 Comp, LJ 364 (Del) 116 (2005) DLT 427,
  • तमिलनाडु राज्य विरुद्ध सुहास कुट्टी C.C.NO.4680/2004.
  • श्रेया सिंघल वि. भारत संघ  W.P. (Crim.) No 167 of 2012.
  • पी. आर. ट्रांसपोर्ट एजेंसी बनाम भारत संघ व अन्य AIR 2006 All 23, 2006 (1) AWC 504