मध्यप्रदेश अपराध पीड़ित प्रतिकर योजना, 2015

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 19 73 की धारा 357-क की उपधारा (1 ) और (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत , राज्य सरकार, ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर ऐसे अपराध पीड़ितों या उनके आश्रितों को, जिन्हें अपराध के परिणामस्वरूप हानि या क्षति कारित हुई है और जिन्हें पुनर्वास की आवश्यकता है, प्रतिकर के लिए निधियां (फंड) उपलब्ध कराने और प्रतिकर (मुआवज़ा) की मात्रा का विनिश्चय करने के लिए यह योजना बनाई गयी है।

इस योजना में हानि शब्द का अर्थ क्या है ?

“हानि” में सम्मिलित है किसी सम्पत्ति को कोई हानि जो अभियुक्त की ओर से किए गए किसी आपराधिक कृत्य के कारण हुई क्षति के परिणामस्वरूप हुई हो;

इस योजना में “पीड़ित” किसे कहेंगे ?

पीड़ित” से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जिसे अभियुक्त के आपराधिक कृत्य के कारण कोई हानि या क्षति कारित हुई है और “पीड़ित” पक्ष के अन्तर्गत उसका संरक्षक या विधिक वारिस भी है किन्तु इसमें ऐसा कोई व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो ऐसे व्यक्ति को क्षति के लिए उत्तरदायी हो;

इस योजना में “आश्रित” किसे कहेंगे ?

आश्रित” में सम्मिलित हैं –

  1. पीड़ित की पत्नी / पति,
  2. पिता,
  3. माता,
  4. अविवाहित पुत्री,
  5. अवयस्क बच्चे

जो आश्रित होने का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए सशक्त किसी प्राधिकारी या सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा इस प्रकार अवधारित किए गए हों.

अपराध पीड़ित को क्षतिपूर्ति देने के लिए फंड की व्यवस्था कैसे की जाएगी ?

अपराध पीड़ित प्रतिकर निधि का गठन.–

(क) पीड़ित प्रतिकर निधि के नाम से एक निधि का गठन किया जाएगा। ‘

(ख) पीड़ित प्रतिकर निधि निम्नलिखित से मिलकर बनेगी.

  1. राज्य द्वारा वार्षिक बजट में किया गया बजट आबंटन
  2. संहिता की धारा ऊ7ए के अधीन संहिता द्वारा प्रदान किए गए प्रतिकर को पटाने के पश्चात्‌ अधिरोपित जुर्मानों की राशि की प्राप्ति
  3. अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय पूर्त संस्थाओं, संगठनों तथा व्यक्तियों से प्राप्त दान तथा अभिदान |
  4. निधि की राशि नवीन खाता शीर्ष के अधीन लोक लेखा में रखी जाएगी।
  5. विद्यमान खाता शीर्ष जिसमें कि संहिता की धारा 357 के अनुसार जुमनि तथा शुल्क (फीस) जमा किए जाते हैं, नए खोले गए खाता शीर्ष में जमा किए जाएंगे |

मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का सदस्य सचिव, इस योजना के अधीन गठित निधि का संचालन करेगा;

योजना की निगरानी-

योजना की निगरानी करने के लिए राज्य और जिला स्तरीय समितियां गठित की जाएंगी और जो निम्नलिखित से मिलकर बनेंगी –

राज्य स्तरीय

(एक) प्रमुख सचिव, मएप्र0 शासन,गृह विभाग -अध्यक्ष

(दो) प्रमुख सचिव, म0प्र0 शासन,

विधि और विधायी कार्य विभाग -. सदस्य

(तीन) राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, म.प्र शासन – सदस्य

(चार) उप सचिव, म0प्र0 शासन, गृह विभाग – सचिव

जिला स्तरीय समिति

(एक) जिले का जिला एवं सन्न न्यायाधीश -. अध्यक्ष
(दो) जिले का जिला दण्डाधिकारी .. – सदस्य
(तीन) जिले का जिला पुलिस अधीक्षक -. सदस्य
(चार) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण -.. सचिव

(क) राज्य स्तरीय समिति द्वारा लंबित आवेदनों एवं अपीलों की समीक्षा बैठक
त्रैमासिक आधार पर की जाएगी |

ख) राज्य विधिक प्राधिकरण राज्य स्तरीय डाटा संबंधित जिलों से एकत्रित करने
के पश्चात्‌ राज्य स्तरीय समिति को प्रस्तुत करेगा ।

ग) जिला स्तरीय समिति प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में लंबित प्रकरणों का
परीक्षण और पुनरावलोकन करेगी |

इस योजना में प्रतिकर के लिए कौन पात्र होगा ?

निम्नलिखित मामलों में पीड़ित अथवा उसका आश्रित योजना के अधीन प्रतिकर प्राप्त करने के लिए पात्र होगा –

(1 ) जहां कि संहिता की धारा 357-क की उपचधारा (2) अथवा (3) के अधीन न्यायालय द्वारा कोई सिफारिश की जाती है, तो जिला विधिक प्राधिकरण अथवा राज्य विधिक प्राधिकरण प्रतिकर की राशि का निर्धारण करेगा।

(2) जहां कि विचारण न्यायालय, विचारण की समाप्ति पर कोई सिफारिश करता है, जबकि इस बात का समाधान हो जाता है कि संहिता की धारा 357 के अधीन प्रदान किया गया प्रतिकर ऐसे पुनर्वास के लिए पर्याप्त नहीं है अथवा जहां कि मामले में दोषभुक्ति या उन्‍मोचन हो जाता है और पीड़ित का पुनर्वास किया जाना है, अथवा

3) जहां कि अपराधी को खोजा या पहचाना नहीं गया है परंतु पीड़ित की पहचान की गई है और जहां कोई विचारण नहीं होता है अथवा विचारण न्यायालय द्वारा पीड़ित को प्रतिकर अद्वायगी के बारे में कोई आदेश नहीं दिया गया हो और वहां पीड़ित या उसका आश्लित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन कर सकता है।

(4 ) वह अपराध, जिसके कारण योजना. के अधीन प्रतिकर का भुगतान किया जाना है, राज्य के भीतर घटित हुआ हो, या राज्य के भीतर घटना की शुरूआत हुई हो।

किन्तु इसका एक अपवाद भी है –

यदि अपराध राज्य के बाहर घटित हो और पीड़ित राज्य की सीमा के भीतर पाया जाता है तो वह संहिता की धारा 357- क की उप-धारा ) के अधीन अनुध्यातं अंतरिम अनुतोष के लिए पात्र होगा।

कौन कौन से न्यायलय प्रतिकर देने का आदेश दे सकते हैं ?

निम्न न्यायलय जो अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं, अर्थात उस समय उन के समक्ष वह मामला या प्रकरण है, प्रतिकर सिफारिश राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से कर सकते हैं।

  1. विचारण न्यायालय,
  2. अपीलीय न्यायालय,
  3. जिला एवं सत्र न्यायालय
  4. उच्च न्यायालय

प्रतिकर प्रदान करने की प्रक्रिया क्या है ?

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 क की उप-धारा (4) के अधीन आवेदन पर, विचारण न्यायालय, अपीलीय न्यायालय, उच्च न्यायालय या जिला एवं सत्र न्यायालय जो अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं, उनके द्वारा सिफारिश प्राप्त होने पर राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, समुचित प्राधिकारी के माध्यम से सम्यक्‌ जांच के पश्चात्‌ जैसा कि राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण उचित समझे, दो माह के भीतर जांच पूर्ण करके पर्याप्त प्रतिकर प्रदान करेगा ।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पीड़ित को अपराध से हुई हानि या क्षति से संबंधित दावे की विषयवस्तु का परीक्षण एवं सत्यापन करेगा।

प्राधिकरण, दावे की सत्यता निर्धारित करने के लिए आवश्यक सुसंगत जानकारी मंगा सकेगा।

दावे का सत्यापन और सम्यक जांच करने के पश्चात्‌, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, योजना के उपबंधों के अनुसार दो माह के भीतर पर्याप्त प्रतिकर प्रदान करेगा।

अंतरिम क्षतिपूर्ति का आदेश –

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी (थाना प्रभारी या TI )से अनिम्न श्रेणी के पुलिस अधिकारी या न्यायिक या कार्यपालक मजिस्ट्रेट या संबंधित क्षेत्र के सक्षम चिकित्सा अधिकारी के प्रमाण-पत्र पर तत्काल प्राथमिक उपचार सुविधा या चिकित्सा जाभों को निःशुल्क उपलब्ध कराए जाने हेतु या किसी अन्य अंतरिम अनुतोष का, जैसा कि प्राधिकरण द्वारा उचित समझा जाए, आदेश दे सकेगा।

प्रतिकर की राशि कितनी होगी ?

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, अनुशंसा की प्राप्ति के साठ दिवस के भीतर संहिता की धारा 357 (क ) की उपधारा (2) तथा (3) के अधीन प्रतिकर की मात्रा विनिश्चित करेगा।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा यथा विनिश्चित प्रतिकर एक मुश्त या दो किश्तों में संदत्त किया जाएगा .
प्रतिकंर की राशि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निम्न मानक मानदण्डों के आधार पर विनिश्चित की जाएगी –

सक्र. हानि या क्षति  प्रतिकर की अधिकतम राशि
. – जीवन की हानि (मृत्यु ) . आय अजित करने वाले की मृत्यु की दशा में अधिकतम रूपए 4.00 लाख तक
. आय अजित न करने वाले की मृत्यु की दशा में अधिकतम रूपए 2.00 लाख तक
) भ्रूण को हानि या क्षति रूपए 50 हजार तथा शासकोय

चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज

2 शरीर में 100 प्रतिशत स्थायी निःशक्तता होने पर ) जहां पीडित आय अर्जित करता हो अधिकतम रूपए 3,00 लाख तक (शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज)
. जहां पीडित कोई आय अर्जित न करता हो। अधिकतम रूपए 1.50 लाख तक (शासकीय चिकित्सालय. में निःशुल्क इलाज)
3 शरीर में स्थायी निःशक्तता 40 प्रतिशत से अधिक होने पर . जहां पीड़ित आय अर्जित करता हो | अधिकतम रूपए 2.00 लाख तक (शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज)
. जहां पीडित कोई आय अर्जित न करता हो। अधिकतम रूपए 1.00 लाख तक (शासकीय चिकित्सालय. में निःशुल्क इलाज)
4 () महिला की प्रजनन क्षमता की स्थायी क्षति (बलात्कार को छोड़कर अन्य आपराधिक घटना में) अधिकतम रूपए 1.50 लाख तथा शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज)
() शरीर क महत्वपूर्ण भाग पर गंभीर चोट अथवा शल्य क्रिया . जहां पीड़ित आय अर्जित करता हो | अधिकतम रूपए 50 हजार क्‍ शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज)
. जहां पीडित कोई आय अर्जित न करता हो। अधिकतम रूपए 25 हजार तक (शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज)
5 () सामूहिक बलात्कार अधिकतम रूपए 3.00 लाख तथा शासकीय चिकित्सालय. में निःशुल्क इलाज |
() अवयस्क बच्चों के साथ लैंगिक अपराध अधिकतम रूपए 2.00 लाख तथा शासकीय चिकित्सालय. में निःशुल्क इलाज |
6 () एसिड अटैक से कुरूपता 40 प्रतिशत से अधिक होने पर अधिकतम रूपए 3.00 लाख, जिसमें से 1.00 लाख रूपए सूचना दिनांक के 15 दिवस के अंदर एवं शेष राशि रूपए 2.00 लाख दो माह के अंदर तथा शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज
() एसिड अटैक से कुरूपता 40 प्रतिशत से कम होने पर अधिकतम रूपए 1.50 लाख, जिसमें से 50,000 रूपए सूचना दिनांक के 15 दिवस के अंदर एवं शेष राशि दो माह के अंदर तथा शासकीय चिकित्सालय में निःशुल्क इलाज

 

पीड़ित पक्षकार की समग्र स्त्रोतों से वार्षिक आय 5.00 लाख रूपये से अधिक होने पर अनुसूची एक में दी गई समस्त शीर्षों में प्रतिकर राशि 50 प्रतिशत देय होगी।

अम्ल हमले के मामले में, ऐसे पीड़ित को ऐसी घटना होने के 45 दिवस के भीतर रुपए 1 लाख (एक लाख) संदत्त किया जाएगा ।

प्रतिकर की मात्रा कैसे या किस आधार पर तय की जाएगी ?

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, निम्न आधार पर प्रतिकर की मात्रा तय करेगा –

  1. पीड़ित को हुई हानि,
  2. उपचार पर हुए चिकित्सा व्यय,
  3. पुनर्वास हेतु अपेक्षित न्यूनतम निवर्हन राशि
  4. अन्य कोई आवश्यक आधार

बलात्संग वाइडर ट्रॉमा के पीड़ित को प्रतिकर के मामले में, संबंधित जिले के परिवीक्षा अधिकारी को प्रभावी पुनर्वास तथा सतत्‌ मूल्यांकन के लिए सूचित किया जाएगा |

 

यदि विचारण न्यायालय, प्रतिकर के अनुतोष के पश्चात्‌ की तारीख में निर्णय पारित करते समय संहिता की धारा 557 की उपधारा (3) के अधीन प्रतिकर के रूप में अभियुक्त को रकम संदत्त करने के लिए आदेश करता है तो अभियुक्त, संहिता की धारा 557 की उपधारा (3) के अधीन प्रतिकर की रकम के बराबर या संदत्त की जाने वाली आदेशित रकम, जो भी कम हो, देगा । पीड़ित या उसके दावेदार द्वारा, प्रतिकर की रकम के संवितरण के पूर्व इस प्रभाव का एक वचनबंध दिया जाएगा।

योजना के अधीन विनिश्चित प्रतिकर की रकम पीड़ित प्रतिकर निधि से पीड़ित या उसके आश्रित को संवितरित की जाएगी। किसी अन्य अधिनियम के अधीन या राज्य की कोई अन्य स्कीम के अधीन अपराध के संबंध में कोई प्रश्न अर्थात्‌ बीमा, जिसकी किश्तों का भुगतान राज्य अथवा केन्द्र शासन द्वारा किया गया हो से प्राप्त अनुग्रह राशि या प्राप्त भुगतान से पीड़ित को प्राप्त होगा, इस स्कीम के अधीन प्रतिकर की रकम का एक अंश के रूप में विचारण किया जाएगा, पीड़ित

या उसके आश्रित जो उपरोक्त उल्लिखित समस्त स्ख्रोतों से प्रतिकर की रकम प्राप्त करता है इस योजना के अधीन प्रतिकर का एक भाग समझा जाएगा तथा इस योजना के अधीन पृथक प्रतिकर का हकदार नहीं होगां। उपरोक्त समस्त स्त्रोतों से प्राप्त राशियां अनुसूची में प्रदत्त प्रतिकर की राशि से कम हो तो बकाया रकम निधि से प्रदाय की जाएगी।

(9) मोटरयान अधिनियम, 1988 (केन्द्रीय अधिनियम 1988 का 59) के अधीन आने वाले मामले, जिनमें मोटर दुर्घटना दावा अभिकरण द्वारा अनुतोष पारित किया जाता है, इस योजना में सम्मिलित नहीं होंगे |

क्या पीड़ित या उसके आश्रित को दी गयी प्रतिकर राशि वापस वसूली जा सकती है ?

कुछ विशेष परिस्थितियों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पीड़ित या उसके आश्रित को दिलवाई गयी प्रतिकर राशि की वसूली के लिए न्यायालय के समक्ष केस फ़ाइल कर सकता है, जैसे –

  1. प्रतिकर लेने के बाद में वे अपात्र पाए जाते हैं या,
  2. किसी अन्य अपराध में न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए गए हों।

प्रतिकर का भुगतान पीड़ित को कैसे किया जाता है –

(1 ) प्रतिकर का संवितरण बैंक खाते से जुड़े आधार के माध्यम से किया जाएगा

(2) अगर पीड़ित अवयस्क है तो प्रतिकर की राशि अवयस्क के खाते में सावधि निक्षेप (एफ. डी.) के रुप में, जमा की जाती है, जो केवल उसके वयस्क होने पर ही निकाली जा सकती है,

लेकिन कुछ अपवाद में प्रतिकर की यह जमा राशि, शैक्षणिक अथवा चिकित्सीय आवश्यकताओं के लाभ हेतु जिला विधिक सेवा प्राधिकरण / अपील प्राधिकारी द्वारा निर्धारित सक्षम व्यक्ति द्वारा निकाली जा सकती है।

क्या प्रतिकर को नामंजूर, रोका अथवा कम किया जा सकता है ?

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रतिकर की राशि नामेंजूर कर सकेगा, रोक सकेगा एवं कम कर सकेगा, जहां कि प्राधिकरण यह समझता है कि –

(क) आवेदक, पुलिस अधिकारी को अपराध की सूचना समय पर देने में असफल रहा है,और इस देरी का बिना युक्तियुक्त कारण भी नहीं दिया है।

(ख) आवेदक, आरोपी को न्यायालय के समक्ष लाने में पुलिस अधिकारी अथवा किसी अन्य अधिकारी के साथ सहयोग नहीं कर रहा है।

(ग) आवेदक, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण तथा आवेदक से संबंधित अन्य किसी अधिकारी के साथ सहयोग नहीं कर रहा है।

(घ) तथ्यों तथा मामले की परिस्थितियो के आधार पर , पीड़ित प्रतिकर पाने का पात्र नहीं प्रतीत हो रहा है।

पीड़ित पर आश्रित होने का प्रमाण-पत्र कौन देगा ?

प्रार्थी जहाँ निवास करता हो वहां की तहसील के तहसीलदार या शासन द्वारा समय-समय पर नामित सक्षम प्राधिकारी द्वारा आश्रित प्रमाण-पत्र प्रार्थी द्वारा प्रार्थनापत्र जमा करने के पन्द्रह दिवस के अंदर जारी करेगा।

प्रतिकर के लिए दावा करने की समय सीमा क्या है ?

पीड़ित अथवा उसके अश्रित द्वारा संहिता की धारा 357 क की उपधारा (1 ) के अधीन किया गया कोई भी दावा, अपराध घटित होने के एक सौ अस्सी दिवस की अवधि के पश्चात्‌ ग्रहण नहीं किया जाएगा। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, यदि उसका समाधान हो जाता है तो लिखित में अभिलिखित किए जाने वाले उचित कारणों से, उक्त दावे को फाइल करने में हुई देरी को माफ कर सकेगा ।

दावे के खारिज किये जाने पर अपील कहाँ की जा सकेगी ?

1 ) कोई पीडित अथवा उसका आश्रित जो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व्दारा उसके दावे के खारिज किये जाने से व्यथित हो, नब्बे दिवस की कालावधि के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष अपील फाइल कर सकता है ।

(2) प्रथम अपील प्राधिकारी जैसे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के विनिश्चय के विरुद्ध आदेश के दिनांक से 30 दिवस की कालावधि के भीतर द्वितीय अपील, सरकार के गृह विभाग को की जाएगी द्वितीय अपील प्राधिकारी का विनिश्चय अंतिम होगाः

परंतु यदि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण /सरकार का समाधान हो गया है तो वह लिखित में अभिलिखित किए जाने वाले पर्याप्त कारणों से अपील फाइल करने में हुए विलंब माफ भी कर सकेगा |

(3) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया गया तथा आवेदक द्वारा स्वीकार किया गया कोई विनिश्चय सामान्य तौर पर अंतिम माना जाएगा।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण /स॒रकार यद्यपि बाद में किसी मामले को पुनः खोल सकेगी जहां कि पीड़ित की चिकित्सीय अवस्था में ऐसा सारवान परिवर्तन हो गया है यदि प्रतिकर मूल निर्धारण के ज्यों का त्यों रखा जाना अनुज्ञात किये जाने से अन्याय हो सकता है।