डॉक्टरों का कर्त्तव्य है कि वे अपने रोगियों की देखभाल उचित तरीके से करें। सभी चिकित्सकों, अस्पतालों, नर्सिग होम, या अन्य चिकित्सीय पेशेवरों से उम्मीद की जाती है कि वे “देखभाल के चिकित्सा मानक” के अनुरूप उपचार प्रदान करें। ऐसा न करना ही चिकित्सीय लापरवाही या मेडिकल नेगलिजेंस कहलाता है।

मेडिकल नेगलिजेंस क्या है?

जब किसी डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, नर्सिंग होम या अस्पताल द्वारा किसी मरीज के इलाज या देखभाल में लापरवाही बरती जाती है तब उसे मेडिकल नेगलिजेंस कहते हैं।

चिकित्सा लापरवाही तब होती है जब कोई डॉक्टर, नर्स, सर्जन या कोई अन्य चिकित्सा पेशेवर अपना काम इस तरह से करता है जो देखभाल के स्वीकृत चिकित्सा मानक के अनुरूप नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि, यदि कोई डॉक्टर चिकित्सा की उन परिस्थितियों में स्वीकृत चिकित्सा मानदंडों के संदर्भ में घटिया उपचार प्रदान करता है, तो माना जायेगा कि वह डॉक्टर अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है, इसे ही लापरवाही कहा जाता है।

जैसे कि गलत दवा देना, गलत तरीके से सर्जरी करना, गलत मेडिकल गाइडेंस देना, ऑपरेशन या सर्जरी के दौरान लापरवाही बरत कर मरीज को नुकसान पहुंचाना, ये सभी कार्य मेडिकल नेगलिजेंस में शामिल है।

चिकित्सक या अस्प्ताल के कौन से कार्य मेडिकल नेग्लिजेंस में आएंगे –

जब डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं निभाता तो इसे इलाज में लापरवाही माना जा सकता है।

  1. चिकित्सक द्वारा बिना योग्यता के इलाज करना
  2. जिस बीमारी के इलाज की योग्यता है उसकी जगह किसी और बीमारी का इलाज करना।
  3. चिकित्सक द्वारा गलत प्रिस्क्रिप्शन लिख कर दिया है।
  4. चिकित्सक द्वारा गलत जांचें या चेकअप की सलाह दी गयी है।
  5. चिकित्सक द्वारा गलत दवाइयां लेने की सलाह दी गयी है।
  6. किसी बिमारी के इलाज में जिस मानक प्रक्रिया (स्टेंडर्ड प्रोसीजर ) से इलाज होना था उस मानक का पालन नहीं किया गया।
  7. मरीज को जो बीमारी है उसके स्थान पर किसी और बिमारी का इलाज किया गया।
  8. चिकित्सक द्वारा कोई ऑपरेशन या सर्जरी गलत जगह या अंग का कर दिया।
  9. ऑपरेशन या सर्जरी में मरीज के शरीर में चाकू,सुई, तौलिये छोड़ दिए हैं।
  10. ऑपरेशन या सर्जरी में गलत या घटिया उपकरणों का प्रयोग किया गया है।
  11. जो उपकरण मरीज को बताये गए थे उनके स्थान पर सस्ते उपकरण या मशीने लगाई गयी हैं।

मेडिकल नेगलिजेंस सम्बन्धी कानून

चिकित्सक द्वारा लापरवाही अत्यंत गंभीर होती है। उसके द्वारा की गयी लापरवाही गंभीर परिणाम हो सकते हैं। मरीज का सारा जीवन दाव पर लगा होता है। उसकी लापरवाही से कई बार मरीज के प्राण भी जा सकते हैं। इसलिए कानून में इसे गंभीर अपराध माना जाता है। ऐसे मामलों में डॉक्टर, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम या हेल्थ सेंटर के खिलाफ आपराधिक या सिविल केस दर्ज करवाया जा सकता है। इसमें चिकत्सक अथवा लापरवाही बरतने वाले व्यक्ति को जेल और मरीज को मुआवज़े का भी प्रावधान है।

चिकित्सीय लापरवाही होने पर उपलब्ध कानूनी उपाय –

  • मेडिकल सुपरिडेंट को लिखित शिकायत की जा सकती है।
  •  मेडिकल सुपरिडेंट को की गयी शिकायत की कॉपी साथ में संलग्न करते हुए CMO (चीफ मेडिकल ऑफिसर) को शिकायत कीजिए
  •  CMO द्वारा चिकित्सक या अस्पताल प्रबंधन के द्वारा कोई कार्यवाही किये जाने पर आप राज्य की मेडिकल काउंसिल में शिकायत कर सकते हैं।
  • चिकित्सक एवं अस्पताल की शिकायत MCI अर्थात मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इण्डिया में कर सकते हैं। यह चिकित्सक पेशे की नियामक संस्था है। यह चिकित्स्क का मेडिकल प्रेक्टिस का लायसेंस रद्द तक कर सकती है।
  • अगर मेडिकल नेगलिजेंस की वजह से मरीज की जान को खतरा होता है या जान चली जाती है तो पुलिस थाने में भी FIR दर्ज कराई जा सकती है।
  • डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है तो उस पर आपराधिक मामले (क्रिमिनल केस) और दीवानी (सिविल मामला, मुआवजे और क्षतिपूर्ति हेतु ) दोनों तरह का केस किया जा सकता है।

आपराधिक मामला –

  • यदि आप चिकित्सक के विरुद्ध आपराधिक माला दर्ज करवाते हैं तो आपको ध्यान रखना होगा कि आपराधिक मामले (क्रिमिनल केस) में अपराध के इरादे को साबित करना बहुत जरूरी होता है।
  • यदि डॉक्टर क्रिमिनल केस में दोषी साबित हो जाता है, तब उसे जेल की सजा या जुर्माना दोनों हो सकता है।

सिविल केस –

  • सिविल केस में पीड़ित नुकसान की क्षतिपूर्ति (मुआवजे ) के लिए दावा कर सकता है।
  • डॉक्टर के खिलाफ उपभोक्ता अदालतों में (कंज्यूमर कोर्ट) में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत भी मुकदमा किया जा सकता है
  • उपभोक्ता अदालत द्वारा मरीज को उपभोक्ता मानते हुए क्षतिपूर्ति दिलवाई जा सकती है।

भारतीय कानून में चिकित्सीय लापरवाही के लिए कानूनी प्रावधान –

चिकित्सीय लापरवाही से नुक्सान होने पर IPC यानी भारतीय दंड सहिंता की धारा 337 एवं 338 के अंतर्गत FIR दर्ज करवाई जा सकती है। इन धाराओं में चिकित्सक को 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा भी हो सकती है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इलाज के दौरान मरीज की मृत्यु होने की स्थिति में –

भारतीय दंड सहिंता की धारा 304 (अ) के अंतर्गत FIR दर्ज करवाई जा सकती है। यह धारा लापरवाही से होने वाली मृत्यु के लिए दंड का प्रावधान करती है। यदि न्यायलय चिकित्सक को दोषी पाता है तो 2 साल तक का कारावास दे सकता है। कारावास के साथ ही न्यायालय चिकित्सक पर जुर्माना भी लगा सकता है।

मेडिकल नेग्लिजेंस के उदाहरण और उसमे न्यायालय का फैसला –

मामला  –

13 जुलाई 2004 को 47 साल की मंजीत कौर के पेट में दर्द हुआ तो वे डॉ. गुरमीत सिंह को दिखाने पहुंची। यहाँ उनको गॉल ब्लैडर में स्टोन का पता चला। डॉक्टर ने ऑपरेशन का फैसला किया। 28 जुलाई 2004 को डॉ ने लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी (लेप्रोस्कोपिक की मदद से गॉल ब्लैडर हटाना) का ऑपरेशन किया और मंजीत कौर के पेट में एक नली डाल दी। इस ऑपरेशन के ठीक अगले दिन मंजीत ने पेट में दर्द और खिंचाव की शिकायत की।
जब डॉक्टर से संपर्क किया गया तो डाक्टर ने उन्हें कहा कि ऑपरेशन के बाद सभी मरीजों को ऐसा होता है। अगले दिन मरीज की हालत गंभीर हो गई। मंजीत के पति मंजीत को किसी दूसरे अस्पताल में ले जाना चाहते थे, लेकिन डॉक्टर ने दूसरे अस्पताल में ले जाने की अनुमति उन्हें नहीं दी। बाद में जिद करके जब उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। यहां पता चला कि पिछले अस्पताल में इलाज के दौरान पित्त नली और आंत में आईट्रोजेनिक चोट लगी है। 11 अगस्त को मंजीत की मौत हो गई।

सर्वोच्च न्यायलय का फैसला –

मंजीत के पति ने मेडिकल लापरवाही के लिए न्यायालय की शरण ली। सर्वोच्च न्यायलय ने 2022 में कोर्ट ने महिला की गॉल ब्लैडर स्टोन निकालने के दौरान मौत के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ गुरमीत सिंह को दोषी माना और डॉक्टर को मृतक महिला के परिवार को 25 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर देने का आदेश दिया।