हिंदू धर्म में तलाक को क्या कहते हैं? क्या हिंदू संस्कृति में तलाक नहीं होता था?
अरबी शब्द है “तलाक”
“तलाक” एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है – ” छोड़ देना” या फिर “त्याग देना”। विवाह के सन्दर्भ में इसका अर्थ लगाया जायेगा – “अपने पति या पत्नी को त्याग देना। ”
अब सवाल ये उठता है कि हिंदी में तलाक के लिए कौनसा शब्द होता है ? तो क्या इसका मतलब है कि भारतीय संस्कृति में तलाक नहीं होता था ? क्या प्राचीन भारत में हिन्दू धर्म में तलाक नहीं होता था ? इन सब सवालों के जव्वाब आपको इस लेख में मिलेंगे।
तलाक के लिये हमें कोई सीधा शब्द हिंदी में नहीं मिलता है। लेकिन हम संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा की उत्पत्ति मानते हैं। संस्कृत में हम तलाक के लिए शब्द है – ” विवाहविच्छेदः ” जिसका अर्थ है – **“विवाह समाप्त हो जाना”। **
लेकिन ये शब्द भी बाद में जरुरत पड़ने पर बनाया गया है। यह कोई प्राचीन संस्कृत का शब्द नहीं है। इसी शब्द से हिंदी में ” विवाह विच्छेद” शब्द बन गया। इसी से मिलता जुलता एक शब्द है – “परित्याग”। इसका अर्थ भी तलाक के संदर्भ में लगाया जा सकता है।
ग्रामीण भाषा या क्षेत्रीय बोलियां में तलाक को क्या कहते हैं ?
ग्रामीण या आम बोलचाल की भाषा में इस से मिलते जुलते कई शब्द प्रचलित हैं। ये भी पति या पत्नी को त्यागने की अवस्था को ही बताते हैं। इन शब्दों का निर्माण समाज ने अपनी सुविधा के लिए कर लिया है। जैसे इनमे से कुछ शब्द हैं –
मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक शब्द प्रचलित है – “छोड़- छुट्टी करना”, गठवाली में इसके लिए “छूट” शब्द प्रचलित हैं। गुजराती भाषा में ऐसा ही एक शब्द “छूटाछेडा” है।
क्या प्राचीन भारत या संस्कृति में तलाक नहीं होता था?
यह सच है कि हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति में विवाह को एक पवित्र धार्मिक संस्कार माना जाता था और ऐसे कई वर्षों का बंधन माना जाता था। यह भी सच है कि विवाह को तोड़ना इतना आसान भी नहीं था। लेकिन ऐसा नहीं है कि प्राचीन भारत में तलाक जैसी कोई स्थिति नहीं होती थी।
विश्व के हर समाज में इंसान की मूल प्रवृत्तियां एवं परंपराएं लगभग एक जैसी ही है। जैसे राजा का शासन, बलशाली व्यक्ति का प्रभाव, हिंसा, लालच, अपराध, ईश्वर की मान्यता आदि। इन्हीं प्रवृत्तियों में विवाह भी शामिल है और विवाह के साथ तलाक भी। ठीक इसी प्रकार भारतीय समाज में भी विवाह और विवाह के बाद विवाह के विच्छेद के प्रमाण भी है।
चाणक्य के अर्थशास्त्र में तलाक की अवधारणा
प्राचीन भारतीय विद्वान चाणक्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र में पति-पत्नी को छोड़ने के लिए भी ‘ पति-पत्नी का त्याग” शब्द का प्रयोग किया है। यही नहीं उन्होंने वे स्थितियां भी बताई है जिनमे पति या पत्नी एक दूसरे को छोड़ सकते हैं।
चाणक्य के ग्रंथ अर्थशास्त्र के अनुसार पत्नी पति को कब त्याग सकती है –
चाणक्य के अनुसार आपसी सहमति से तलाक
इसके अलावा चाणक्य ने बताया है कि यदि आपस में झगडे के कारण पति या पत्नी में से कोई दूसरे को छोड़ना चाहता है तो दोनों की सहमति होनी चाहिए। या आपसी सहमति से तलाक की स्थिति ही है।
पति को दूसरा विवाह करने का अधिकार
आमतौर को पर पुरुष प्रधान समाज होने के कारण पुरुषों को स्त्रियों से कुछ ज्यादा अधिकार प्राप्त थे। यह देखा गया है कि पति दो एवं तीन विवाह भी कर लेते थे। लेकिन प्राचीन ग्रंथो के अनुसार बिना पहले विवाह के समाप्त हुए दूसरा विवाह करने को उचित नहीं माना गया था। पर फिर भी समझ में इसका प्रचलन था। जैसे 8 वर्ष तक संतान न होने पर पुरुष को दूसरे विवाह का अधिकार दिया गया था। ऐसे दूसरे विवाह को अधिवेदन कहा जाता था।