डार्क वेब क्या है?

डार्क वेब इंटरनेट का वह हिस्सा है, जिसे सर्च इंजन पर इंडेक्स नहीं किया जाता है। यह इंटरनेट का एक ऐसा हिस्सा है जहां ड्रग्स, बंदूकें और कई तरह की ख़ूफ़िया सूचानएं बिकती हैं।  इसे ‘डार्क वेब’ कहते हैं. इंटरनेट सूचनाओं का एक अंतहीन भंडार है.

लेकिन ज़्यादातर लोग इसके क़रीब 1% को ही इस्तेमाल करते हैं – यानी ‘सरफेस वेब’ . उसके नीचे, ‘डीप वेब’ में वो डेटा होता है, जिसे आप सर्च करके नहीं ढूंढ सकते।  99% इंटरनेट असल में सुरक्षा की इस परत के नीचे होता है, जो पासवर्ड और दूसरी सुरक्षा के पीछे छिपा होता है. उससे भी मुश्किल और गुप्त होता है ‘डार्क वेब’ .

इनके एक्सटेंशन के पीछे .com या .in नहीं बल्कि .Onion लगता है। इसके लिए आपको अपना आईपी एड्रेस बदलकर एक खास ब्राउजर का इस्तेमाल करना होगा। इसके अलावा वीपीएन और कई anonymity tools का इस्तेमाल डार्क वेब पर सर्फिंग करने के लिए करना होता है।

यह एक ऐसा गुमनाम वैश्विक इंटरनेट सिस्टम है जिसका पता लगाना लगभग नामुमकिन है।

डार्क वेब असल में दुनिया भर में मौजूद ऐसे कंप्यूटर यूज़र्स का नेटवर्क है जिनका मानना है कि इंटरनेट को किसी क़ानून का पाबंद नहीं होना चाहिए और न ही क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस पर नज़र रखनी चाहिए.

किसी भी यूज़र की डार्क वेब तक पहुंच उनके पास मौजूद पीयर-टू-पीयर फ़ाइल शेयरिंग टेक्नोलॉजी सॉफ़्टवेयर पर निर्भर करती है।  इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल यूज़र्स और डार्क वेब वेबसाइटों की लोकेशन बदलने के लिए किया जाता है।

डार्क वेब की शुरुवात –

इसकी शुरुआत 90 के दशक में अमेरिका ने की थी। अमेरिकी सेना ने पूरे विश्व भर में मौजूद अपने एजेंट्स के साथ खुफिया जानकारी को शेयर करने के लिए डार्क वेब को बनाया। हालांकि, कम लोगों के डार्क वेब पर होने से गुप्त सूचनाएं लीक हो सकती थीं। इस कारण Anonymity बनाने के लिए उसने डार्क वेब को आम जनता के लिए भी जारी कर दिया। ज्यादा यूजर्स के यहां पर आने से गुप्त सूचनाओं का कोई पता नहीं लगा सकता था।

डार्क वेब के खतरे –

इसकी यही विशेषता इसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर आपराधिक गतिविधियों में शामिल सभी लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है। इंटरनेट की इस ‘ब्लैक मार्केट’ में न सिर्फ़ सूचनाएं, बल्कि फर्ज़ी पासपोर्ट, हथियार, ड्रग्स और अश्लील सामग्री सब कुछ उपलब्ध है।

डार्क वेब पर कितनी वेबसाइट हैं और कौन लोग इन वेबसाइटों पर क्या करते हैं? उनका पता लगाना काफी मुश्किल है। डार्क वेब पर मौजूद डीलर्स किसको क्या बेचते हैं और कैसे बेचते हैं? इसके बारे में भी जानना काफी मुश्किल काम है। यहां पर भुगतान के लिए क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग किया जाता है, जो  कि ब्लॉक चेन सिक्योरिटी पर वर्क करती है। इस कारण भुगतान कौन कर रहा है और किसे कर रहा है? इस बारे में भी नहीं जाना जा सकता है। डार्क वेब पर मौजूद वेबसाइटों के डोमेन नेम काफी सिक्योर और इनक्रिप्टेड होते हैं।

सोर्स – BBC Hindi

Amar Ujala