जनहित याचिका क्या है, कैसे लगाते हैं, कब याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगता है ?

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जनहित याचिका क्या होती है

जब किसी ऐसे मुद्दे पर जो आम लोगों के हित में जुड़ा हुआ हो, न्यायालय के समक्ष किसी भी आम व्यक्ति के द्वारा याचिका दायर की जाती है उसे जनहित याचिका कहा जाता है।

सितंबर 2023  में दिल्ली उच्च न्यायालय ने  इलेक्ट्रिक व्हीकल से संबंधित एक मामले की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि

जनहित के मुद्दों का समाधान करने के लिए जनहित याचिका का सिद्धांत विभिन्न फैसलों के माध्यम से अदालतों द्वारा विकसित किया गया है, जिसका मकसद उन लोगों की सहायता करना है, जिन्हें क्षति पहुंचाई गई हो या जिनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो और उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया हो।”

जनहित याचिका कौन लगा सकता है ?

जनहित याचिका कोई भी लगा सकता है। जनहित याचिका लगाने के लिए किसी विशेष प्रकार की शक्ति, अथॉरिटी या पद की आवश्यकता नहीं होती है। यानी जनहित याचिका लगाने के लिए कोई भी व्यक्ति न्यायालय जा सकता है।

क्या यह जरूरी है कि जनहित याचिका लगाने वाले व्यक्ति का हित भी जनहित याचिका में शामिल हो ?

जनहित याचिका लगाने वाले व्यक्ति का भी उसमें शामिल हो सकता है। लेकिन यह कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। इसका मतलब यह है कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके खुद के कोई याचिका में ना हो वह भी जनहित याचिका न्यायालय के समक्ष लगा सकता है।  यह जरूरी नहीं है कि जनहित याचिका में उस व्यक्ति के खुद के अधिकार भी प्रभावित हो रहे  हो,  तभी वह जनहित याचिका लगा सकेगा।

उदाहरण

मैं दिल्ली में रहता हूं लेकिन मध्यप्रदेश में हो रहे पर्यावरण के नुकसान के लिए न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर कर सकता हूं।

क्या न्यायालय का क्षेत्राधिकार भी देखना पड़ता है कि किस न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर की जाए ?

जनहित याचिका उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय यानी सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही लगाई जा सकती हैं। अगर यह किसी राज्य विशेष का मामला है तो याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लगाई जानी चाहिए जिस उच्च न्यायालय का उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार आता है।

जैसे राजस्थान में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ जनहित याचिका राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।

यही जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में भी प्रस्तुत की जा सकती है। तब क्षेत्राधिकार की कोई समस्या नहीं रहेगी क्योंकि उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार पूरे भारत पर एक समान रूप से प्रभावी है।

अनावश्यक जनहित याचिका क्या होती है ?

ऐसी जनहित याचिका जो बिना तैयारी के बिना शोध के या बिना सही तथ्यों को सामने लाए बिना प्रस्तुत की जाती है अनावश्यक जनहित याचिका कहलाती है।

ऐसी जनहित याचिका न्यायालय निरस्त  या खारिज भी कर सकता है। और साथ ही साथ याचिकाकर्ता पर आर्थिक दंड भी लगा सकता है।

क्या जनहित याचिका लगाने पर जुर्माना भी हो सकता है?

जी हां।  यदि जनहित याचिका सिर्फ पब्लिसिटी या प्रसिद्धि पाने के लिए लगाई गई है। या गलत तथ्यों पर आधारित हूं तो उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय जिसके भी समस्या जनहित याचिका प्रस्तुत की गई है याचिका लगाने वाले व्यक्ति पर जुर्माना लगा सकता है।

जनहित याचिका लगाने वाली याचिकाकर्ता पर कब जुर्माना लगाया जा सकता है?

यदि वह न्यायालय के सामने याचिका प्रस्तुत की गई है इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि याचिका अनावश्यक रूप से लगाई गई है तो वह याचिकाकर्ता पर अपने विवेक के अनुसार जुर्माना लगा सकता है, जब

दुर्भावनापूर्ण जनहित याचिका

जनहित याचिका किसी दुर्भावना से लगाई गई है। यदि यह जनहितयाचिका किसी व्यक्ति को या समाज के किसी वर्ग को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से लगाई गई है।

बिना तैयारी के लगाई गई जनहित याचिका

याचिका बिना तैयारी के  जल्दबाजी दायर कर दी गई है। अर्थात याचिका लगाते समय पूरे तथ्यों की खोज बीन नहीं की गई है, जबकि तैयारी के लिए पर्याप्त समय था और कोई जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं थी।

प्रसिद्धि पाने के लिए जनहित याचिका

कई बार ऐसा होता है कि जनहित याचिका लगाने वाला याचिकाकर्ता मात्र प्रसिद्धि पाने के लिए जनहित याचिका दायर कर देता है। अगर जनहित याचिका लगाने का उद्देश्य मात्र पब्लिसिटी प्राप्त करना है तो भी न्यायालय जनहित याचिका को खारिज करके जनहित याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगा सकता है।

न्यायालय का समय खराब करने के लिए जनहित याचिका

कई बार न्यायालय का समय खराब करने के लिए भी जनहित याचिका दायर कर दी जाती है। यदि समय बचता तू न्यायालय में किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय पर सुनवाई हो सकती थी। ऐसी समय खराब करने वाली याचिकाओं पर भी न्यायालय गंभीर रुख अपनाते हैं और ऐसी याचिकाओं को खारिज करके याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

न्यायालय को किसी महत्वपूर्ण मुद्दे से भटकाने के लिए जनहित याचिका डालना

कई बार विरोधी व्यक्ति द्वारा न्यायालय को महत्वपूर्ण तथ्य मामले से मिटाने के लिए भी जनहित याचिकाएं लगा दी जाती हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय अपनी पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर पाते एवं उस मामले को सुनवाई में देरी हो जाती है जैसे उन्हें वास्तव में सुना जाना था। ऐसी याचिकाएं भी अनावश्यक रूप से न्यायालय को तकनीकी के लिए की जाती है।

किसी गैर जरूरी मुद्दे पर जनहित याचिका

जनहित याचिका डालने वाले याचिकाकर्ता किसी ऐसे विषय पर जनहित याचिका डाल देते हैं जिस जिसमें जनहित याचिका नहीं लगाई जानी चाहिए। कानून की जानकारी के अभाव में याचिकाकर्ता न्यायालय जाने के बजाय सीधे जनहित याचिका का रास्ता अपना लेते हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय उन्हें पहले सक्षम न्यायालय के समक्ष जाने के लिए सलाह देते हैं। ऐसी याचिकाओं में जुर्माना तो नहीं लगाया जाता लेकिन याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के समक्ष जाने की सलाह दी जाती है और याचिका वापस लौटा दी जाती है।

जनहित याचिका लगाने वाले व्यक्ति पर कितना जुर्माना लगाया जा सकता है ?

गलत या न्यायालय का कीमती समय बर्बाद करने के लिए लगाई गई जनहित याचिका लगाने वाले व्यक्ति पर जुर्माना किसी कानून में तय नहीं किया गया है। यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है कि कितना जुर्माना लगाया जा सकता है। आमतौर पर यह रकम 5000 से लेकर 10  लाख तक हो सकती है।

जनहित याचिकाकर्ता  पर जुर्माना कितना होगा यह निम्न बातों पर निर्भर करेगा :

  1. याचिका लगाने का उद्देश्य क्या है।
  2. याचिका में उठाए गए प्रश्न कितने गंभीर हैं।
  3. याचिकाकर्ता की आर्थिक स्थिति क्या है।
  4. याचिकाकर्ता की सामाजिक स्थिति क्या है।
  5. याचिका लगाने से समाज के किसी अन्य व्यक्ति को कितना नुकसान पहुंचा है।

उदाहरण : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका खारिज की

सितंबर 2023 मैं इलेक्ट्रिक व्हीकल के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई। इस याचिका में कहा गया कि दोपहिया इलेक्ट्रिक व्हीकल को अनिवार्य इंश्योरेंस और हेलमेट लगाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए जाएं।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ” भारत में लागू कानूनों एवं मोटर व्हीकल एक्ट में पहले से ही यह प्रावधान है कि कौन से इलेक्ट्रिक व्हीकल को इंश्योरेंस और हेलमेट अनिवार्य होगा। इसके लिए याचिका डालने की कोई आवश्यकता नहीं थी। ”

दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि –  ” यह जनहित याचिका केवल दो अखबार की खबरों के आधार पर दायर की गई है और याचिका की तरफ से उनके दावे के लिए ना तो कोई शोध किया गया है और ना ही सत्यापित किया गया है। यह याचिका केवल न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए दाखिल की गई है।

इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर कोई जुर्माना नहीं लगाया लेकिन यह जनहित याचिका खारिज कर दी।